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भूलभुलैया

शेक्सपियर

प्रकाशक : राजपाल एंड सन्स प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :104
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 8293
आईएसबीएन :9789350642153

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भूलभुलैया...

Bhool Bhulaiya - A Hindi Book by Shakespeare

प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश

विश्व साहित्य के गौरव, अंग्रेज़ी भाषा के अद्वितीय नाटककार शेक्सपियर का जन्म 26 अप्रैल, 1564 ई. को इंग्लैंड के स्ट्रैटफोर्ड-ऑन-एवोन नामक स्थान में हुआ। उनके पिता एक किसान थे और उन्होंने कोई बहुत उच्च शिक्षा भी प्राप्त नहीं की। इसके अतिरिक्त शेक्सपियर के बचपन के बारे में बहुत कम जानकारी उपलब्ध है। 1582 ई. में उनका विवाह अपने से आठ वर्ष बड़ी ऐन हैथवे से हुआ। 1587 ई. में शेक्सपियर लंदन की एक नाटक कम्पनी में काम करने लगे। वहाँ उन्होंने अनेक नाटक लिखे जिनसे उन्होंने धन और यश दोनों कमाए। 1616 ई. में उनका स्वर्गावास हुआ।

प्रसिद्ध हिन्दी साहित्यकार रांगेय राघव ने शेक्सपियर के बारह नाटकों का हिन्दी अनुवाद किया है, जो इस सीरीज़ में पाठकों को उपलब्ध कराये जा रहे हैं।

शेक्सपियर : संक्षिप्त परिचय

विश्व-साहित्य के गौरव, अंग्रेजी भाषा के अद्वितीय नाटककार शेक्सपियर का जन्म 26 अप्रैल, 1564 ई. में स्टैटफोर्ड-ऑन-एवोन नामक स्थान में हुआ। उसकी बाल्यावस्था के विषय में बहुत कम ज्ञात है। उसका पिता एक किसान का पुत्र था, जिसने अपने पुत्र की शिक्षा का अच्छा प्रबन्ध भी नहीं किया। 1582 ई. में शेक्सपियर का विवाह अपने से आठ वर्ष बड़ी ऐन हैथवे से हुआ और सम्भवत: उसका पारिवारिक जीवन सन्तोषजनक नहीं था। महारानी एलिज़ाबेथ के शासनकाल में 1587 ई. में शेक्सपियर लन्दन जाकर नाटक कम्पनियों में काम करने लगा। हमारे जायसी, सूर और तुलसी का प्राय: समकालीन यह कवि यहीं आकर यशस्वी हुआ और उसने अनेक नाटक लिखे, जिनसे उसने धन और यश दोनों कमाए। 1612 ई. में उसने लिखना छोड़ दिया और अपने जन्म-स्थान को लौट गया और शेष जीवन उसने समृद्धि तथा सम्मान से बिताया। 1616 ई. में उसका स्वर्गवास हुआ। इस महान् नाटककार ने जीवन के इतने पहलुओं को इतनी गहराई से चित्रित किया है कि वह विश्व-साहित्य में अपना सानी सहज ही नहीं पाता। मारलो तथा येन जानसन जैसे उसके समकालीन कवि उसका उपहास करते रहे, किन्तु वे तो लुप्तप्राय हो गए; और यह कविकुल दिवाकर आज भी देदीप्यमान है।

शेक्सपियर ने लगभग छत्तीस नाटक लिखे हैं, कविताएँ अलग। उसके कुछ प्रसिद्ध नाटक हैं-जूलियस सीज़र, ऑथेलो, मैकबेथ, हैमलेट, लियर, रोमियो जूलियट (दु:खान्त), वेनिस का सौदागर, बारहवीं रात, तिल का ताड़ (मच एडू अबाउट नथिंग), तूफान (सुखान्त)। इनके अतिरिक्त ऐतिहासिक नाटक तथा प्रहसन भी हैं। प्राय: उसके सभी नाटक प्रसिद्ध हैं।

शेक्सपियर ने मानव-जीवन की शाश्वत भावनाओं को बड़े ही कुशल कलाकार की भाँति चित्रित किया है। उसके पात्र आज भी जीवित दिखाई देते हैं। जिस भाषा में शेक्सपियर के नाटक का अनुवाद नहीं है वह उन्नत भाषाओं में कभी नहीं गिनी जा सकती।

भूमिका

शेक्सपियर के सुखान्त नाटकों में भूलभुलैया एक बड़ी मज़ेदार रचना है। पहली बार जब इसे खेला गया तो सम्भ्रान्त लोग इसलिए नाराज़ होकर उठकर चले गए कि उनकी कुछ समझ में नहीं आया। इसमें एक ही शक्स-सूरत के दो जुड़वाँ भाई हैं, और उनके दोनों नौकर भी वैसे ही हैं। अतः कथा में वे यही नहीं जाँच सके कि कौन-सा भाई कब किससे मिला और इसलिए रंगशाला में खूब कोलाहल हुआ। यह घटना 1594-95 की है।

फ्रांसिस मेरेस ने इस नाटक का नाम शेक्सपियर के अन्य ग्यारह नाटकों के साथ पैलेडिस टेनिया में उल्लिखित किया है। उसका समय है 1598। इसका अर्थ है, यह पहले ही लिखा गया था।

नाटक की कथा का स्रोत्र फ्लौटस के सुखान्त नाटक-मेनेक्सी से लिया गया है। हो सकता है उसीने शेक्सपियर से यह कथा ले ली हो। इस पर निर्विवाद कुछ नहीं कहा जा सकता।

कथा यद्यपि बहुत ही सरल है, किन्तु कौशल है इसकी बुनाहट में। और यह काम वास्तव में काफी चतुराई से किया गया है।

प्रस्तुत नाटक की विशेषताओं में एक यह है कि इसमें नाटककार ने स्त्री और पुरुष की एक नए प्रकार की स्पर्धा की भी झलक दी है, जिससे स्पष्ट होता है कि उस समय भी द्वन्द्व की ओर दृष्टि जाने लगी थी। दूसरी बात है इसका हास्य। यद्यपि इसमें आवश्यकता से अधिक ऐसे शब्द हैं, जिनके दो अर्थ हैं, और जिससे उत्पन्न हास्य को उच्चकोटि का नहीं कहा हैं, जिनके दो अर्थ हैं, और जिससे उत्पन्न हास्य को उच्चकोटि का नहीं कहा जा सकता, परन्तु इसमें ऐसी बड़ी अच्छी परिस्थितियाँ भी हैं जो सच्चे हास्य को जन्म देती हैं। ऐसा ही है एक ऐण्टीफोलस पर भूत आना। ज़बर्दस्ती जब उसका भूत उतारा जाता है, तब वह देखते ही बनता है।

चरित्र-चित्रण की बात ली जाए तो दोनों बहनों का ही चरित्र उठता है। और वे भी अधिक नहीं उठतीं। मूल कला है घटना-प्रधान कथावस्तु को जमाना और औत्सुक्य का निरन्तर निर्वाह। आगे क्या होने वाला है, यह जानने की निरन्तर अभिलाषा बनी रहती है। पात्रों को उसने जादूगर की तरह नचाया है। किन्तु जहाँ तक रस-सृष्टि का प्रश्न है, उसमें करुणा हमें उचित स्थान पर मिल ही जाती है। संवेदना जाग्रत करने की शेक्सपियर की अपार शक्ति देखने से हम यहाँ भी वंचित नहीं रहते। परन्तु भावोत्तेजना का गाम्भीर्य हमें पूरे नाटक में कहीं भी नहीं मिलता, परन्तु इसके लिए हमें कवि को दोष नहीं देना चाहिए, क्योंकि कमाल तो उसका यह है कि उसकी वर्ण्य-वस्तु और पात्र अपने वातावरण की सीमा का कहीं भी उल्लंघन नहीं करते। शेक्सपियर जब रुलाना चाहता है, रुलाता है; जब हँसाना चाहता है, तब हँसाता है। अपने विषय पर इतना अधिकार में अन्यत्र लेखकों में शायद ही प्राप्त होगा। शेक्सपियर की प्रतिभा के विविध चमत्कारों में से एक इसको भी गिनना चाहिए।

वातावरण के नाम पर जो शेक्सपियर के बारे में प्रसिद्ध है कि वह कथा के अनुकूल एक ‘हवा’ बाँधता है, उसका यहाँ अभाव भी मिलता है। शेक्सपियर के नाटकों में प्रायः यह मिलता है कि नाटककार पहले ही कथा को खोल देता है और तब उसका प्रदर्शन करता है। इससे उसके नाटकों में कहीं भी औत्सुक्य की कमीं नहीं पड़तीं। किन्तु इस नाटक में ऐसा नहीं है। यहाँ भाइयों और नौकरों की सूरत का एक-सा होना तो प्रारम्भ में ही झलका दिया गया है, परन्तु आगे कुछ नहीं बताया गया। बल्कि इस तरह छिपाए रखने से तो कथा की रोचकता कहीं अधिक बढ़ गई है। कथा का क्लाइमैक्स आता है अन्त में, जब नितान्त अद्भुत ढंग से सारा परिवार आ इकट्ठा होता है, परन्तु उस जगह कहीं अस्वाभाविकता नहीं दिखाई देती। वृद्ध ईजियन की वेदना उस जगह इतनी बड़ी हो जाती है कि पाठक एक तरह से चाहने लगता है कि अब तो रहस्य प्रकट ही हो जाए तो अच्छा। पुजारिन, जो माँ बनकर प्रकट होती है, उसमें मातृहृदय और नारी का क्षमा-भरा हृदय है-यह ऐसा दृढ़ है कि जब वह माँ बनकर आती है, तब उसके हृदय की विशालता ही अकस्मिकता की कुंजी बन जाती है और वह भी बड़ा प्राकृतिक-सा दिखाई देता है।

अनुवाद में अंग्रेजी के दो अर्थ वाले शब्दों का पन ज़रूर कष्टदायक रहा है। मैंने प्रायः ही उनको फुटनोट देकर स्पष्ट करने की चेष्टा की है। आशा है पाठकों को शेक्सपियर का यह नाटक इसलिए भी रुचेगा कि इसमें उसका एक दूसरा ही रूप है।

 

- रांगेय राघव

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