कहानी संग्रह >> मिलियन डॉलर नोट तथा अन्य कहानियाँ मिलियन डॉलर नोट तथा अन्य कहानियाँमालती जोशी
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मालती जोशी की 11 श्रेष्ठ कहानियों का संग्रह
अम्मा ने जैसे ही पाउच आगे बढ़ाया, मीनू ने एक झटके से हाथ हटा लिया, जैसे उसे बिजली का करंट लग गया हो, ‘‘नहीं अम्मा! अब मैं यह हार नहीं लूँगी।’’
‘‘क्यों? मेरी चीज है। मैं दे रही हूँ।’’
‘‘हाँ, पर इस हार को लेकर पता नहीं तुम क्या-क्या सोच गई थीं। तुमने तो भाभी को भी कटघरे में खड़ा कर दिया था। कल को भाभी भी ऐसा कर सकती हैं। भाभी तो यही सोचेंगी कि यह चीज तीन साल पहले ही तुमने मुझे दे दी होगी और किसी को बताया तक नहीं। वह तो सोचेंगी कि इस तरह तुमने और भी बहुत कुछ दिया होगा, जिसका उन्हें पता नहीं है। मैं तो शर्म के मारे भैया के सामने खड़ी भी न हो सकूंगी।’’
‘‘इसमें शर्म की क्या बात है! क्या मुझे इतना भी हक नहीं है?’’
‘‘अम्मा, तुम्हारे हक से भी महत्वपूर्ण है भैया-भाभी का विश्वास, जो मैं तोड़ना नहीं चाहती। रिश्ते नाजुक होते हैं अम्मा, दर्पण की तरह। एक बार दरक गए तो किसी मतलब के नहीं रहते। और मैं इन रिश्तों को सहेजना चाहती हूँ। मैं चाहती हूँ कि तुम्हारे जाने के बाद भी इस घर में मेरा दाना-पानी बना रहे। मैं जब-जब भारत आऊँ, इस घर के दरवाजे मुझे खुले मिलें ताकि मैं तुम्हारी यादों को फिर से जी सकूँ। कल को मेरे बच्चों की शादियाँ हों तो मैं हक के साथ भात माँगने आ सकूँ। ये मेरे पीहर की देहरी है अम्मा! मेरे लिए किसी भी हार से ज्यादा कीमती है। प्लीज, इसे मुझसे मत झीनो।’’ और यह बात कहते-कहते मीनू का गला भर आया। आँखें छलछला आईं।
अम्मा ने आगे बढ़कर उसे गले से लगा लिया और उसकी पीठ पर हाथ फेरते हुए बोलीं, ‘‘अरे वाह, मेरी लाड़ो तो मुझसे भी ज्यादा समझदार हो गई है।’’ और यह कहते हुए उनकी भी आवाज भीग गई थी।
(इसी संग्रह की कहानी ‘चन्द्रहार’ से)
मालती जोशी
एम. ए. हिंदी, आगरा विश्व विद्यालय, 1956
लगभग 35 पुस्तके प्रकाशित, जिनमे दो उपन्यास, पाँच बाल कथाएँ, एक गीत-संग्रह और शेष कथा-संग्रह सम्मिलित
हिन्दी की लगभग सभी लब्धप्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाओं में कहानियाँ एवं लघु उपन्यास प्रकाशित
करीब दो दर्जन कहानियों के रेडियो नाट्य रूपांतर
दूरदर्शन पर कई कहानियों के नाट्य रूपांतर
जया बच्चन द्वारा सात कहानियों पर ‘सात फेरे’ सीरियल
गुलजार द्वारा निर्देशित सीरियल ‘किरदार’ में दो कहानियों का समावेश
‘‘क्यों? मेरी चीज है। मैं दे रही हूँ।’’
‘‘हाँ, पर इस हार को लेकर पता नहीं तुम क्या-क्या सोच गई थीं। तुमने तो भाभी को भी कटघरे में खड़ा कर दिया था। कल को भाभी भी ऐसा कर सकती हैं। भाभी तो यही सोचेंगी कि यह चीज तीन साल पहले ही तुमने मुझे दे दी होगी और किसी को बताया तक नहीं। वह तो सोचेंगी कि इस तरह तुमने और भी बहुत कुछ दिया होगा, जिसका उन्हें पता नहीं है। मैं तो शर्म के मारे भैया के सामने खड़ी भी न हो सकूंगी।’’
‘‘इसमें शर्म की क्या बात है! क्या मुझे इतना भी हक नहीं है?’’
‘‘अम्मा, तुम्हारे हक से भी महत्वपूर्ण है भैया-भाभी का विश्वास, जो मैं तोड़ना नहीं चाहती। रिश्ते नाजुक होते हैं अम्मा, दर्पण की तरह। एक बार दरक गए तो किसी मतलब के नहीं रहते। और मैं इन रिश्तों को सहेजना चाहती हूँ। मैं चाहती हूँ कि तुम्हारे जाने के बाद भी इस घर में मेरा दाना-पानी बना रहे। मैं जब-जब भारत आऊँ, इस घर के दरवाजे मुझे खुले मिलें ताकि मैं तुम्हारी यादों को फिर से जी सकूँ। कल को मेरे बच्चों की शादियाँ हों तो मैं हक के साथ भात माँगने आ सकूँ। ये मेरे पीहर की देहरी है अम्मा! मेरे लिए किसी भी हार से ज्यादा कीमती है। प्लीज, इसे मुझसे मत झीनो।’’ और यह बात कहते-कहते मीनू का गला भर आया। आँखें छलछला आईं।
अम्मा ने आगे बढ़कर उसे गले से लगा लिया और उसकी पीठ पर हाथ फेरते हुए बोलीं, ‘‘अरे वाह, मेरी लाड़ो तो मुझसे भी ज्यादा समझदार हो गई है।’’ और यह कहते हुए उनकी भी आवाज भीग गई थी।
(इसी संग्रह की कहानी ‘चन्द्रहार’ से)
मालती जोशी
एम. ए. हिंदी, आगरा विश्व विद्यालय, 1956
लगभग 35 पुस्तके प्रकाशित, जिनमे दो उपन्यास, पाँच बाल कथाएँ, एक गीत-संग्रह और शेष कथा-संग्रह सम्मिलित
हिन्दी की लगभग सभी लब्धप्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाओं में कहानियाँ एवं लघु उपन्यास प्रकाशित
करीब दो दर्जन कहानियों के रेडियो नाट्य रूपांतर
दूरदर्शन पर कई कहानियों के नाट्य रूपांतर
जया बच्चन द्वारा सात कहानियों पर ‘सात फेरे’ सीरियल
गुलजार द्वारा निर्देशित सीरियल ‘किरदार’ में दो कहानियों का समावेश
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