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कुन्तो

भीष्म साहनी

प्रकाशक : राजकमल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2007
पृष्ठ :331
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 8246
आईएसबीएन :9788126714247

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भीष्म साहनी का यह उपन्यास किसी कालखंड का ऐतिहासिक दस्तावेज न होकर मानवीय संबंधों, संवेदनाओं, करवट लेते परिवेश और मानव नियति के बदलते रंगों की ही कहानी कहता है।...

Kunto - A Hindi Book - by Bhisham Sahni

भीष्म साहनी का यह उपन्यास ऐसे कालखंड की कहानी कहता है जब लगने लगा था कि हम इतिहास के किसी निर्णायक मोड़ पर खड़े हैं, जब करवटें लेती ज़िंदगी एक दिशा विशेष की ओर बढ़ती जान पड़ने लगी थी। आपसी रिश्ते, सामाजिक सरोकार, घटना-प्रवाह के उतार-चढ़ाव उपन्यास के विस्तृत फलक पर उसी कालखंड के जीवन का चित्र प्रस्तुत करते हैं। केन्द्र में जयदेव-कुंतो-सुषमा-गिरीश के आपसी संबंध हैं अपनी उत्कट भावनाओं और आशाओं-अपेक्षाओं को लिये हुए। लेकिन कुंतो-जयदेव और सुषमा-गिरीश के अन्तर संबंधों के आस-पास जीवन के अनेक अन्य प्रसंग और पात्र उभरकर आते हैं। इनमें हैं प्रोफे स्साब जो एक संतुलित जीवन को आदर्श मानते हैं और इसी ‘सुनहरी मध्यम मार्ग’ के अनुरूप जीवन को ढ़ालने की सीख देते हैं; हीरालाल है जो मनादी करके अपनी जीविका कमाता है, पर उत्कट भावनाओं से उद्धेलित होकर मात्र मनादी करने पर ही संतुष्ट नहीं रह पाता; हीरालाल की विधवा माँ और युवा घरवाली हैं; सात वर्ष के बाद विदेश से लौटा धनराज और उसकी पत्नी हैं; सहदेव है। ऐसे अनेक पात्र उपन्यास के फलक पर अपनी भूमिका निभाते हुए, अपने भाग्य की कहानी कहते हुए प्रकट और लुप्त होते हैं। और रिश्तों और घटनाओं का

यह ताना-बाना उन देशव्यापी लहरों और आंदोलनों की पृष्ठभूमि के सामने होता है जब लगता था कि हमारा देश इतिहास के किसी मोड़ पर खड़ा है।

पर यह उपन्यास किसी कालखंड का ऐतिहासिक दस्तावेज न होकर मानवीय संबंधों, संवेदनाओं, करवट लेते परिवेश और मानव नियति के बदलते रंगों की ही कहानी कहता है।

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