कहानी संग्रह >> पाताल पानी पाताल पानीमदन मोहन
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मदन मोहन की इन कहानियों का यथार्थ बहुरंगी है। यहाँ संकेत हैं और हैं कहानीकार की गहरी चिताएँ, जो आज के समय से जुड़ी हैं।
प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश
समकालीन हिन्दी कहानी को जिन कुछ कहानीकारों ने विचार-बोझिल और घटना-बहुल बनाए बिना उसे सार्थक और विश्वसनीय बनाया है, उनमें मदनमोहन हैं। उनकी कहानियों में व्यर्थ का विस्तार, शिल्प का चमत्कार और वैचारिक आग्रह-दुराग्रह नहीं है।
मदनमोहन की कहानियाँ मूल्य-चेतस हैं। वे घटनाओं और पात्रों से अधिक जीवन-स्थितियों को महत्त्व देते हैं। उनका यथार्थ-बोध जीवन-बोध और मूल्य-बोध से जुड़ा है। जीवन-स्थिति और मनः-स्थिति दोनों की कई कहानियों में सुंदर उपस्थित है। कहानीकार की सधी-संतुलित दृष्टि दोनों पर हैं। प्रत्येक कहानी में कहन की सजगता, विवेक-संपन्नता, दृष्टि-संपन्नता और संवेदनशीलता भरी पड़ी है। आज जब निबंधनुमा कहानियों की भीड़ है, वहाँ मदन मोहन ने कहानी के अपने गुण-वैशिष्ट्य और रूप-स्वरूप में बेवजह परिवर्तन नहीं किया गया है। व्यवस्था में अविश्वास और पाठकों में विश्वास इन कहानियों का एक प्रमुख गुण है।
‘कई रंगों वाला साँप’ मदनमोहन की कहानियों में एक नया मोड़ है, जहाँ उन्होंने आरम्भ में क्रिस्टोफर कॉडवेल का यथार्थ संबंधी एक उद्धरण प्रस्तुत किया है। उनके लिए बाह्य यथार्थ महत्त्वपूर्ण है, पर वे यथार्थ-संबंधी मान्य प्रचलित धारणा से अलग कई स्तरों पर घटित यथार्थ, जो आभास और भ्रम की शक्ल में है, का चित्रण करते हैं। यथार्थ और भ्रम के सुदंर, पर जटिल संबंध पर उनका ध्यान है। ‘कई रंगों वाला साँप’ एक भ्रम है जबकि यथार्थ में ‘बॉस तो खुद एक काला नाग है!’ व्यवस्था और तंत्र उससे कहीं अधिक बड़े सर्प की तरह हैं। जीवन-स्थिति से मनःस्थिति का सुंदर और विश्वसनीय मेल मदन मोहन की कथा-दक्षता का प्रमाण है।
पारिवारिक-सामाजिक संबंधों का ह्रास कई कहानियों में है। स्थूलता से अधिक सूक्ष्मता और संकेत कई कहानियों में हैं। ईंट-पत्थर ही नहीं, कोमल और आत्मीय संबंध ‘घर’ की नींव है। हमारे समय से जो छूट रहा है, उस पर कहानीकार की तीखी नज़र है। कथाकार सभी कहानियों में जीवन-विरोधी स्थितियों के विरुद्ध है। कलात्मक संयम इन कहानियों की विशेषता है। ‘जुटान उर्फ तलाश एक नए क़िस्से की’ कहानी में चिनिगिया की जो करुण, आर्त पुकार है, वह भिन्न रूपों में, कई कहानियों में सुनी जा सकती है। ‘छोड़ाव रे कोई’ की यह पुकार सजग पाठक सुन सकता है।
मदन मोहन की इन कहानियों का यथार्थ बहुरंगी है। यहाँ संकेत हैं और हैं कहानीकार की गहरी चिताएँ, जो आज के समय से जुड़ी हैं। यथार्थ और स्मृतियों के सहमेल से कहानियाँ पठनीय और विश्वसनीय हुई हैं। उनकी पक्षधरता प्रायः प्रत्येक कहानी में है, जो संकेतों में है। मदन मोहन की कथा-भाषा और कथा-दृष्टि इस संकलन की कहानियों में अधिक रचनात्मक है। यह उनकी विकास यात्रा है। ‘पाताल पानी’ कहानी में भाषा का अपना विशिष्ट रूप सौंदर्य है- शिवशंकर सुबह पाँच बजे उगते थे और सूरज के डूब जाने के बाद डूबते थे। शांत और सधे रूपों में लिखी गई ये कहानियाँ गंभीर पाठकों को बेचैन और अशांत करेंगी।
मदनमोहन की कहानियाँ मूल्य-चेतस हैं। वे घटनाओं और पात्रों से अधिक जीवन-स्थितियों को महत्त्व देते हैं। उनका यथार्थ-बोध जीवन-बोध और मूल्य-बोध से जुड़ा है। जीवन-स्थिति और मनः-स्थिति दोनों की कई कहानियों में सुंदर उपस्थित है। कहानीकार की सधी-संतुलित दृष्टि दोनों पर हैं। प्रत्येक कहानी में कहन की सजगता, विवेक-संपन्नता, दृष्टि-संपन्नता और संवेदनशीलता भरी पड़ी है। आज जब निबंधनुमा कहानियों की भीड़ है, वहाँ मदन मोहन ने कहानी के अपने गुण-वैशिष्ट्य और रूप-स्वरूप में बेवजह परिवर्तन नहीं किया गया है। व्यवस्था में अविश्वास और पाठकों में विश्वास इन कहानियों का एक प्रमुख गुण है।
‘कई रंगों वाला साँप’ मदनमोहन की कहानियों में एक नया मोड़ है, जहाँ उन्होंने आरम्भ में क्रिस्टोफर कॉडवेल का यथार्थ संबंधी एक उद्धरण प्रस्तुत किया है। उनके लिए बाह्य यथार्थ महत्त्वपूर्ण है, पर वे यथार्थ-संबंधी मान्य प्रचलित धारणा से अलग कई स्तरों पर घटित यथार्थ, जो आभास और भ्रम की शक्ल में है, का चित्रण करते हैं। यथार्थ और भ्रम के सुदंर, पर जटिल संबंध पर उनका ध्यान है। ‘कई रंगों वाला साँप’ एक भ्रम है जबकि यथार्थ में ‘बॉस तो खुद एक काला नाग है!’ व्यवस्था और तंत्र उससे कहीं अधिक बड़े सर्प की तरह हैं। जीवन-स्थिति से मनःस्थिति का सुंदर और विश्वसनीय मेल मदन मोहन की कथा-दक्षता का प्रमाण है।
पारिवारिक-सामाजिक संबंधों का ह्रास कई कहानियों में है। स्थूलता से अधिक सूक्ष्मता और संकेत कई कहानियों में हैं। ईंट-पत्थर ही नहीं, कोमल और आत्मीय संबंध ‘घर’ की नींव है। हमारे समय से जो छूट रहा है, उस पर कहानीकार की तीखी नज़र है। कथाकार सभी कहानियों में जीवन-विरोधी स्थितियों के विरुद्ध है। कलात्मक संयम इन कहानियों की विशेषता है। ‘जुटान उर्फ तलाश एक नए क़िस्से की’ कहानी में चिनिगिया की जो करुण, आर्त पुकार है, वह भिन्न रूपों में, कई कहानियों में सुनी जा सकती है। ‘छोड़ाव रे कोई’ की यह पुकार सजग पाठक सुन सकता है।
मदन मोहन की इन कहानियों का यथार्थ बहुरंगी है। यहाँ संकेत हैं और हैं कहानीकार की गहरी चिताएँ, जो आज के समय से जुड़ी हैं। यथार्थ और स्मृतियों के सहमेल से कहानियाँ पठनीय और विश्वसनीय हुई हैं। उनकी पक्षधरता प्रायः प्रत्येक कहानी में है, जो संकेतों में है। मदन मोहन की कथा-भाषा और कथा-दृष्टि इस संकलन की कहानियों में अधिक रचनात्मक है। यह उनकी विकास यात्रा है। ‘पाताल पानी’ कहानी में भाषा का अपना विशिष्ट रूप सौंदर्य है- शिवशंकर सुबह पाँच बजे उगते थे और सूरज के डूब जाने के बाद डूबते थे। शांत और सधे रूपों में लिखी गई ये कहानियाँ गंभीर पाठकों को बेचैन और अशांत करेंगी।
- रविभूषण
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