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शब्द और देशकाल

कुँवर नारायण

प्रकाशक : राजकमल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2013
पृष्ठ :128
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 8176
आईएसबीएन :9788126723454

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कुँवर नारायण द्वारा विभिन्न विशिष्ट अवसरों पर दिए गए व्याख्यान एवं लेख

Shabd aur Deshkal by Kunwar Narain

कवि और चिन्तक के रूप में कुँवर नारायण का हस्तक्षेप हिन्दी साहित्य में अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है। वस्तुतः वे कविर्मनीषी के रूप में सर्वसमादृत हैं। ‘शब्द और देशकाल’ पुस्तक कुँवर नारायण की विचार-सम्पदा का एक अनूठा उदाहरण है। इसमें विभिन्न विशिष्ट अवसरों पर दिए गए उनके व्याख्यानों के साथ कुछ लेख भी उपस्थित हैं। भाषा, साहित्य, समाज, मीडिया, अनुवाद और अन्य प्रश्नों पर केन्द्रित उनके विचार ध्यानपूर्वक पढ़े जाने की माँग करते हैं। कुँवर जी की केन्द्रीय चिन्ता जीवन को समरस बनाने की है। इस क्रम में शाश्वत सन्दर्भों के साक्ष्य उभरते हैं। साथ ही, वर्तमान विश्व जिस अन्याय से त्रस्त है उसके मानवीय समाधान की दिशाएँ भी प्रशस्त होती हैं। ‘साहित्य के सामाजिक सरोकार के माने’ में कुँवर जी कहते हैं, ‘इतना ही काफी नहीं कि साहित्य जीवन के दैनिक और व्यावहारिक पक्ष से ही अपनी पहचान बनाए। अगर समाज का आत्मिक और नैतिक पक्ष भी नहीं उभरता तो साहित्य का काम अधूरा रह जाएगा।’

कुँवर नारायण बहुअधीत रचनाकार हैं। यही कारण है कि उनका लेखन देश और काल की सीमित और सुविदित परिधियों का विस्तार करता है। ‘विश्व विवेक’ के साथ चिन्तन करने वाले कुँवर नारायण के ये आलेख पाठक को तात्विक रूप से संशोधित और समृद्ध करते हैं। स्मृति, विचार, रचना और बोध के विरुद्ध खड़े समय-समाज के सम्मुख कुँवर जी एक मानवीय पक्ष उद्घाटित करते हैं।

पढ़े और गुने जाने योग्य एक संग्रहणीय पुस्तक।


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