सिनेमा एवं मनोरंजन >> मासूमा मासूमाइस्मत चुगताई
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‘मासूम’ गुलज़ार की बेहद लोकप्रिय फ़िल्मों में रही है। यह इसी फिल्म का मंज़रनामा है।
Masooma by Ismat Chugtai
प्रस्तुत है पुस्तक के कुछ अंश
साहित्य में मंज़रनामा एक मुकम्मिल फॉर्म है। यह एक ऐसी विधा है जिसे पाठक बिना किसी रुकावट के रचना का मूल आस्वाद लेते हुए पढ़ सकें। लेकिन मंज़रनामा का अन्दाज़े-बयान अमूमन मूल रचना से अलग हो जाता है या यूँ कहे कि वह मूल रचना का इन्टरप्रेटेशन हो जाता है।
मंज़रनामा पेश करने का एक उद्देश्य तो यह है कि पाठक इस फॉर्म से रू-ब-रू हो सकें और दूसरा यह कि टी.वी. और सिनेमा में दिलचस्पी रखने वाले लोग यह देख-जान सके कि किसी कृति को किस तरह मंज़रनामों की शक्ल दी जाती है। टी.वी. की आमद से मंज़रनामों की जरूरत में बहुत इजाफ़ा हो गया है।
‘मासूम’ गुलज़ार की बेहद लोकप्रिय फ़िल्मों में रही है। यह इसी फिल्म का मंज़रनामा है। गुलज़ार का ही लिखा हुआ इस फ़िल्म का एक गाना ‘लकड़ी की काठी...’ आज भी बच्चों की जुबान पर रहता है। पिता के नाम को तरसते एक मासूम बच्च के इर्द-गिर्द बुनी हुई यह अति संवेदनशील और भावनाप्रवण फ़िल्म मूलतः रिश्तों के बदलते हुए ‘फ्रेम्स’ की कहानी है। एक तरफ़ रिश्तों का एक परिभाषित एवं मान्य रूप है और दूसरी तरफ़ वह रूप, जिसे सामान्यतः समाज का समर्थन नहीं होता। लेकिन अन्ततः, लम्बे तनाव के बाद जीत मानवीय संवेदना और प्रेम की ही होती है। यही इस फ़िल्म की मंतव्य है।
निश्चय ही यह कृति पाठकों को औपन्यासिक रचना का आस्वाद प्रदान करेगी।
मंज़रनामा पेश करने का एक उद्देश्य तो यह है कि पाठक इस फॉर्म से रू-ब-रू हो सकें और दूसरा यह कि टी.वी. और सिनेमा में दिलचस्पी रखने वाले लोग यह देख-जान सके कि किसी कृति को किस तरह मंज़रनामों की शक्ल दी जाती है। टी.वी. की आमद से मंज़रनामों की जरूरत में बहुत इजाफ़ा हो गया है।
‘मासूम’ गुलज़ार की बेहद लोकप्रिय फ़िल्मों में रही है। यह इसी फिल्म का मंज़रनामा है। गुलज़ार का ही लिखा हुआ इस फ़िल्म का एक गाना ‘लकड़ी की काठी...’ आज भी बच्चों की जुबान पर रहता है। पिता के नाम को तरसते एक मासूम बच्च के इर्द-गिर्द बुनी हुई यह अति संवेदनशील और भावनाप्रवण फ़िल्म मूलतः रिश्तों के बदलते हुए ‘फ्रेम्स’ की कहानी है। एक तरफ़ रिश्तों का एक परिभाषित एवं मान्य रूप है और दूसरी तरफ़ वह रूप, जिसे सामान्यतः समाज का समर्थन नहीं होता। लेकिन अन्ततः, लम्बे तनाव के बाद जीत मानवीय संवेदना और प्रेम की ही होती है। यही इस फ़िल्म की मंतव्य है।
निश्चय ही यह कृति पाठकों को औपन्यासिक रचना का आस्वाद प्रदान करेगी।
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