उपन्यास >> शकुन्तला शकुन्तलानमिता गोखले
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एकदम मौलिक और मर्मस्पर्शी उपन्यास
काशी के घाट पर, एक नेत्रहीन पंडित एक युवती से कहता है कि अपने पूर्वजन्म का सामना करे, वही उसे मृत्यु और पुनर्जन्म के चक्र से बांधे हुए है। वह याद करती है कि उस जीवन में वह शकुंतला थी - उत्फुल्ल, कल्पनाशील और साहसी, पर अपनी मिथकीय नामराशि शकुंतला की भाँति उसकी नियति में भी ‘त्यागे जाने के संस्कार’ से त्रस्त रहना था।
पहली बार शकुंतला घर से भागती है, तो एक कंदरा में निवास करने वाली स्त्री की शरण लेती है, जो उसे आदि देवी के रहस्यों और शक्तियों से परिचित करवाती है। ‘‘ध्यान रखना,’’ वह कहती है, ‘‘अपने हर रूप में देवी स्वयं अपनी स्वामिनी है।’’ बाद में जीवन के आश्चर्यजनक उतार-चढ़ावों के बीच शकुंतला इस अमोल सीख का रहस्य समझती है।
जब उसके पति अपनी सुदूर यात्रा से उसके लिए एक दासी ले कर आते हैं, तो संदेह और ईर्ष्या से भर कर वह यदुरि-पतिता-का रूप धर लेती है, और अपने घर और कर्त्तव्यों से मुख फेर कर गंगा किनारे मिले एक यूनानी पथिक के साथ चल देती है। साथ-साथ वे काशी की यात्रा करते हैं, वहाँ शकुंतला रंगरेलियों में लिप्त हो जाती है, नियमों और बंधनों से मुक्त आनंदलोक में विचरती है, जोकि उसकी सदैव से इच्छा रही थी। पर शीघ्र ही एक व्याकुलता उसे इस संसार को भी त्याग देने को बाध्य कर देती है...
एकदम मौलिक और मर्मस्पर्शी उपन्यास शकुंतला एक ऐसी स्त्री के त्रासदीपूर्ण जीवन का सजीव चित्रण है, जिसकी अपनी शर्तों पर जीने की इच्छा को परिस्थितियां और उसके युग का समाज पग-पग पर कुचल देता है। नमिता गोखले ने कथानक में इतिहास, धर्म और दर्शन को असाधारण कौशल से पिरो कर एक अपूर्व उपन्यास रचा है जो अपने पुरातन युग-काल से भी आगे निकल जाता है।
लेखक परिचय : नमिता गोखले का जन्म 1956 में हुआ। अंग्रेजी में अब तक उनके चार उपन्यास - ‘पारो ड्रीम्स ऑफ़ पैशन,’ ‘गॉड्स, ग्रेव्ज़ एंड ग्रांडमदर,’ ‘ए हिमालयन लव स्टोरी’ और ‘द बुक ऑफ़ शैडोज़’ - तथा कथेतर पुस्तकें माउंटेन इकोज़ और ‘द बुक ऑफ़ शिवा’ प्रकाशित हो चुकी हैं। नमिता गोखले दिल्ली में निवास करती हैं। अनुवादक शुचिता मीतल पिछले कई वर्षों से भारतीय अनुवाद परिषद, नई दिल्ली व अनुवाद कार्य से जुड़ी हुई हैं।
पहली बार शकुंतला घर से भागती है, तो एक कंदरा में निवास करने वाली स्त्री की शरण लेती है, जो उसे आदि देवी के रहस्यों और शक्तियों से परिचित करवाती है। ‘‘ध्यान रखना,’’ वह कहती है, ‘‘अपने हर रूप में देवी स्वयं अपनी स्वामिनी है।’’ बाद में जीवन के आश्चर्यजनक उतार-चढ़ावों के बीच शकुंतला इस अमोल सीख का रहस्य समझती है।
जब उसके पति अपनी सुदूर यात्रा से उसके लिए एक दासी ले कर आते हैं, तो संदेह और ईर्ष्या से भर कर वह यदुरि-पतिता-का रूप धर लेती है, और अपने घर और कर्त्तव्यों से मुख फेर कर गंगा किनारे मिले एक यूनानी पथिक के साथ चल देती है। साथ-साथ वे काशी की यात्रा करते हैं, वहाँ शकुंतला रंगरेलियों में लिप्त हो जाती है, नियमों और बंधनों से मुक्त आनंदलोक में विचरती है, जोकि उसकी सदैव से इच्छा रही थी। पर शीघ्र ही एक व्याकुलता उसे इस संसार को भी त्याग देने को बाध्य कर देती है...
एकदम मौलिक और मर्मस्पर्शी उपन्यास शकुंतला एक ऐसी स्त्री के त्रासदीपूर्ण जीवन का सजीव चित्रण है, जिसकी अपनी शर्तों पर जीने की इच्छा को परिस्थितियां और उसके युग का समाज पग-पग पर कुचल देता है। नमिता गोखले ने कथानक में इतिहास, धर्म और दर्शन को असाधारण कौशल से पिरो कर एक अपूर्व उपन्यास रचा है जो अपने पुरातन युग-काल से भी आगे निकल जाता है।
लेखक परिचय : नमिता गोखले का जन्म 1956 में हुआ। अंग्रेजी में अब तक उनके चार उपन्यास - ‘पारो ड्रीम्स ऑफ़ पैशन,’ ‘गॉड्स, ग्रेव्ज़ एंड ग्रांडमदर,’ ‘ए हिमालयन लव स्टोरी’ और ‘द बुक ऑफ़ शैडोज़’ - तथा कथेतर पुस्तकें माउंटेन इकोज़ और ‘द बुक ऑफ़ शिवा’ प्रकाशित हो चुकी हैं। नमिता गोखले दिल्ली में निवास करती हैं। अनुवादक शुचिता मीतल पिछले कई वर्षों से भारतीय अनुवाद परिषद, नई दिल्ली व अनुवाद कार्य से जुड़ी हुई हैं।
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