नाटक-एकाँकी >> बाबर की औलाद बाबर की औलादसलमान ख़ुर्शीद
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हिन्दुस्तान की तलाश में एक प्ले...
बहादुरशाह ज़फर सत्ता का एक ऐसा रूपक ही नहीं थे जिसका सूरज हिन्दुस्तान में डूब रहा था बल्कि वह इतिहास के उस मोड़ पर नमूदार हुए जब दुनिया तब्दीली-ओ तरक्की के एक अनदेखे दौर में कदम रख रही थी। अंग्रेज हालाँकि पुनर्जागरण के ज़ेहनी अमल से गुजरकर दुनिया के एक बड़े हिस्से पर काबिज हो गए थे मगर आइंदा 90 बरस में उन्हें भी हिन्दुस्तान से अपना बोरिया-बिस्तर बाँधना पड़ा। आजादी के बाद हिन्दुस्तान भी एक ऐसे दौर में दाखिल हो गया जहाँ तमाम पारम्परिक सभ्यताओं ही नहीं बल्कि हुकूमत करने के उस वक्त तक चले आ रहे तरीकों को भी कड़े इम्तहान से गुजरना था; जो वक्त से हम-कदम न हो सका वह अतीत के गार में चला गया। विभिन्न तहजीबी, तारीखी और सियासी बहसों के जरिए बहादुरशाह जफर के चरित्र को केंद्र में रखकर उसी समकालीन भारत की बात इस प्ले में कही गई है जो हर लम्हा तब्दीली से दो-चार है और तब्दीली के तत्व को जेहनी तौर पर कुबूल कर चुका है।
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