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चूल्हा और चक्की

ओमप्रकाश दत्त

प्रकाशक : राजकमल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2002
पृष्ठ :78
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 8220
आईएसबीएन :8126706090

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इसमें आजादी के पूर्व से लेकर गांधी हत्या तक की राजनीतिक हलचलों की अनुगूँज भी सुनाई पड़ेगी । प्रवाहपूर्ण भाषा तथा बतकही के शिल्प में बुना यह उपन्यास बेहद पठनीय बन पड़ा है ।

चूल्हा और चक्की किसी भी देश या समाज की सांस्कृतिक पहचान सिर्फ वहाँ जन्मे महापुरुषों से ही नहीं बनती बल्कि संस्कृति के निर्माण में उन अनाम लोगों की भी भागीदारी होती है जो रोजमर्रा की गतिविधियों में संलग्न रहते हुए भी अपना एक जीवन–सन्देश छोड़ जाते हैं । शहर चकवाल की भागवंती ऐसा ही चरित्र है जिसने अनपढ़ होते हुए भी अपने बच्चों को पढ़ा–लिखाकर न केवल काबिल बनाया बल्कि इंसानियत के गुण भी उनमें विकसित किए । घर–गृहस्थी के चूल्हा, चरखा और चक्की में व्यस्त रहने वाली भागवंती जितनी पारंपरिक है, उतनी ही आधुनिक भी । उसका चरित्र जैसे एक अबूझ पहेली हो ! गांधी हत्या के बाद पहले तो वह अपने पति से कहती है कि ‘‘शोक मनाना है तो मनाओ, तुम्हारे लिए महात्मा होगा या उन लोगों के लिए जो कुर्सियाँ सँभाले बैठे हैं ।’’ लेकिन थोड़ी ही देर बाद जब बहू आकर पूछती है कि आज खाना क्या बनेगा तो एक पल रुककर गुस्से में कहती हैµ‘‘कैसे घर से आई हो तुम ! इतना बड़ा आदमी मर गया और तुम पूछ रही होµखाना क्या पकेगा ! शर्म नहीं आती ?’’ सुख–दुख, हास्य–रुदन, जीवन–मरण, अच्छाई–बुराई की जीवंत झलकियों का सुन्दर कोलाज है यह लघु औपन्यासिक कृति । इसमें आजादी के पूर्व से लेकर गांधी हत्या तक की राजनीतिक हलचलों की अनुगूँज भी सुनाई पड़ेगी । प्रवाहपूर्ण भाषा तथा बतकही के शिल्प में बुना यह उपन्यास बेहद पठनीय बन पड़ा है ।

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