उपन्यास >> मदरसा मदरसामंजूर एहतेशाम
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देश और काल के विभिन्न चरणों में आवाजाही करता हुआ एक उपन्यास
प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश
देश और काल के विभिन्न चरणों में आवाजाही करता हुआ यह उपन्यास स्मृतियों की पगडंडियों पर जैसे चहलकदमी करते हुए अपने पात्रों के भीतरी और बाहरी बदलावों की प्रक्रिया से गुजरता है। और सौ लफड़ों के बीच यह दुनिया चलती रहती है। साबिर को उसके अलीगढ़ मामू तरह-तरह से, अलग-अलग मौकों पर, समझाने की कोशिश कर चुके थे कि तुम्हारी जिन्दगी एक अनोखा सफर है। उसका रास्ता और मंजिल सब अनोखे हैं। इस अनोखेपन को समझोगे तो खुद को जान पाओगे, बाकी सब जो पढ़ा लिखा डिस्कस किया जाता है, ट्रैफिक के कानून की तरह है जिसका जानना हर सवारी के लिए जरूरी है, लेकिन इसका सफर की असलियत से कुछ भी लेना-देना नहीं है। दुर्भाग्य से हालात ऐसे बदलते गए कि साबिर सफर की असलियत के बजाय, ट्रैफिक के कानूनों में ही उलझ कर रह गया था। साबिर की जिन्दगी का चालीस पूरा होने में कुछ ही महीने बाकी है लेकिन जिन्दगी चालीस पर ठहर तो नहीं जाती। कभी-कभी तो शुरु होती है। ऐसा ही शायद शाबिर के साथ भी हो, इसी आशावादिता के साथ यह उपन्यास समाप्त होता है।
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