उपन्यास >> तीन सहेलियाँ तीन प्रेमी तीन सहेलियाँ तीन प्रेमीआकांक्षा पारे काशिव
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तीन अविवाहित लड़कियों की कहानी है यह जो तीन विवाहित पुरुषों से प्रेम करती हैं।
हो सकता है कि इधर कहानी की परिभाषा बदल गई हो, लेकिन मेरे हिसाब से एक अच्छी कहानी की अनिवार्य शर्त उसकी पठनीयता होनी चाहिए। आतंक जगाने वाली शुरुआत कहानी में न हो, वह अपनत्व से बाँधती हो तो मुझे अच्छी लगती है। आकांक्षा की कहानी ‘तीन सहेलियाँ तीन प्रेमी’ पढ़ना शुरु किया तो मैं पढ़ती चली गयी। यह कहानी दिलचस्प संवादों में चली है। उबाऊ वर्णन कहीं है ही नहीं। सम्प्रेष्णीयता कहानी के लिए जरूरी दूसरी शर्त है। लेखक जो कहना चाह रहा है, वह पाठक तक पहुँच रहा है। इस कहानी के पाठक को बात समझाने के लिए जद्दोजहद नहीं करनी पड़ती।
संवादों में बात हम तक पहुँचती है। स्पष्ट हो जाता है कि कहानी कहती क्या है। लेखक क्या कहना चाहता है। एक चीज यह भी है कि रचनाकार ने कोई महत्त्वपूर्ण मुद्दा उठाया है, वह है व्यक्ति का, या समाज का। आखिर वह मुद्दा क्या है। सहज ढंग से, तीन अविवाहित लड़कियों की कहानी है यह जो तीन विवाहित पुरुषों से प्रेम करती हैं। वहाँ हमें मिलना कुछ नहीं है, यह जानते हुए भी वे उस रास्ते पर जाती हैं। अच्छी बात यह है कि आकांक्षा ने न पुरुषों को बहुत धिक्कारा है, न आँसू बहाए हैं। कहानी सहज-सरल ढंग से चलती है। लड़कियाँ अपनी सीमाएँ जानते हुए भी सेलिब्रेट करती हैं और अन्त में अविवाहित जीवन की त्रासदी होते हुए भी (त्रासदी मैं कह रही हूँ, कहानी में नहीं है), कहीं यह भाव नहीं है, यह जीवन का यथार्थ है। जो मिला नहीं है, उसे भी सेलिब्रेट करो। आकांक्षा से पहली बार मिलने पर मुझे लगा था कि यह लड़की सहज है। फिर एक शहर का होने के नाते निकटता और बढ़ी।
-मन्नू भंडारी
संवादों में बात हम तक पहुँचती है। स्पष्ट हो जाता है कि कहानी कहती क्या है। लेखक क्या कहना चाहता है। एक चीज यह भी है कि रचनाकार ने कोई महत्त्वपूर्ण मुद्दा उठाया है, वह है व्यक्ति का, या समाज का। आखिर वह मुद्दा क्या है। सहज ढंग से, तीन अविवाहित लड़कियों की कहानी है यह जो तीन विवाहित पुरुषों से प्रेम करती हैं। वहाँ हमें मिलना कुछ नहीं है, यह जानते हुए भी वे उस रास्ते पर जाती हैं। अच्छी बात यह है कि आकांक्षा ने न पुरुषों को बहुत धिक्कारा है, न आँसू बहाए हैं। कहानी सहज-सरल ढंग से चलती है। लड़कियाँ अपनी सीमाएँ जानते हुए भी सेलिब्रेट करती हैं और अन्त में अविवाहित जीवन की त्रासदी होते हुए भी (त्रासदी मैं कह रही हूँ, कहानी में नहीं है), कहीं यह भाव नहीं है, यह जीवन का यथार्थ है। जो मिला नहीं है, उसे भी सेलिब्रेट करो। आकांक्षा से पहली बार मिलने पर मुझे लगा था कि यह लड़की सहज है। फिर एक शहर का होने के नाते निकटता और बढ़ी।
-मन्नू भंडारी
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