रहस्य-रोमांच >> चंद्रकान्ता चंद्रकान्तादेवकीनन्दन खत्री
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चंद्रकान्ता पुस्तक का सजिल्द संस्करण
Chandrakanta - A Hindi Book By Devkinandan Khatri
प्रथम संस्करण की भूमिका
आज तक हिन्दी उपन्यास में बहुत से साहित्य लिखे गये हैं जिनमें कई तरह की बातें व राजनीति भी लिखी गयी है, राजदरबार के तरीके एवं सामान भी जाहिर किये गये हैं, मगर राजदरबारों में ऐयार (चालाक) भी नौकर हुआ करते थे जो कि हरफनमौला, यानी सूरत बदलना, बहुत-सी दवाओं का जानना, गाना-बजाना, दौड़ना, अस्त्र चलाना, जासूसों का काम देना, वगैरह बहुत-सी बातें जाना करते थे। जब राजाओं में लड़ाई होती थी तो ये लोग अपनी चालाकी से बिना खून बहाये व पलटनों की जानें गंवाये लड़ाई खत्म करा देते थे। इन लोगों की बड़ी कदर की जाती थी। इसी ऐयारी पेशे से आजकल बहुरूपिये दिखाई देते हैं। वे सब गुण तो इन लोगों में रहे नहीं, सिर्फ शक्ल बदलना रह गया है, और वह भी किसी काम का नहीं। इन ऐयारों का बयान हिन्दी किताबों में अभी तक मेरी नजरों से नहीं गुजरा। अगर हिन्दी पढ़ने वाले इस आनन्द को देख लें तो कई बातों का फायदा हो। सबसे ज्यादा फायदा तो यह कि ऐसी किताबों को पढ़ने वाला जल्दी किसी के धोखे में न पड़ेगा। इन सब बातों का ख्याल करके मैंने यह ‘चन्द्रकान्ता’ नामक उपन्यास लिखा। इस किताब में नौगढ़ व विजयगढ़ दो पहाड़ी रजवाड़ों का हाल कहा गया है। उन दोनों रजवाड़ों में पहले आपस में खूब मेल रहना, फिर वजीर के लड़के की बदमाशी से बिगाड़ होना, नौगढ़ के कुमार वीरेन्द्रसिंह का विजयगढ़ की राजकुमारी चन्द्रकान्ता पर आशिक होकर तकलीफें उठाना, विजयगढ़ के दीवान के लड़के क्रूरसिंह का महाराज जयसिंह से बिगड़ कर चुनार जाना और चन्द्रकान्ता की तारीफ करके वहाँ के राजा शिवदत्तसिंह को उभाड़ लाना वगैरह। इसके बीच में ऐयारी भी अच्छी तरह दिखलाई गयी है, और ये राज्य पहाड़ी होने से इसमें पहाड़ी नदियों, दर्रों, भयानक जंगलों और खूबसूरत व दिलचस्प घाटियों का बयान भी अच्छी तरह से आया है।
मैंने आज तक कोई किताब नहीं लिखी है। यह पहला ही श्रीगणेश है, इसलिए इसमें किसी तरह की गलती या भूल का हो जाना ताज्जुब नहीं, जिसके लिए मैं आप लोगों से क्षमा माँगता हूँ, बल्कि बड़ी मेहरबानी होगी अगर आप लोग मेरी भूल को पत्र द्वारा मुझ पर जाहिर करेंगे। क्योंकि यह ग्रन्थ बहुत बड़ा है, आगे और छप रहा है, भूल मालूम हो जाने से दूसरी जिल्दों में उसका खयाल किया जायेगा।
[आषाढ़, संवत् १९४४ वि]
– देवकीनन्दन खत्री
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- हिन्दी उपन्यास की आधारशिला : चन्द्रकान्ता
- पहला भाग
- पहला बयान
- दूसरा बयान
- तीसरा बयान
- चौथा बयान
- पाँचवाँ बयान
- छठवाँ बयान
- सातवां बयान
- आठवां बयान
- नौवां बयान
- दसवां बयान
- ग्यारहवां बयान
- बारहवां बयान
- तेरहवाँ बयान
- चौदहवां बयान
- पन्द्रहवां बयान
- सोलहवां बयान
- सत्रहवां बयान
- अट्ठारहवां बयान
- उन्नीसवां बयान
- बीसवां बयान
- इक्कीसवां बयान
- बाईसवां बयान
- तेईसवां बयान
- दूसरा भाग
- पहला बयान
- दूसरा बयान
- तीसरा बयान
- चौथा बयान
- पांचवां बयान
- छठवां बयान
- सातवां बयान
- आठवां बयान
- नौवां बयान
- दसवां बयान
- ग्यारहवां बयान
- बारहवां बयान
- तेरहवां बयान
- चौदहवां बयान
- पन्द्रहवां बयान
- सोलहवां बयान
- सत्रहवां बयान
- अठारहवां बयान
- उन्नीसवां बयान
- बीसवां बयान
- इक्कीसवां बयान
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- तेइसवां बयान
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- पच्चीसवां बयान
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- सत्ताईसवां बयान
- तीसरा भाग
- पहला बयान
- दूसरा बयान
- तीसरा बयान
- चौथा बयान
- पाँचवाँ बयान
- छठवां बयान
- सातवां बयान
- आठवां बयान
- नौवां बयान
- दसवां बयान
- ग्यारहवां बयान
- बारहवां बयान
- तेरहवां बयान
- चौदहवां बयान
- पन्द्रहवां बयान
- सोलहवां बयान
- सत्रहवां बयान
- अट्ठारहवां बयान
- उन्नीसवां बयान
- बीसवां बयान
- चौथा भाग
- पहला बयान
- दूसरा बयान
- तीसरा बयान
- चौथा बयान
- पांचवाँ बयान
- छठवां बयान
- सातवां बयान
- आठवां बयान
- नौवां बयान
- दसवां बयान
- ग्यारहवां बयान
- बारहवां बयान
- तेरहवां बयान
- चौदहवां बयान
- पन्द्रहवां बयान
- सोलहवां बयान
- सत्रहवां बयान
- अट्ठारहवां बयान
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