कविता संग्रह >> आग हर चीज में बतायी गई थी आग हर चीज में बतायी गई थीचंद्रकान्त देवतले
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जैसाकि हर महत्त्वपूर्ण और सार्थक कविता करती है, ये कविताएँ भी अपने समय की और खुद अपनी व्याख्या का अवसर देती हैं...
Aag Har Cheej Mein Batai Gayee Thi - A Hindi Book - by Chandrakant Devtale
प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश
पापी के लिए क्या सूरज मर जाता है
पाप कहाँ से खोदकर ले आता है आदमी
क्या पाताल से
पुण्य की टकसाल ही है क्या तुम्हारी दुनिया
घरों में क्या पुण्यात्माओं का ही वास है?
पाप कहाँ से खोदकर ले आता है आदमी
क्या पाताल से
पुण्य की टकसाल ही है क्या तुम्हारी दुनिया
घरों में क्या पुण्यात्माओं का ही वास है?
इन कविताओं के शब्द, कठिन दुनिया को भाषा में खोलते और रचते हुए निरन्तर एक प्रश्न अपने आपसे भी करते हैं कि एक हिंसक और मनुष्य-विरोधी समाज में कविता कौन-सा मिथ रच सकती है। इसीलिए ये कविताएँ प्रीतिकर किन्तु झूठे बिम्बों में खर्च नहीं होतीं और न इस नष्ट होती दुनिया का भयावह किन्तु चमकदार काव्यभाष्य ही प्रस्तुत करती हैं।
चंद्रकांत देवताले अपनी कविता और समय में गलत को सही के लिए, बुरे को अच्छे के लिए, असुन्दर को सुन्दर के लिए या किसी एक अन्य चीज को दूसरी के लिए न्योछावर कर देने की काव्य-प्रवृत्ति से मुक्त कवि हैं। इसीलिए उनकी कविता में विकट और दारुण सच्चाइयों की अवमानना के बजाय उनसे ऐसा चुनौतीपूर्ण रिश्ता बनता है जहाँ हमारे समय के अँधेरे अन्तरंग कोनों को प्रकाशित होते हुए देखा जा सकता है। वे किसी अन्तिम सत्य की कामना से दृश्य-यथार्थ के जटिल और अपरिहार्य ब्यौरों को झूठ मानकर तज नहीं देते, बल्कि उनका एक विलक्षण और अनिवार्य काव्य-नाटकीय रुपान्तर करते हैं। ठीक इसी जगह और इसी प्रक्रिया में इन कविताओं में आधुनिक समय का वह मिथ भी आकार लेता है जो बीसवीं सदी के अन्तिम वर्षों की इस तरस-नहस और नष्ट-भ्रष्ट होती दुनिया में मनुष्य की स्थिति, व्यथा और पीड़ा को समग्रता में व्यक्त कर पाता है।
‘शब्द और सगुण और दृश्यमान’ की इच्छा देवताले की कविता में भाषा का बेहद संश्लिष्ट और विश्वसनीय रूपाकार गढ़ती है। वे कर्कश जीवन-स्थितियों के समानान्तर कोई तसल्ली देनेवाला बनावटी काव्य-माधुर्य नहीं बुनते, बल्कि इस कर्कशता का अन्दरूनी संगीत उजागर करते हैं।
जैसाकि हर महत्त्वपूर्ण और सार्थक कविता करती है, ये कविताएँ भी अपने समय की और (अपने से पहले लिखी गई तमाम कविताओं की परम्परा में) खुद अपनी व्याख्या का अवसर देती हैं।
चंद्रकांत देवताले अपनी कविता और समय में गलत को सही के लिए, बुरे को अच्छे के लिए, असुन्दर को सुन्दर के लिए या किसी एक अन्य चीज को दूसरी के लिए न्योछावर कर देने की काव्य-प्रवृत्ति से मुक्त कवि हैं। इसीलिए उनकी कविता में विकट और दारुण सच्चाइयों की अवमानना के बजाय उनसे ऐसा चुनौतीपूर्ण रिश्ता बनता है जहाँ हमारे समय के अँधेरे अन्तरंग कोनों को प्रकाशित होते हुए देखा जा सकता है। वे किसी अन्तिम सत्य की कामना से दृश्य-यथार्थ के जटिल और अपरिहार्य ब्यौरों को झूठ मानकर तज नहीं देते, बल्कि उनका एक विलक्षण और अनिवार्य काव्य-नाटकीय रुपान्तर करते हैं। ठीक इसी जगह और इसी प्रक्रिया में इन कविताओं में आधुनिक समय का वह मिथ भी आकार लेता है जो बीसवीं सदी के अन्तिम वर्षों की इस तरस-नहस और नष्ट-भ्रष्ट होती दुनिया में मनुष्य की स्थिति, व्यथा और पीड़ा को समग्रता में व्यक्त कर पाता है।
‘शब्द और सगुण और दृश्यमान’ की इच्छा देवताले की कविता में भाषा का बेहद संश्लिष्ट और विश्वसनीय रूपाकार गढ़ती है। वे कर्कश जीवन-स्थितियों के समानान्तर कोई तसल्ली देनेवाला बनावटी काव्य-माधुर्य नहीं बुनते, बल्कि इस कर्कशता का अन्दरूनी संगीत उजागर करते हैं।
जैसाकि हर महत्त्वपूर्ण और सार्थक कविता करती है, ये कविताएँ भी अपने समय की और (अपने से पहले लिखी गई तमाम कविताओं की परम्परा में) खुद अपनी व्याख्या का अवसर देती हैं।
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