उपन्यास >> अस्ति-अस्तु अस्ति-अस्तुअभिमन्यु अनत
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समुद्र-मंथन से अमृत भी निकलता है और विष भी। मॉरिशस के गिरमिटिया मजदूरों ने न केवल समुद्र-मंथन ही किया अपितु भू-मंथन कर उजाड़ और वीरान टापू को स्वर्ग भी बना दिया
“तुम्हें हमारी मदद जारी रखनी होगी, करन!”
“नहीं, हमजा! हम सिर्फ दोस्त बने रहेंगे। यह घटिया काम अब मुझसे नहीं होगा। वैसे मैं अपने मंत्री से भी झगड़ चुका हूँ।”
“परमेश्वर को छोड़ो, उससे तो मैं खुद निबट लूँगा। उस हरामी के बहुत सारे कारनामे मुझे मालूम हैं।”
“हमजा! मैंने आज तक अपनी पत्नी से छिपाकर कुछ भी नहीं किया। पर अब तो ये बातें मेरी बेटी और बेटों को भी मालूम हो गई हैं। मैं अब कोई गैर-कानूनी काम नहीं कर सकता। मैंने तय कर लिया है कि...”
“क्या तय कर लिया है तुमने? यही कि अपने बच्चों को एक बेहतर भविष्य से महरूम कर बैठो? तुमने फोन पर कहा था कि इस देश के व्यापारी बेईमान और चोर हैं। पर कभी अपने से यह पूछा तुमने कि ये बेईमान क्यों बने?”
“तुमसे सुनकर जानना चाहता हूँ।”
“तो सुनो, यहाँ के मुझ जैसे व्यापारी साड़ी, सलवार-कमीज, कुरता-पाजामा, शेरवानी, जोधपुरी इत्यादि कपड़े भारत से मँगवाते और बेचते रहे हैं तो धन कमाने के लिए। पर मैं अपनी बता रहा हूँ तुम्हें। मैं भी यह काम धन कमाने के लिए करता हूँ; पर साथ-ही-साथ मेरा हमेशा से एक और मकसद रहा है।” हमजा के चुप हो जाने पर करन को पूछना ही पड़ा, “क्या है वह दूसरा मकसद?”
—इसी उपन्यास से
समुद्र-मंथन से अमृत भी निकलता है और विष भी। मॉरिशस के गिरमिटिया मजदूरों ने न केवल समुद्र-मंथन ही किया अपितु भू-मंथन कर उजाड़ और वीरान टापू को स्वर्ग भी बना दिया। किंतु मॉरिशस की वर्तमान युवा पीढ़ी की दशा-दिशा और वहाँ का सामाजिक-राजनीतिक जीवन किस प्रकार ह्रासोन्मुख है, इसका बहुत ही सूक्ष्मता से वर्णन किया है अभिमन्यु अनत ने अपने इस उपन्यास में।
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