उपन्यास >> रेत के घर रेत के घरसुदर्शन प्रियदर्शिनी
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रेत की हथेली पर कुछ न ठहरा सब बिखर गया...। कुछ ऐसे अनुभवों की कहानी जो अपनी विसंगतियों से यदा-कदा झिंझोड़ जाती है।...
रेत की हथेली पर कुछ न ठहरा सब बिखर गया...। जीवन को धीरे-धीरे पीस-पीसकर चलते और देखते हैं, जीवन उन्हें ही अधिक सालता है, जो जीवन को भागकर छलाँगों में लाँघ जाते हैं उन्हें राह के काँटे झाड़ भी नहीं पाते।
जीवन के एक-एक सम्बन्ध पर अंगुली रखकर उसके रेशों की मुलायमी और तल्खी को करने वाला ही आखिर टूटता है। एक-एक सम्बन्ध एक-एक रेशा जैसा जीवन के संग्राम में बँधा होकर टूट जाता है। सच्चाई के ब्रह्माण्ड को नापने वालों के पाँव थकते नहीं, गल बेशक जाते हैं। जीवन की धार में बह निकलने वालों का अपना कोई घर नहीं होता... वह तो केवल धारा के साथ बह सकते हैं और कहीं भी पहुँच सकते हैं। शरीर-पुराण के समक्ष, कुछ क्षण सभी हारते हैं। कभी-कभी वह दुर्बल क्षण जीवनभर के लिए यक्ष के प्रश्न बनकर सारे जीवन को ग्रस लेते हैं।
उसके बाद आज पुनः एक बार साहस हारा हूँ... तब मैं विवशता के वशीभूत होकर हारा था, आज अपने ही आवेगभरे किसी क्षण के समक्ष धराशायी हुआ हूँ। तब जीवन और मृत्यु की दुविधाओं के बीच विवश छटपटाता खड़ा था आज नैतिक-अनैतिक के बीच प्रश्नचिह्न बना खड़ा हूँ...।
जीवन के एक-एक सम्बन्ध पर अंगुली रखकर उसके रेशों की मुलायमी और तल्खी को करने वाला ही आखिर टूटता है। एक-एक सम्बन्ध एक-एक रेशा जैसा जीवन के संग्राम में बँधा होकर टूट जाता है। सच्चाई के ब्रह्माण्ड को नापने वालों के पाँव थकते नहीं, गल बेशक जाते हैं। जीवन की धार में बह निकलने वालों का अपना कोई घर नहीं होता... वह तो केवल धारा के साथ बह सकते हैं और कहीं भी पहुँच सकते हैं। शरीर-पुराण के समक्ष, कुछ क्षण सभी हारते हैं। कभी-कभी वह दुर्बल क्षण जीवनभर के लिए यक्ष के प्रश्न बनकर सारे जीवन को ग्रस लेते हैं।
उसके बाद आज पुनः एक बार साहस हारा हूँ... तब मैं विवशता के वशीभूत होकर हारा था, आज अपने ही आवेगभरे किसी क्षण के समक्ष धराशायी हुआ हूँ। तब जीवन और मृत्यु की दुविधाओं के बीच विवश छटपटाता खड़ा था आज नैतिक-अनैतिक के बीच प्रश्नचिह्न बना खड़ा हूँ...।
सुदर्शन प्रियदर्शिनी
जन्म स्थान: लाहौर (अविभाजित भारत)।
शिक्षा : एम.ए. एवं हिन्दी में पी-एच.डी. (1982), (पंजाब विश्वविद्यालय)। लिखने का जुनून बचपन से ही।
प्रकाशित कृतियाँ : सूरज नहीं उगेगा, अरी ओ कनिका और रेत की दीवार (उपन्यास), काँच के टुकड़े (कहानी संग्रह), शिखण्डी युग और वरहा (कविता संग्रह)। भारत और अमेरिका के कई संकलनों में रचनाएं संकलित। विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में रचनाओं का प्रकाशन।
पुरस्कार : हिन्दी परिषद टोरंटो का महादेवी पुरस्कार तथा ओहायो गवर्नर मीडिया पुरस्कार।
सम्प्रति : क्लीवलैंड, ओहायो, अमेरिका में निवास और साहित्य सृजनरत।
शिक्षा : एम.ए. एवं हिन्दी में पी-एच.डी. (1982), (पंजाब विश्वविद्यालय)। लिखने का जुनून बचपन से ही।
प्रकाशित कृतियाँ : सूरज नहीं उगेगा, अरी ओ कनिका और रेत की दीवार (उपन्यास), काँच के टुकड़े (कहानी संग्रह), शिखण्डी युग और वरहा (कविता संग्रह)। भारत और अमेरिका के कई संकलनों में रचनाएं संकलित। विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में रचनाओं का प्रकाशन।
पुरस्कार : हिन्दी परिषद टोरंटो का महादेवी पुरस्कार तथा ओहायो गवर्नर मीडिया पुरस्कार।
सम्प्रति : क्लीवलैंड, ओहायो, अमेरिका में निवास और साहित्य सृजनरत।
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