उपन्यास >> अग्निपरीक्षा अग्निपरीक्षाकनक लता
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समाज में स्त्री की स्थिति को दर्शाता एक समकालीन उपन्यास...
प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश
‘ये पुरुष अपनी पत्नी के सतीत्व की अग्निपरीक्षा लेकर उसे ग्रहण करने का दम भरते हैं, मगर खुद अपने गिरेबान में नहीं झाँकते...’
‘अनगिनत गन्दी नालियों में मुँह मारकर गर्व से सिर उठाये शादी के बाजार में ऊँची बोली बुलवाते हैं।’
‘तू ऐसे राम से शादी मत करना, जो तेरी अग्निपरीक्षा लेने के पश्चात् तुझसे शादी करने की शर्त रखता हो।’
‘झगड़ा चाहे जमीन का हो, जाति का हो, या धर्म का हो, सबसे दर्दनाक प्रक्रिया से औरत को ही गुजरना पड़ता है। शतरंज का मोहरा उसे ही बनाया जाता है, बलि का बकरा उसे ही घोषित किया जाता है।’
इस उपन्यास के पन्ने-पन्ने पर बिखरा यह आर्त्तनाद आज भी स्त्री-जीवन का हिस्सा है। लेकिन धीरे-धीरे ही सही, विशेषतः स्त्री और सामान्यतः समाज में इन स्थितियों के प्रति आलोचना और अस्वीकार का भाव जोर पकड़ रहा है। यह उपन्यास उम्मीद की रेखाओं को भी हमें दिखलाता है। रोहिणी और कुणाल जैसे पात्र समाज में अगर बहुत कम संख्या में हों तो भी एक उजले भविष्य की आशा की जा सकती है।
‘अनगिनत गन्दी नालियों में मुँह मारकर गर्व से सिर उठाये शादी के बाजार में ऊँची बोली बुलवाते हैं।’
‘तू ऐसे राम से शादी मत करना, जो तेरी अग्निपरीक्षा लेने के पश्चात् तुझसे शादी करने की शर्त रखता हो।’
‘झगड़ा चाहे जमीन का हो, जाति का हो, या धर्म का हो, सबसे दर्दनाक प्रक्रिया से औरत को ही गुजरना पड़ता है। शतरंज का मोहरा उसे ही बनाया जाता है, बलि का बकरा उसे ही घोषित किया जाता है।’
इस उपन्यास के पन्ने-पन्ने पर बिखरा यह आर्त्तनाद आज भी स्त्री-जीवन का हिस्सा है। लेकिन धीरे-धीरे ही सही, विशेषतः स्त्री और सामान्यतः समाज में इन स्थितियों के प्रति आलोचना और अस्वीकार का भाव जोर पकड़ रहा है। यह उपन्यास उम्मीद की रेखाओं को भी हमें दिखलाता है। रोहिणी और कुणाल जैसे पात्र समाज में अगर बहुत कम संख्या में हों तो भी एक उजले भविष्य की आशा की जा सकती है।
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