सदाबहार >> मेरी प्रिय कहानियाँ (भगवतीचरण वर्मा) मेरी प्रिय कहानियाँ (भगवतीचरण वर्मा)भगवतीचरण वर्मा
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लेखक की अपनी कहानियों में से उनकी पसंद की चुनिंदा कहानियाँ
भगवतीचरण वर्मा ने यद्यपि कहानियाँ कम ही लिखी हैं, उनकी गणना हिन्दी के अग्रणी कथाकारों में की जाती है। ‘दो बांके’, ‘आवारे’ आदि उनकी ऐसी कहानियाँ हैं, जिनको कभी भुलाया नहीं जा सकेगा। प्रस्तुत संकलन में उन्होंने स्वयं अपने समग्र कहानी-लेखन में से बाहर श्रेष्ठ कहानियाँ चुनी हैं, और अपने लेखन के संबंध में एक भूमिका भी दी है जिससे साहित्य के अध्येताओं को उनके विषय में जानने की मदद मिलती है। यह संकलन लेखक के कहानीकार व्यक्तित्व का संपूर्ण प्रतिनिधित्व करता है।
‘मेरी प्रिय कहानियाँ का संकलन करते समय मुझे अपनी समस्त कहानियों पर एक बार फिर से नज़र डालनी पड़ी और मुझे लगा कि मेरी सभी कहानियाँ समान रूप से मुझे प्रिय हैं। मेरी इन कहानियों में तरह-तरह के मूड हैं, लेकिन हास्य और व्यंग्य के मूड अधिक हैं... अपनी कहानियों के माध्यम से मैंने कोई उपदेश नहीं दिया है। यह उपदेश, दर्शन अथवा सिद्धान्त कहानी को कला की कोटि से अलग कर देते हैं, मेरा को कुछ ऐसा ही मत रहा है।...मेरी कहानियों में मनोरंजन पक्ष ही प्रबल है और मुझे अपनी ही सीमाओं का बोध है... और इसीलिए मेरी कहानियों में रोष नहीं है, आक्रोश नहीं है।’
‘मेरी प्रिय कहानियाँ का संकलन करते समय मुझे अपनी समस्त कहानियों पर एक बार फिर से नज़र डालनी पड़ी और मुझे लगा कि मेरी सभी कहानियाँ समान रूप से मुझे प्रिय हैं। मेरी इन कहानियों में तरह-तरह के मूड हैं, लेकिन हास्य और व्यंग्य के मूड अधिक हैं... अपनी कहानियों के माध्यम से मैंने कोई उपदेश नहीं दिया है। यह उपदेश, दर्शन अथवा सिद्धान्त कहानी को कला की कोटि से अलग कर देते हैं, मेरा को कुछ ऐसा ही मत रहा है।...मेरी कहानियों में मनोरंजन पक्ष ही प्रबल है और मुझे अपनी ही सीमाओं का बोध है... और इसीलिए मेरी कहानियों में रोष नहीं है, आक्रोश नहीं है।’
-इस पुस्तक की भूमिका से
क्रम
दो पहलू
कुंवर साहब का कुत्ता
प्रायश्चित
दो बांके
तिजारत का नया तरीका
रहस्य और रहस्योद्घाटन
प्रेजेण्ट्स
खिलावन का नरक
कायरता
उत्तरदायित्व
नाज़िर मुंशी
आवारे
राख और चिनगारी
सौदा हाथ से निकल गया
दो पहलू
कुंवर साहब का कुत्ता
प्रायश्चित
दो बांके
तिजारत का नया तरीका
रहस्य और रहस्योद्घाटन
प्रेजेण्ट्स
खिलावन का नरक
कायरता
उत्तरदायित्व
नाज़िर मुंशी
आवारे
राख और चिनगारी
सौदा हाथ से निकल गया
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