कहानी संग्रह >> दूर से देखा हुआ दूर से देखा हुआसुनील गंगोपाध्याय
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बहुरंगी और विविध भावना-संसार की सर्जना करने वाली कहानियों का सम्पूर्ण और संग्रहणीय संकलन...
सामाजिक विडम्बनाओं, विसंगतियों, आर्थिक विषमताओं से उपजी स्थितियों का संवेदनशील अवलोकन करती कहानियाँ।
हरिदासपुर के पेड़ की छाया में
दूर उदास
मनीषा के दो प्रेमी
महापृथ्वी
पलायक व अनुसरणकारी
कठिन प्रश्न
सूखा
नदी के किनारे
दूर से देखा हुआ
चीता और चांद
रात पाँखी
स्वर्ग दर्शन
देवदूत अथवा बारह हाट की कानी कौड़ी
पोस्टमार्टम
कोयल व लॉरीवाला
नाम नहीं है
शाजाहान और उसकी अपनी वाहिनी
चूड़ामणि का उपाख्यान
ताजमहल में एक प्याली
पुल
चिड़िया की माँ
अनुक्रम
‘‘क्या हुआ, वही बताओ न? वे लोग क्यों आये थे? रूपये क्यों दिये?’’
‘‘अरे बाबा मैंने घर नहीं बेचा। मुफ्त में तीस रुपये का लाभ हो गया। वे लोग यहाँ तस्वीर टाँगेंगे, इसलिए मुझे हर महीने में ये लोग पन्द्रह रुपये करके देंगे।’’
‘‘तस्वीर लगाएँगे, इसलिए रुपये देंगे? कैसी तस्वीर?’’
‘‘कौन-सी तस्वीर, उसके बारे में मैं क्या जानूँ? इसे विज्ञापन कहते हैं।’’
‘‘विग-कापन कौन सी चीज हैं?’’
‘‘मैंने कह तो दिया, तसवीर... महीने-महीने में पन्द्रह रुपये। आज साला किसका मुँह देखकर जागा था, भगवान ने एकदम हाथ में रुपये ठूँसते हुए कहा - यह ले!... एक बार निताई से मिल आऊँ।’’
‘‘महीने-महीने में देंगे।’’ सुबल अचानक दिलदार आदमी बनके माँ को सवा चार रुपये वाला कम्बल खरीदने की प्रतिज्ञा कर बैठता है। हाराण माँग करता है, अबकी बार उसे पेंसिल और कागज खरीद कर देना ही पड़ेगा, नहीं तो स्कूल से उसका नाम कट जायेगा।
सुबल की पत्नी ने कहा, ‘‘अजी! इस बार कुसी को एक बेलाउद खरीद के देना। उसका शरीर बहुत भारी हो रहा है। लोग उसकी ओर ललचाई आँखों से देखते हैं।’’
अचानक ऐसे लगा, जैसे पन्द्रह रुपये आय बढ़ जाने के कारण सुबल के परिवार की सभी समस्याओं का समाधान होता जा रहा है।....
‘‘अरे बाबा मैंने घर नहीं बेचा। मुफ्त में तीस रुपये का लाभ हो गया। वे लोग यहाँ तस्वीर टाँगेंगे, इसलिए मुझे हर महीने में ये लोग पन्द्रह रुपये करके देंगे।’’
‘‘तस्वीर लगाएँगे, इसलिए रुपये देंगे? कैसी तस्वीर?’’
‘‘कौन-सी तस्वीर, उसके बारे में मैं क्या जानूँ? इसे विज्ञापन कहते हैं।’’
‘‘विग-कापन कौन सी चीज हैं?’’
‘‘मैंने कह तो दिया, तसवीर... महीने-महीने में पन्द्रह रुपये। आज साला किसका मुँह देखकर जागा था, भगवान ने एकदम हाथ में रुपये ठूँसते हुए कहा - यह ले!... एक बार निताई से मिल आऊँ।’’
‘‘महीने-महीने में देंगे।’’ सुबल अचानक दिलदार आदमी बनके माँ को सवा चार रुपये वाला कम्बल खरीदने की प्रतिज्ञा कर बैठता है। हाराण माँग करता है, अबकी बार उसे पेंसिल और कागज खरीद कर देना ही पड़ेगा, नहीं तो स्कूल से उसका नाम कट जायेगा।
सुबल की पत्नी ने कहा, ‘‘अजी! इस बार कुसी को एक बेलाउद खरीद के देना। उसका शरीर बहुत भारी हो रहा है। लोग उसकी ओर ललचाई आँखों से देखते हैं।’’
अचानक ऐसे लगा, जैसे पन्द्रह रुपये आय बढ़ जाने के कारण सुबल के परिवार की सभी समस्याओं का समाधान होता जा रहा है।....
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