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अन्वेषण

अखिलेश तत्भव

प्रकाशक : राजकमल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2009
पृष्ठ :127
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 8093
आईएसबीएन :9788171190836

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सही मायने में ‘अन्वेषण’ आज के आदमी के भीतर प्रश्नों की जमी बर्फ के नीचे दबी चेतना को मुखर करने की सफल चेष्टा है...

Anveshan - A Hindi Book - by Akhilesh

प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश

संवेदनशील कथाकार अखिलेश का पहला उपन्यास ‘अन्वेषण’ जीवन संग्राम की एक विराट्र प्रयोगशाला है। जहाँ उच्छल प्रेम, श्रमाकांक्षी भुजाओं और जन-विह्वल आवेगों को हर पल एक अम्ल परीक्षण से गुजरना पड़ता है। सहज मानवीय ऊर्जा से भरा इसका नायक एक चरित्र नहीं, हमारे समय की आत्मा की मुक्ति की छटपटाहट का प्रतीक है। उसमें खून की वही सुर्खी है, जो रोज-रोज अपमान, निराशा और असफलता के थपेड़ों से काली होने के बावजूद, सतत संघर्षों के महासमर में मुँह चुराकर जड़ता की चुप्पी में प्रवेश नहीं करती, बल्कि अँधेरी दुनिया की भयावह छायाओं में रहते हुए भी उस उजाले का ‘अन्वेषण’ करती रहती है, जो वर्तमान बर्बर और आत्माहीन समाज में लगातार गायब होती जा रही है। ‘अर्थ’ के इस्पाती इरादों के आगे वह बौना बनकर अपनी पहचान नहीं खोता, बल्कि ठोस धरातल पर खड़ा रहकर चुनौतियों को स्वीकार करता है। यही कारण है कि द्वन्द्व में फँसा नायक बदल रहे समय और समाज के संकट की पहचान बन गया है।

‘अन्वेषण’ की भाषा पारदर्शी है। कहीं-कहीं वह स्फटिक-सी दृढ़ और सख्त भी हो गई है। इसमें एक ऐसा औपन्यासिक रूप पाने का प्रयत्न है, जिसमें काव्य जैसी एकनिष्ठ एकाग्रता सन्तुलित रूप में विकसित हुई है।

सही मायने में ‘अन्वेषण’ आज के आदमी के भीतर प्रश्नों की जमी बर्फ के नीचे दबी चेतना को मुखर करने की सफल चेष्टा है।

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