आधुनिक >> मालगुडी का चलता पुर्जा मालगुडी का चलता पुर्जाआर. के. नारायण
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साहित्य अकादमी द्वारा पुरस्कृत लेखक आर. के. नारायण की ‘The Financial Expert’ का हिन्दी अनुवाद
Malgudi ka Chalta Purza - A Hindi Book by R. K. Narayan
प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश
इस चुलबुले और रोचक उपन्यास में एक बार फिर लेखक आर. के. नारायण ने अपने प्रिय स्थान ‘मालगुड़ी’ को पृष्ठभूमि में रखा है। मार्गैय्या अपने आप को एक बहुत बड़ा वित्तीय सलाहकार समझता है लेकिन वास्तव में वह एक चलता पुर्जा के अलावा कुछ नहीं जो औरों को सलाह मशवरा देकर, अनपढ़ किसानों को यह समझाकर कि कैसे वे बैक से ऋण ले सकते हैं और तरह-तरह के छोटे-मोटे फार्म बेचकर अपनी अच्छा खासी आमदनी कर लेता है। उसका ‘दफ़्तर’ है मालगुड़ी का बरगद का पेड़, जिसके नीचे वह अपनी कलम, स्याही की दवात और टीन का बक्सा लेकर बैठता है और शायद आपको आज भी बैठा मिलेगा....
आर. के. नारायन शायद अंग्रेजी के ऐसे पहले भारतीय लेखक हैं जिनके लेखन ने न केवल भारतीय बल्कि विदेशी पाठकों में भी अपनी जगह बनाई। उन्होंने अपने उपन्यासों और कहानियों के लिए न केवल रोचक विषयों को चुना, बल्कि उन्हें अपने चुटीले संवादों से इतना चटपटा भी बना दिया कि जिसने भी उन्हें एक बार पढ़ा उसमें नारायण की रचनाओं को पढ़ने की चाहत और बढ़ गई।
10 अक्टूबर 1906 को जन्मे आर. के. नारायण ने पंद्रह उपन्यास, पाँच लघु-कथा संग्रह, यात्रा-वृत्तांत आदि लिखे। 1960 में उन्हें उनके उपन्यास ‘गाइड’ के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। ‘मालगुड़ी की कहानियाँ’, ‘स्वामी और उसके दोस्त’, ‘डार्क रूम’, ‘नागराज की दुनिया’ और ‘इंग्लिश टीचर’ उनकी जानी मानी कृतियाँ हैं। पचानवे बरस तक पाठकों को अपनी रचनाओं से गुदगुदाने के बाद 13 मई 2001 को उनकी मृत्यु हो गई और उनकी कलम हमेशा के लिए थम गई, लेकिन मालगुड़ी और उसकी कहानियां आज भी लोगों के दिलों में जिंदा है।
आर. के. नारायन शायद अंग्रेजी के ऐसे पहले भारतीय लेखक हैं जिनके लेखन ने न केवल भारतीय बल्कि विदेशी पाठकों में भी अपनी जगह बनाई। उन्होंने अपने उपन्यासों और कहानियों के लिए न केवल रोचक विषयों को चुना, बल्कि उन्हें अपने चुटीले संवादों से इतना चटपटा भी बना दिया कि जिसने भी उन्हें एक बार पढ़ा उसमें नारायण की रचनाओं को पढ़ने की चाहत और बढ़ गई।
10 अक्टूबर 1906 को जन्मे आर. के. नारायण ने पंद्रह उपन्यास, पाँच लघु-कथा संग्रह, यात्रा-वृत्तांत आदि लिखे। 1960 में उन्हें उनके उपन्यास ‘गाइड’ के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। ‘मालगुड़ी की कहानियाँ’, ‘स्वामी और उसके दोस्त’, ‘डार्क रूम’, ‘नागराज की दुनिया’ और ‘इंग्लिश टीचर’ उनकी जानी मानी कृतियाँ हैं। पचानवे बरस तक पाठकों को अपनी रचनाओं से गुदगुदाने के बाद 13 मई 2001 को उनकी मृत्यु हो गई और उनकी कलम हमेशा के लिए थम गई, लेकिन मालगुड़ी और उसकी कहानियां आज भी लोगों के दिलों में जिंदा है।
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