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शक्ति कणों की लीला

अमृता प्रीतम

प्रकाशक : किताबघर प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2010
पृष्ठ :136
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 8283
आईएसबीएन :8170163676

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शक्ति कणों की लीला...

Shakti Kanon Ki Leela - A Hindi Book by Amrita Pritam

सोच की इकाई को तोड़ने की पहली साजिश दुनिया में जाने किसने की थी...

बात चाहे जिस्म की किसी क़ाबलियत की हो, या मस्तक की किसी क़ाबलियत की, पर दोनों तरह की क़ाबलियत को, एक दूसरी की मुख़ालिफ़ करार देकर, एक को ‘जीत गई’ और एक को ‘हार गई’ कहने वाली यह भयानक साज़िश थी, जो इकाई के चाँद सूर्य को हमेशा के लिए एक ग्रहण लगा गई...

और आज हमारी दुनिया मासूम खेलों के मुक़ाबले से लेकर भयानक युद्धों के मुक़ाबले तक ग्रहणित है...

पर इस समय मैं ज़हनी क़ाबलियत के चाँद सूर्य को लगे हुए ग्रहण की बात करूँगी, जिसे सदियों से ‘शास्त्रार्थ’ का नाम दिया जा रहा है।

अपार ज्ञान के कुछ कण जिनकी प्राप्ति होते हैं, वे कण आपस में टकराने के लिए नहीं होते हैं। वे तो एक मुट्ठी में आई किसी प्राप्ति को, दूसरी मुट्ठी में आई किसी प्राप्ति में मिलाने के लिए होते हैं, ताकि हमारी प्राप्तियाँ बड़ी हो जाएँ...

अदबी मुलाक़ातें दो नदियों के संगम हो सकते हैं, पर एक भयानक साज़िश थी कि वे शास्त्रार्थ हो गए...

ज्ञान की नदियों को एक-दूसरे में समाना था, और एक महासागर बनना था, पर जब उनके बहाव के सामने हार-जीत के बड़े-बड़े पत्थर रख दिए गए, तो वे नदियाँ सूखने लगीं... नदियों की आत्मा सूखने लगी...

जीत अभिमानित हो गई, और हार क्रोधित हो गई...
अहम् भी एक भयानक अग्नि है, जिसकी तपिश से आत्मा का पानी सूख जाता है, और क्रोध भी एक भयानक अग्नि है, जो हर प्राप्ति को राख कर देता है...


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