विविध >> 1000 भारतीय संस्कृति प्रश्नोत्तरी 1000 भारतीय संस्कृति प्रश्नोत्तरीराजेंद्र प्रताप सिंह
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भारतीय संस्कृति के संबंध में विभिन्न जानकारियों, वस्तुनिष्ठ तथ्यों और महत्त्वपूर्ण संदर्भों का परिचय देती है....
1000 Bhartiya Sanskrit Prashnottari - A Hindi Book - by Rajendra Pratap Singh
‘1000 भारतीय संस्कृति प्रश्नोत्तरी’ पाठकों को भारतीय संस्कृति से संबद्ध–प्राचीन एवं नवीन–विभिन्न जानकारियों, वस्तुनिष्ठ तथ्यों व महत्त्वपूर्ण संदर्भों से परिचित कराएगी। इसे पढ़कर पाठकगण भारतीय संस्कृति से संबद्ध ग्रंथों व उनके रचनाकारों; महत्त्वपूर्ण तिथियों, दिवसों, पक्षों, माहों व व्रतों; विभिन्न अंकों से संबद्ध जानकारियों; रोमांचक जानकारियों; महापुरुषों, नारियों, देवी-देवाताओं, प्रतीकों; साधु-संतों, ऋषि-मुनियों; स्थलों, नदियों, जीव-जंतुओं; मेले, पर्वों, त्योहारों व उत्सवों; नृत्य-नाय्य शैलियों, चित्रकला, गीत-संगीत, वाद्यों एवं वादकों, गायकों; अस्त्र-शस्त्रों, विभिन्न अवतारों; विभिन्न व्यक्तियों के उपनामों, उपाधियों व सम्मानों; संस्कार, योग, वेद, स्मृति, दर्शन एवं अन्यान्य ग्रंथों के संबंध में संक्षिप्त व महत्त्वपूर्ण जानकारियाँ प्राप्त कर सकेंगे।
विश्वास है, प्रस्तुत पुस्तक सामान्य पाठकों के अलावा लेखकों, संपादकों, पत्रकारों, वक्ताओं, शिक्षकों, विद्यार्थियों और शोधार्थियों के लिए भी उपयोगी सिद्ध होगी। वस्तुतः, यह भारतीय संस्कृति का संदर्भ कोश है।
विश्वास है, प्रस्तुत पुस्तक सामान्य पाठकों के अलावा लेखकों, संपादकों, पत्रकारों, वक्ताओं, शिक्षकों, विद्यार्थियों और शोधार्थियों के लिए भी उपयोगी सिद्ध होगी। वस्तुतः, यह भारतीय संस्कृति का संदर्भ कोश है।
गागर में सागर
भारत एक विशाल देश है। इसमें अनेक धर्मों एवं जातियों के लोग रहते हैं। भारत की सांस्कृतिक विशेषता पूरे विश्व द्वारा प्रशंसित है। किसी भी देश व समाज की जीवंतता और पहचान उसकी अपनी संस्कृति से ही होती है। भारत की भाँति दीर्घ सांस्कृतिक नैरंतर्य से संपन्न देश इस पृथ्वी पर दूसरा नहीं है। बेबीलोनिया और मेसोपोटामिया जैसी संस्कृतियाँ प्राचीन तो अवश्य रही हैं, किंतु आज वे विस्मृत हो चुकी हैं। जबकि भारत में आज भी हजारों वर्ष पूर्व वैदिक व पौराणिक ग्रंथों में रचित श्लोकों की पाठ मौखिक रूप से किया जाता है।
भारतीय संस्कृति को समझने के लिए आवश्यक है कि इसके मर्म को समझा जाए। संस्कृति उस संपूर्ण संसृष्टि को कहते हैं, जिसके अंतर्गत व्यक्ति ज्ञान, विश्वास, कला, रीति-रिवाज और अन्य क्षमताओं और आदतों को अर्जित करता है। हमारी संस्कृति, परंपराएँ एवं संस्कार हमें पीढ़ी-दर-पीढ़ी विरासत में मिले हैं।
प्रस्तुत पुस्तक के माध्यम से लेखक ने संस्कृति के हर क्षेत्र से ऐतिहासिक एवं महत्त्वपूर्ण जानकारी सुधी पाठकों तक पहुँचाने का निष्ठ प्रयास किया है। ग्रंथ एवं रचयिता; अंकों का महत्त्व; नाम कैसे पड़ा; महापुरुष, आदर्श नारियाँ, देवी-देवता, प्रतीक; संस्कार, योग, वेद, स्मृति, दर्शन एवं अन्य ग्रंथ; स्थल, नदियाँ एवं जीव-जंतु; महत्वपूर्ण तिथियाँ, दिवस, पक्ष, माह तथा व्रत; अस्त्र-शस्त्र एवं अवतार; उपनाम, उपाधियाँ एवं सम्मान; और भी बहुत कुछ–आदि शीर्षकों के माध्यम से ‘1000 भारतीय संस्कृति प्रश्नोंत्तरी’ की रचना की गई है।
‘रामायण’ और ‘महाभारत’ तो स्वयं में एक ग्रंथ हैं, इनसे संबंधित किसी भी प्रश्न का उत्तर प्राप्त करने के लिए संबंधित ग्रंथ के पन्ने पलटे जा सकते हैं और उनका उत्तर उसमें मिल भी जाएगा; किंतु सांस्कृतिक प्रश्नों के उत्तर प्राप्त करने के लिए कोई एक निश्चित ग्रंथ नहीं है, जिसमें संबंधित प्रश्नों की जानकारी मिल सके। पाठकों की इसी आवश्यकता को दृष्टिगत रखते हुए राजेंद्रजी ने मात्र एक हजार प्रश्नों के माध्यम से विशाल सांस्कृतिक ज्ञान-सागर का प्रदर्श कराया है, जो बहुत ज्ञानप्रद है।
सामान्यतया लोग बच्चों के जन्म के बाद नामकरण, मुंडन और यज्ञोपवीत आदि संस्कार ही करते हैं और इनसे संबंधित जानकारी रखते हैं, किंतु ‘1000 भारतीय संस्कृति प्रश्नोत्तरी’ के माध्यम से जन्म के बाद के और भी कई महत्त्वपूर्ण संस्कारों की विस्तार से जानकारी दी गई है, जो पाठकों के लिए उपयोगी सिद्ध होगी; जैसे–बाल काटने के पहले जन्म के चार महीने बाद सूर्य-दर्शन कराए जाने, छठे माह में बच्चे को उसी तरह का अन्न खिलाना जैसा उसका स्वभाव बनाना चाहते हों, कानों की एक विशेष नाड़ी का छेदन, शिक्षा आरंभ करने आदि के समय कौन सा संस्कार आयोजित होता है आदि-आदि।
संस्कृति अपने स्वरूप में सागर की भाँति होती है। इससे संबंधित क्षेत्र की जानकारी प्राप्त करना श्रमसाध्य और समयसाध्य होता है; किंतु लेखक ने असाधारण अन्वेषण-कार्य करते हुए उस ज्ञान-सागर को पुस्तक रूपी गागर में भरने का सफल प्रयास किया है। प्रस्तुत पुस्तक में अल्प समय में ही भारतीय संस्कृति से संबंधित व्यापक और विशिष्ट जानकारियाँ अपने पाठकों को उपलब्ध करवाने का लेखकीय प्रयास सार्थक हुआ है।
भारतीय संस्कृति को समझने के लिए आवश्यक है कि इसके मर्म को समझा जाए। संस्कृति उस संपूर्ण संसृष्टि को कहते हैं, जिसके अंतर्गत व्यक्ति ज्ञान, विश्वास, कला, रीति-रिवाज और अन्य क्षमताओं और आदतों को अर्जित करता है। हमारी संस्कृति, परंपराएँ एवं संस्कार हमें पीढ़ी-दर-पीढ़ी विरासत में मिले हैं।
प्रस्तुत पुस्तक के माध्यम से लेखक ने संस्कृति के हर क्षेत्र से ऐतिहासिक एवं महत्त्वपूर्ण जानकारी सुधी पाठकों तक पहुँचाने का निष्ठ प्रयास किया है। ग्रंथ एवं रचयिता; अंकों का महत्त्व; नाम कैसे पड़ा; महापुरुष, आदर्श नारियाँ, देवी-देवता, प्रतीक; संस्कार, योग, वेद, स्मृति, दर्शन एवं अन्य ग्रंथ; स्थल, नदियाँ एवं जीव-जंतु; महत्वपूर्ण तिथियाँ, दिवस, पक्ष, माह तथा व्रत; अस्त्र-शस्त्र एवं अवतार; उपनाम, उपाधियाँ एवं सम्मान; और भी बहुत कुछ–आदि शीर्षकों के माध्यम से ‘1000 भारतीय संस्कृति प्रश्नोंत्तरी’ की रचना की गई है।
‘रामायण’ और ‘महाभारत’ तो स्वयं में एक ग्रंथ हैं, इनसे संबंधित किसी भी प्रश्न का उत्तर प्राप्त करने के लिए संबंधित ग्रंथ के पन्ने पलटे जा सकते हैं और उनका उत्तर उसमें मिल भी जाएगा; किंतु सांस्कृतिक प्रश्नों के उत्तर प्राप्त करने के लिए कोई एक निश्चित ग्रंथ नहीं है, जिसमें संबंधित प्रश्नों की जानकारी मिल सके। पाठकों की इसी आवश्यकता को दृष्टिगत रखते हुए राजेंद्रजी ने मात्र एक हजार प्रश्नों के माध्यम से विशाल सांस्कृतिक ज्ञान-सागर का प्रदर्श कराया है, जो बहुत ज्ञानप्रद है।
सामान्यतया लोग बच्चों के जन्म के बाद नामकरण, मुंडन और यज्ञोपवीत आदि संस्कार ही करते हैं और इनसे संबंधित जानकारी रखते हैं, किंतु ‘1000 भारतीय संस्कृति प्रश्नोत्तरी’ के माध्यम से जन्म के बाद के और भी कई महत्त्वपूर्ण संस्कारों की विस्तार से जानकारी दी गई है, जो पाठकों के लिए उपयोगी सिद्ध होगी; जैसे–बाल काटने के पहले जन्म के चार महीने बाद सूर्य-दर्शन कराए जाने, छठे माह में बच्चे को उसी तरह का अन्न खिलाना जैसा उसका स्वभाव बनाना चाहते हों, कानों की एक विशेष नाड़ी का छेदन, शिक्षा आरंभ करने आदि के समय कौन सा संस्कार आयोजित होता है आदि-आदि।
संस्कृति अपने स्वरूप में सागर की भाँति होती है। इससे संबंधित क्षेत्र की जानकारी प्राप्त करना श्रमसाध्य और समयसाध्य होता है; किंतु लेखक ने असाधारण अन्वेषण-कार्य करते हुए उस ज्ञान-सागर को पुस्तक रूपी गागर में भरने का सफल प्रयास किया है। प्रस्तुत पुस्तक में अल्प समय में ही भारतीय संस्कृति से संबंधित व्यापक और विशिष्ट जानकारियाँ अपने पाठकों को उपलब्ध करवाने का लेखकीय प्रयास सार्थक हुआ है।
अपनी बात
‘1000 रामायण प्रश्नोत्तरी’ एवं ‘1000 महाभारत प्रश्नोत्तरी’ के प्रकाशन के पश्चात् पाठकों की ओर से जो प्रोत्साहन मिला, उसी की परिणति है यह पुस्तक–‘1000 भारतीय संस्कृति प्रश्नोत्तरी’। इसमें भारतीय संस्कृति से संबद्ध एक हजार प्रश्न और उनके चार हजार वैकल्पिक उत्तर दिए गए हैं।
बहुधा हमारे समक्ष यह प्रश्न आता है कि संस्कृति क्या है? या संस्कृति किसे कहते हैं?...संस्कृति–अर्थात् संस्कारित होना, श्रेष्ठ बनना, संस्कारजन्य आचार-विचार व रहन-सहन आदि। जिस स्थिति में हैं वैसी ही स्थिति में रहना, वैसा ही व्यवहार करना प्रकृति कहलाती है–और प्रकृति से च्युत होना, अधोगामी होना, निकृष्ट व्यवहार करना विकृति कही जाती है। विश्व में अनेक संस्कृतियाँ हैं। उन सब में भिन्नता है : भिन्नता है उनकी संस्कृति, प्रकृति एवं विकृति के कारण।
संस्कृति किसी भी राष्ट्र की सर्वाधिक मूल्यवान शक्ति होती है और किसी भी समाज के बौद्धिक, मानसिक एवं आध्यात्मिक विकास की सूचक होती है। ज्ञान एवं विद्या का उपार्जन, धार्मिक एवं नैतिक विचारों का विकास, कला-कौशल के क्षेत्र में उन्नति, सामाजिक रहन-सहन एवं परंपरागत विशिष्टताएँ आदिः ये सब मिलकर किसी भी देश की संस्कृति का निर्माण करती हैं।
भारतीय संस्कृति विश्व की श्रेष्ठतम व प्राचीनतम संस्कृति है। श्रेष्ठ बनने के जो मार्ग भारतीय संस्कृति में सुझाए गए हैं वे सदैव अनुकरणीय व प्रासंगिक रहेंगे। सभी सुखी हों, सभी का कल्याण हो–इसी भाव को लेकर भारत में जीवन-मूल्यों को विकसित किया गया। नैतिकतापूर्ण आचार,विचार व्यवहार, चारित्रिक शुद्धता एवं जीवन-मूल्यों के प्रति जैसी निष्ठता भारतीय संस्कृति में है वैसी विश्व की अन्य संस्कृतियों में मिलना दुर्लभ है।
आज समयाभाव के कारण भारतीय संस्कृति जैसे व्यापक फलकवाने विषय को पढ़ने व जानने का अवसर सबके पास नहीं है। अतः प्रस्तुत पुस्तक की रचना का प्रयोजन ऐसे पाठकों को भारतीय संस्कृति से संबंधित ज्ञान से परिचित एवं समृद्ध करवाना है, जो इस व्यापक विस्तारवाले गहन–गंभीर विषय में रुचि रखते हैं और इसके संबंध में विभिन्न प्रकार की अधिकतम उपयोगी और ज्ञानप्रद जानकारियाँ अल्प समय में ही प्राप्त करना चाहते हैं। यह पुस्तक बहुत कुशलता व सुगमता से अपने पाठकों को भारतीय संस्कृति से संबंधित विभिन्न जानकारियों, वस्तुनिष्ठ तथ्यों व महत्त्वपूर्ण संदर्भों से परिचित कराएगी। इसे पढ़कर पाठकगण भारतीय संस्कृति से संबद्ध ग्रंथों व उनके रचनाकारों; महत्त्वपूर्ण तिथियों, दिवसों, पक्षों, माहों व व्रतों; विभिन्न अंकों से संबद्ध जानकारियों; रोमांचक जानकारियों; महापुरुषों, नारियों, देवी-देवताओं, प्रतीकों; संतों, ऋषि-मुनियों; स्थलों, नदियों, जीव-जंतुओं; मेले, पर्वों, त्योंहारों व उत्सवों; नृत्य-नाट्य शैलियों, चित्रकला, गीत–संगीत, वाद्यों एवं वादकों, गायकों, अस्त्र-शस्त्रों, विभिन्न अवतारों; विभिन्न व्यक्तियों के उपनामों, उपाधियों व सम्मानों; संस्कार, योग, वेद, स्मृति, दर्शन एवं अन्यान्य ग्रंथों के संबंध में संक्षिप्त व महत्त्वपूर्ण जानकारियाँ प्राप्त कर सकेंगे। मुझे विश्वास है, यह पुस्तक लेखकों, संपादकों, पत्रकारों, वक्ताओं, शिक्षकों, विद्यार्थियों व शोधार्थियों के लिए भी उपयोगी सिद्ध होगी। वस्तुतः यह भारतीय संस्कृति का संदर्भ कोश है।
इस पुस्तक को तैयार करने में दो दर्जन से अधिक ग्रंथों की सहायता ली गई है। उन सभी का नामोल्लेख कर पाना यहाँ संभव नहीं। उनके रचनाकारों को अनेकशः धन्यवाद और आभार। पांडुलिपि-निर्माण के समय प्रिय जीवनसंगिनी उषा ने जिस समर्पण व तत्परता से सहयोग किया उस हेतु धन्यवाद तो देना चाहता हूँ, किंतु उनका कहना है कि ‘यह तो मेरा धर्म है’, अतः ‘धन्यवाद’ या ‘आभार’ की गुंजाइश नहीं रही। बेटे नमन और बिटिया निधि ने अपनी बाल-सुलभ चंचलताओं को स्थगित रख लेखन हेतु उचित व अनुकूल वातावरण दिया, उन्हें आशीर्वाद।
अंततः, आपसे निवेदन है कि पुस्तक के संबंध में अपने बहुमूल्य सुझावों से अवश्य अवगत कराएँ। इससे त्रुटियों को सुधारने और पुस्तक को अधिक उपयोगी बनाने का अवसर मिलेगा।
बहुधा हमारे समक्ष यह प्रश्न आता है कि संस्कृति क्या है? या संस्कृति किसे कहते हैं?...संस्कृति–अर्थात् संस्कारित होना, श्रेष्ठ बनना, संस्कारजन्य आचार-विचार व रहन-सहन आदि। जिस स्थिति में हैं वैसी ही स्थिति में रहना, वैसा ही व्यवहार करना प्रकृति कहलाती है–और प्रकृति से च्युत होना, अधोगामी होना, निकृष्ट व्यवहार करना विकृति कही जाती है। विश्व में अनेक संस्कृतियाँ हैं। उन सब में भिन्नता है : भिन्नता है उनकी संस्कृति, प्रकृति एवं विकृति के कारण।
संस्कृति किसी भी राष्ट्र की सर्वाधिक मूल्यवान शक्ति होती है और किसी भी समाज के बौद्धिक, मानसिक एवं आध्यात्मिक विकास की सूचक होती है। ज्ञान एवं विद्या का उपार्जन, धार्मिक एवं नैतिक विचारों का विकास, कला-कौशल के क्षेत्र में उन्नति, सामाजिक रहन-सहन एवं परंपरागत विशिष्टताएँ आदिः ये सब मिलकर किसी भी देश की संस्कृति का निर्माण करती हैं।
भारतीय संस्कृति विश्व की श्रेष्ठतम व प्राचीनतम संस्कृति है। श्रेष्ठ बनने के जो मार्ग भारतीय संस्कृति में सुझाए गए हैं वे सदैव अनुकरणीय व प्रासंगिक रहेंगे। सभी सुखी हों, सभी का कल्याण हो–इसी भाव को लेकर भारत में जीवन-मूल्यों को विकसित किया गया। नैतिकतापूर्ण आचार,विचार व्यवहार, चारित्रिक शुद्धता एवं जीवन-मूल्यों के प्रति जैसी निष्ठता भारतीय संस्कृति में है वैसी विश्व की अन्य संस्कृतियों में मिलना दुर्लभ है।
आज समयाभाव के कारण भारतीय संस्कृति जैसे व्यापक फलकवाने विषय को पढ़ने व जानने का अवसर सबके पास नहीं है। अतः प्रस्तुत पुस्तक की रचना का प्रयोजन ऐसे पाठकों को भारतीय संस्कृति से संबंधित ज्ञान से परिचित एवं समृद्ध करवाना है, जो इस व्यापक विस्तारवाले गहन–गंभीर विषय में रुचि रखते हैं और इसके संबंध में विभिन्न प्रकार की अधिकतम उपयोगी और ज्ञानप्रद जानकारियाँ अल्प समय में ही प्राप्त करना चाहते हैं। यह पुस्तक बहुत कुशलता व सुगमता से अपने पाठकों को भारतीय संस्कृति से संबंधित विभिन्न जानकारियों, वस्तुनिष्ठ तथ्यों व महत्त्वपूर्ण संदर्भों से परिचित कराएगी। इसे पढ़कर पाठकगण भारतीय संस्कृति से संबद्ध ग्रंथों व उनके रचनाकारों; महत्त्वपूर्ण तिथियों, दिवसों, पक्षों, माहों व व्रतों; विभिन्न अंकों से संबद्ध जानकारियों; रोमांचक जानकारियों; महापुरुषों, नारियों, देवी-देवताओं, प्रतीकों; संतों, ऋषि-मुनियों; स्थलों, नदियों, जीव-जंतुओं; मेले, पर्वों, त्योंहारों व उत्सवों; नृत्य-नाट्य शैलियों, चित्रकला, गीत–संगीत, वाद्यों एवं वादकों, गायकों, अस्त्र-शस्त्रों, विभिन्न अवतारों; विभिन्न व्यक्तियों के उपनामों, उपाधियों व सम्मानों; संस्कार, योग, वेद, स्मृति, दर्शन एवं अन्यान्य ग्रंथों के संबंध में संक्षिप्त व महत्त्वपूर्ण जानकारियाँ प्राप्त कर सकेंगे। मुझे विश्वास है, यह पुस्तक लेखकों, संपादकों, पत्रकारों, वक्ताओं, शिक्षकों, विद्यार्थियों व शोधार्थियों के लिए भी उपयोगी सिद्ध होगी। वस्तुतः यह भारतीय संस्कृति का संदर्भ कोश है।
इस पुस्तक को तैयार करने में दो दर्जन से अधिक ग्रंथों की सहायता ली गई है। उन सभी का नामोल्लेख कर पाना यहाँ संभव नहीं। उनके रचनाकारों को अनेकशः धन्यवाद और आभार। पांडुलिपि-निर्माण के समय प्रिय जीवनसंगिनी उषा ने जिस समर्पण व तत्परता से सहयोग किया उस हेतु धन्यवाद तो देना चाहता हूँ, किंतु उनका कहना है कि ‘यह तो मेरा धर्म है’, अतः ‘धन्यवाद’ या ‘आभार’ की गुंजाइश नहीं रही। बेटे नमन और बिटिया निधि ने अपनी बाल-सुलभ चंचलताओं को स्थगित रख लेखन हेतु उचित व अनुकूल वातावरण दिया, उन्हें आशीर्वाद।
अंततः, आपसे निवेदन है कि पुस्तक के संबंध में अपने बहुमूल्य सुझावों से अवश्य अवगत कराएँ। इससे त्रुटियों को सुधारने और पुस्तक को अधिक उपयोगी बनाने का अवसर मिलेगा।
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ग्रंथ एवं रचयिता
1. धर्म-कर्म और यज्ञादि के नियमों को समझाने के लिए जो ग्रंथ लिखे गए उन्हें क्या कहते हैं?
(क) वेद
(ख) कल्पसूत्र
(ग) उपनिषद्
(घ) आरण्यक
2. जिन पुस्तकों में यज्ञों की वेदियाँ बनाने के नियम बताए गए हैं, उन्हें क्या कहते हैं?
(क) ब्राह्मण गंथ
(ख) उपनिषद्
(ग) शुल्बसूत्र
(घ) आरण्यक
3. निम्मलिखित में कौन सा काव्य ग्रंथ श्रीहर्ष द्वारा रचित नहीं है?
(क) विजयप्रशस्ति
(ख) नैषधीय चरित
(ग) दशरूपकम्
(घ) शिवशक्ति सिद्धि
4. निम्नलिखित में कौन सा काव्य ग्रंथ आदि शंकराचार्य द्वारा रचित नहीं है?
(क) भजगोविंदम्
(ख) विवेक चूडामणि
(ग) पंचीकरणम्
(घ) चंडीशतक
5. निम्नलिखित में कौन सा काव्य ग्रंथ पंडितराज जगन्नाथ कृत नहीं है?
(क) गंगालहरी
(ख) सौंदर्यलहरी
(ग) करुणालहरी
(घ) अमृतलहरी
6. ‘पंचतंत्र’ नामक प्राचीन कथा ग्रंथ किसके द्वारा लिखा गया है?
(क) नायराण पंडित
(ख) विष्णु शर्मा
(ग) कालिदास
(घ) अश्वघोष
(क) वेद
(ख) कल्पसूत्र
(ग) उपनिषद्
(घ) आरण्यक
2. जिन पुस्तकों में यज्ञों की वेदियाँ बनाने के नियम बताए गए हैं, उन्हें क्या कहते हैं?
(क) ब्राह्मण गंथ
(ख) उपनिषद्
(ग) शुल्बसूत्र
(घ) आरण्यक
3. निम्मलिखित में कौन सा काव्य ग्रंथ श्रीहर्ष द्वारा रचित नहीं है?
(क) विजयप्रशस्ति
(ख) नैषधीय चरित
(ग) दशरूपकम्
(घ) शिवशक्ति सिद्धि
4. निम्नलिखित में कौन सा काव्य ग्रंथ आदि शंकराचार्य द्वारा रचित नहीं है?
(क) भजगोविंदम्
(ख) विवेक चूडामणि
(ग) पंचीकरणम्
(घ) चंडीशतक
5. निम्नलिखित में कौन सा काव्य ग्रंथ पंडितराज जगन्नाथ कृत नहीं है?
(क) गंगालहरी
(ख) सौंदर्यलहरी
(ग) करुणालहरी
(घ) अमृतलहरी
6. ‘पंचतंत्र’ नामक प्राचीन कथा ग्रंथ किसके द्वारा लिखा गया है?
(क) नायराण पंडित
(ख) विष्णु शर्मा
(ग) कालिदास
(घ) अश्वघोष
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