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बीच में विनय (सजिल्द)

स्वयं प्रकाश

प्रकाशक : राजकमल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2002
पृष्ठ :243
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 8132
आईएसबीएन :8126703723

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बीच में विनय...

Beech Mein Vinay - A Hindi book by - Swayam Prakash

प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश

अपनी प्रगतिशील रचनादृष्टि के लिए सुपरिचित कथाकार स्वयं प्रकाश की विशेषता यह है कि उनकी रचना पर विचारधारा आरोपित नहीं होती बल्कि जीवन-स्थितियों के बीच से उभरती और विकसित होती है, जिसका ज्वलंत उदाहरण है यह उपन्यास।

बीच में विनय की कथा भूमि एक कस्बा है, एक ऐसा कस्बा जो शहरों की हदों को छूता है। वहाँ एक डिग्री कालिज है और है एक मिल। कालिज में एक अंग्रेजी के प्रोफेसर हैं – भुवनेश – विचारधारा से वामपंथी. मार्क्सवादी सिद्धांतों के ज्ञाता। दूसरी तरफ मिल-मजदूरों की यूनियन के एक नेता है – कामरेड कहलाते हैं, खास पढ़े-लिखे नहीं। मार्क्सवाद का पाठ उन्होंने जीवन की पाठशाला में पढ़ा है। और इन दो ध्रवों के बीच अक युवक है विनय – वामपंथी विचारधारा से प्रभावित। प्रोफेसर भुवनेश उसे आकर्षित करते हैं, कामरेड उसका सम्मान करते हैं और उसे स्नेह देते हैं। वह दोनों के बीच में है लेकिन वे दोनों यानी कामरेड और प्रोफेसर... तीन-छह का रिश्ता है उनमें – दोनों एक-दूसरे को, एक-दूसरे की कार्यशैली को नापसंद करते हैं। विनय देखता है दोनों को और शायद समझता भी है कि यह साम्यवादी राजनीति की विफलता है। लेकिन उसके समझने से क्या होता है...

कस्बे की धड़कती हुई जिन्दगी और प्राणवान चरित्रों के सहारे स्वयं प्रकाश ने यह दिखाने की कोशिश की है कि वहाँ के वामपंथी किस प्रकार आचरण कर रहे थे। लेकिन क्या उनका यह आचरण उस कस्बे तक ही सीमित है? क्या उसमें पूरे देश के वामपंथी आंदोलन की छाया दिखाई नहीं देती है? स्वयं प्रकाश की सफलता इसी बात में है कि उन्होंने थोड़ा कहकर बहुत कुछ को इंगित कर दिया है। संक्षेप में कहे तो यह उपन्यास भारत के साम्यवादी आंदोलन के पचास सालों की कारकर्दगी पर एक विचलित कर देने वाली टिप्पणी है। एक उत्तेजक बहस।

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