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श्रंगार - प्रेम >> निमन्त्रण निमन्त्रणतसलीमा नसरीन
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तसलीमा नसरीन का यह उपन्यास निमन्त्रण शीला और उसके सपनों का पुरुष प्रेमी मंसूर की कहानी है।...
दरवाज़े पर किसी की खट-खट की आवाज़ आयी। मंसूर उठकर, कमरे से बाहर चला गया। लगभग पन्द्रह मिनट बाद लौट आया।
'इतनी देर क्या कर रहे थे? मुफख्वर भाई ने बुलाया था?'
'नहीं!'
'फिर?'
'चिश्ती-टिश्ती आ पहुँचे हैं। उन लोगों को भी निमन्त्रण दिया गया था न?'
'ठीक तो है! हम सब मिलकर खायेंगे।'
'हाँ!'
'खाना घर पर ही पकाया जायेगा।'
'हाँ!'
'नीचे, तुम्हारी गाड़ी नज़र नहीं आयी?'
'आज मैं गाड़ी नहीं लाया। रोज़-रोज़ गाड़ी चढ़ना, मुझे अच्छा नहीं लगता।'
मैं बिस्तर पर बैठी हुई थी। मंसूर मेरी बग़ल में आ कर बैठ गया। उसके बाल अस्त-व्यस्त, बिखरे-बिखरे! वह और ज़्यादा मोहक लग रहा था।
मैंने तो सोच ही लिया है, आज उससे खूब-खूब बातें करूँगी।
शैशव से शुरू करके, अपनी उन्नीससाला ज़िन्दगी की हर बात, हर कहानी, हर घटना, मैं उसे बताऊँगी। उसकी भी सारी बातें सुनूँगी। मैं तो उसके बारे में कुछ भी नहीं जानती-वह कितने भाई-बहन हैं; वह अपना वक़्त कैसे गज़ारता है? फ़र्सत के पलों में उसे क्या-क्या करना अच्छा लगता है।
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