कहानी संग्रह >> उत्तरायण उत्तरायणसुदर्शन प्रियदर्शिनी
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सुदर्शन प्रियदर्शिनी की 12 रोचक कहानियों का संग्रह...
सुदर्शन प्रियदर्शिनी
जन्म स्थान: लाहौर (अविभाजित भारत)।
शिक्षा : एम.ए. एवं हिन्दी में पी-एच.डी. (1982), (पंजाब विश्वविद्यालय)। लिखने का जुनून बचपन से ही।
प्रकाशित कृतियाँ : सूरज नहीं उगेगा, अरी ओ कनिका और रेत की दीवार (उपन्यास), काँच के टुकड़े (कहानी संग्रह), शिखण्डी युग और वरहा (कविता संग्रह)। भारत और अमेरिका के कई संकलनों में रचनाएं संकलित। विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में रचनाओं का प्रकाशन।
पुरस्कार : हिन्दी परिषद टोरंटो का महादेवी पुरस्कार तथा ओहायो गवर्नर मीडिया पुरस्कार।
सम्प्रति : क्लीवलैंड, ओहायो, अमेरिका में निवास और साहित्य सृजनरत।
शिक्षा : एम.ए. एवं हिन्दी में पी-एच.डी. (1982), (पंजाब विश्वविद्यालय)। लिखने का जुनून बचपन से ही।
प्रकाशित कृतियाँ : सूरज नहीं उगेगा, अरी ओ कनिका और रेत की दीवार (उपन्यास), काँच के टुकड़े (कहानी संग्रह), शिखण्डी युग और वरहा (कविता संग्रह)। भारत और अमेरिका के कई संकलनों में रचनाएं संकलित। विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में रचनाओं का प्रकाशन।
पुरस्कार : हिन्दी परिषद टोरंटो का महादेवी पुरस्कार तथा ओहायो गवर्नर मीडिया पुरस्कार।
सम्प्रति : क्लीवलैंड, ओहायो, अमेरिका में निवास और साहित्य सृजनरत।
अनुक्रम
अखबार वाला
अब के बिछुड़े
धूप
नागपाश
निःशंक
मरीचिका
मृगतृष्णा
संदर्भहीन
सावित्री न. 3
सौ-सौ दंश
हिजड़ा
अब के बिछुड़े
धूप
नागपाश
निःशंक
मरीचिका
मृगतृष्णा
संदर्भहीन
सावित्री न. 3
सौ-सौ दंश
हिजड़ा
अखबार वाला
जया ने ज्यों ही सूबह उठकर खिड़की पर छितरी बलाईडस का कान मरोड़ा, उजाला धकियाता हुआ अन्दर घुस आया। इस उजाले के साथ-साथ हर सुबह एक सन्नाटा भी कमरे के कोनों में दूबका पड़ा - उठ खड़ा होता था। इतने वर्षों के बाद आज भी दूर अपनी खिड़की से झांकता बरगद का पेड़, चिड़ियों की चहचहाहट, रंभाती गायें, पड़ोसी के चूल्हें से उठता उपलों का गंधित धुंआ, मिट्टी की कुल्ली में उबलती चाय का पानी - मन के किसी कोने में सुबह की दूब से उभर आते और सारी सुबह पर जैसे अबूर छिड़क देते। अन्यथा इस सड़क पर न कोई आहट, न ट्रैफिक की धमाधम, न चिल्लपौं, न स्कूल जाने वले बच्चों की मीठी-मीठी भोली चिटकोटियां...। उसकी हर सुबह एक अधूरेपन के ग्रहण ले ग्रलित हो जाती...।
बलाईडस खोलने के बाद वह चाय का पानी चढ़ाती और फिर किवाड़ खोलकर बाहर से अखबार उठाती। आज किवाड़ खोलते ही उसकी अलसायी अधखुमारी सी नींद काफूर हो गई...। वह कुछ क्षणों के ल्ए जैसे प्रस्तर-मूर्ति बन गई। सामने वाले घर के सामने फ्यूनरल वैन खड़ी थी...।
बलाईडस खोलने के बाद वह चाय का पानी चढ़ाती और फिर किवाड़ खोलकर बाहर से अखबार उठाती। आज किवाड़ खोलते ही उसकी अलसायी अधखुमारी सी नींद काफूर हो गई...। वह कुछ क्षणों के ल्ए जैसे प्रस्तर-मूर्ति बन गई। सामने वाले घर के सामने फ्यूनरल वैन खड़ी थी...।
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