स्वास्थ्य-चिकित्सा >> हृदय रोगियों के लिए 201 आहार टिप्स हृदय रोगियों के लिए 201 आहार टिप्सबिमल छज्जर
|
10 पाठकों को प्रिय 125 पाठक हैं |
यह पुस्तक उन सभी लोगों के लिए उपयोगी है जो या तो रोग से ग्रस्त हैं या उनके लिए भी जो स्वास्थ्य के प्रति सचेत रहना चाहते हैं।...
प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश
आज भारत में हृदय रोगियों की संख्या 6 करोड़
से भी अधिक है और यह संख्या लगातार बढ़ती जा रही है, जो एक चिंता का विषय है। हृदय-रोग के विकास के लिए उत्तरदायी पन्द्रह प्रमुख कारणों में से कम से कम दस कारण आहार से जुड़े होते हैं। रक्त नलिकाओं में ब्लॉकेज (अवरोध) बनाने वाले दो
मुख्य तत्वों-कोलेस्ट्रॉल व ट्राईग्लिसराईड (वसा) की आपूर्ति हमारे शरीर
में आहार के माध्यम से ही होती है। रक्तचाप, मधुमेह, मोटापा एवं एल. डी.
एल. कोलेस्ट्रॉल का स्तर-आहार द्वारा प्रभावित होता है।
ये समस्त तथ्य आहार संरचना की अनिवार्यता पर सुझाव देते हैं ताकि रक्त नलिकाओं में विकासशील ब्लॉकेज (अवरोध) को रोका या मुक्त किया जा सके। आहार संरचना के विषय पर प्रायः लोग सहमत होते हैं। किन्तु अधिकांश लोगों को हृदय विशेषज्ञों द्वारा आवश्यक सलाह नहीं मिल पाती। बहुत से लोग आहार विशेषज्ञ के पास जाते हैं किन्तु ‘आहार चार्ट’ लेकर वापस आ जाते हैं, जिसका शेष जीवन में पालन संभव नहीं हो पाता। लेकिन यह पुस्तक उन सभी लोगों के लिए उपयोगी है जो या तो रोग से ग्रस्त हैं या उनके लिए भी जो स्वास्थ्य के प्रति सचेत रहना चाहते हैं। इसमें आदर्श आहार से संबंधित उनके प्रश्नों का समुचित उत्तर दिया गया है। आहार संबंधित प्रश्नों जैसे–कैलोरी की गणना, आहार संरचना, विभिन्न खाद्य-पदार्थों में वसा की मात्रा के साथ-साथ हृदय के लिए क्या अच्छा एवं क्या बुरा होता है–का उत्तर सरल एवं स्पष्ट भाषा में दिया गया है।
सुप्रसिद्ध हृदय रोग विशेषज्ञ डॉ. बिमल छाजेड़ का दावा है कि हृदय की धमनियों में आई रुकावटों के लिए बाइपास सर्जरी आवश्यक नहीं है। यह कोई स्थाई समाधान नहीं देती। वर्तमान में इस रोग से ग्रस्त रोगियों की संख्या तेजी से बढ़ती जा रही है। इस रोग का मुख्य कारण तनाव है। हृदयरोग से ग्रस्त लोगों को अपने खान-पान का उचित ध्यान रखना चाहिए। योग एवं ध्यान जैसी पद्धतियों के द्वारा डॉ. छाजेड़ ने अनेक रोगियों को इस भयंकर रोग से मुक्ति दिलाई है। वे रोगियों को बिना तेल का भोजन ग्रहण करने की सलाह देते हैं।
ये समस्त तथ्य आहार संरचना की अनिवार्यता पर सुझाव देते हैं ताकि रक्त नलिकाओं में विकासशील ब्लॉकेज (अवरोध) को रोका या मुक्त किया जा सके। आहार संरचना के विषय पर प्रायः लोग सहमत होते हैं। किन्तु अधिकांश लोगों को हृदय विशेषज्ञों द्वारा आवश्यक सलाह नहीं मिल पाती। बहुत से लोग आहार विशेषज्ञ के पास जाते हैं किन्तु ‘आहार चार्ट’ लेकर वापस आ जाते हैं, जिसका शेष जीवन में पालन संभव नहीं हो पाता। लेकिन यह पुस्तक उन सभी लोगों के लिए उपयोगी है जो या तो रोग से ग्रस्त हैं या उनके लिए भी जो स्वास्थ्य के प्रति सचेत रहना चाहते हैं। इसमें आदर्श आहार से संबंधित उनके प्रश्नों का समुचित उत्तर दिया गया है। आहार संबंधित प्रश्नों जैसे–कैलोरी की गणना, आहार संरचना, विभिन्न खाद्य-पदार्थों में वसा की मात्रा के साथ-साथ हृदय के लिए क्या अच्छा एवं क्या बुरा होता है–का उत्तर सरल एवं स्पष्ट भाषा में दिया गया है।
सुप्रसिद्ध हृदय रोग विशेषज्ञ डॉ. बिमल छाजेड़ का दावा है कि हृदय की धमनियों में आई रुकावटों के लिए बाइपास सर्जरी आवश्यक नहीं है। यह कोई स्थाई समाधान नहीं देती। वर्तमान में इस रोग से ग्रस्त रोगियों की संख्या तेजी से बढ़ती जा रही है। इस रोग का मुख्य कारण तनाव है। हृदयरोग से ग्रस्त लोगों को अपने खान-पान का उचित ध्यान रखना चाहिए। योग एवं ध्यान जैसी पद्धतियों के द्वारा डॉ. छाजेड़ ने अनेक रोगियों को इस भयंकर रोग से मुक्ति दिलाई है। वे रोगियों को बिना तेल का भोजन ग्रहण करने की सलाह देते हैं।
–जनसत्ता
हृदय रोग की वर्तमान उपचार प्रणाली
भारत में हृदय रोगियों की संख्या उनके असंतुलित जीवनशैली
के कारण पिछले तीन दशकों में तीव्र गति से बढ़ी है। कुछ महत्त्वपूर्ण
कारणों में अत्यधिक वसायुक्त भारतीय आहार (तेल का ज्यादा प्रयोग, क्रीम,
दूध व दूध से निर्मित वस्तुएं) मशीनीकरण के कारण कम शारीरिक गतिविधियां
(कार, दूरभाष, वॉशिंग मशीन एवं समय का अभाव-व्यायाम के लिए) और स्ट्रेस
में वृद्धि (बढ़ती जनसंख्या के कारण प्रतिस्पर्धा, संयुक्त परिवार का
विघटन, कम आय अधिक व्यय) आदि शामिल है। ये समस्त कारण तथा हृदय रोगों के प्रति लापरवाही एवं हृदय नलिकाओं के भीतरी किनारों पर जमा हो रहे
कोलेस्ट्रॉल एवं ट्राइग्लिसराइड के प्रति अनभिज्ञता करोड़ों लोगों को अपने
चपेट में लेती जा रही है। परिणामस्वरूप, बहुतायत जीवन की समाप्ति, दवाओं
पर बढ़ता खर्च एवं ऐसे परिवार में जीविकोपार्जन का अभाव भी बढ़ता जा रहा
है।
निःसंदेह, हृदय रोग के उपचार में लगे चिकित्सक इस भयावह परिदृश्य में मूकदर्शक बनकर रह गए हैं। हृदय रोग के लिए उत्तरदायी कारणों पर गंभीरतापूर्वक कार्य किए बिना इन्होंने कुछ अस्थायी प्रणालियों का इजाद किया जो अवश्य ही आर्थिक रूप से मददगार हो सकता है। अस्पतालों में-सी सी यू (कॉरोनरी केयर यूनिट्स) की व्यवस्था की गई, एंजियोप्लास्टी एवं बाइपास सर्जरी की संख्या में वृद्धि हुई और इस तरह मरीजों को यह विचार दिया गया कि हृदय रोग से निजात पाने का एकमात्र तरीका भी यही है। परिणामस्वरूप मरीजों की संख्या बढ़ी। साथ ही इस रोग से जुड़े अस्पतालों की संख्या में भी धीरे-धीरे बढ़ोतरी हुई है और इस तरह एक अधम–चक्र अस्तित्व में आया।
एंजियोप्लास्टी के प्रक्रिया में, बैलून के माध्यम से हृदय में रक्त संचार करने वाली नलिकाओं के भीतर सतह पर एकत्रित वसायुक्त पदार्थों को हटाया जाता है। किन्तु ब्लॉकेज के कारण वसायुक्त पदार्थों का जमा होना जारी रहता है जो एंजियोप्लास्टी के कुछ महीनों या वर्षों बाद पुनः ब्लॉकेज का रूप ले लेता है। इस पद्धति से लाभ भले ही क्षणिक मिलता हो किन्तु विगत कुछ वर्षों में इस उपचार प्रणाली पर आने वाले खर्च में चार से पांच गुणा तक वृद्धि हुई है। जबकि बाइपास सर्जरी के माध्यम से अतिरिक्त नलिका को जोड़ दिया जाता है जो हृदय तक रक्त का संचार करती है। किन्तु खान-पान की आदतों में सुधार की कमी असंतुलित जीवन शैली इस अतिरिक्त नलिका को भी धीरे-धीरे बंद करना शुरू कर देती है। आमतौर पर, इस नई नलिका में पांच साल के अंदर पुनः वसायुक्त पदार्थों का जमाव हो जाता है और समस्याएं प्रारंभ हो जाती हैं। तीसरे विकल्प के रूप में दवाओं का लगातार सेवन भी मौजूद है जो मरीज को छाती में दर्द व अन्य लक्षणों से राहत दिलाता है। इसके होने के कारणों पर ध्यान नहीं दिया जाता है, फलतः ब्लॉकेज धीरे-धीरे बढ़ने लगता है और शीघ्र ही मरीज को दिल का दौरा (हॉर्ट अटैक) पड़ता है। ऐसे रोगियों को अस्पताल में एडमिट करने के लिए आई सी यू तैयार रखा जाता है।
विडंबना इस बात की है कि चिकित्सा विज्ञान अपने सही मकसद से अलग होता जा रहा है। इस तरह के प्रयास से वास्तविक हल कभी भी नहीं मिल पाएगा। हमें फिर से नए ढंग से प्रयास करना चाहिए। एक ऐसा प्रयास जो बुद्धिसंगत एवं सामान्य व्यवहार पर आधारित हो जिसमें हृदय रोग के कारणों का विश्लेषण तथा साथ ही मरीजों को उन उत्तरदायी कारकों के प्रति सचेत करना भी है। इससे, इस रोग की वृद्धि थम जाएगी। चिकित्सा विज्ञान भी अब इस बात पर राजी हो गया है कि हृदय रोग के कारणों का ध्यानपूर्वक एवं सही दिशा में अध्ययन किया जाए तो यह संभव है कि हृदय रोग एवं ब्लॉकेज से मुक्ति पायी जा सकती है और यह धारणा ‘डीन आर्निश एवं अन्य वैज्ञानिकों के तत्कालीन अध्ययन के कारण बन पायी है।
‘साओल हार्ट प्रोग्राम’ का लक्ष्य भी हृहय रोग को फैलने से रोकना है। इसलिए हमने इस हार्ट केयर प्रोग्राम को इस दिशा में विकसित किया है जहां हृदय रोगों का उपचार, कारणों को चिह्नित करके किया जाता है। प्रशिक्षण कार्यक्रमों के माध्यम से मरीजों को आहार, योगा, ध्यान, व्यायाम, स्ट्रेस मैनेजमेंट, कोलेस्ट्रॉल नियंत्रण, रक्तचाप, डायबिटीज, वजन आदि अन्य संभावित उपायों द्वारा सहायता की जाती है ताकि हृदय को आत्म उपचार के लायक बनाया जा सके। इस तरह के प्रशिक्षण कार्यक्रम संपूर्ण भारत में (दिल्ली, मुम्बई, कोलकात्ता, बंगलोर) लगातार चलाए जा रहे हैं।
निःसंदेह, हृदय रोग के उपचार में लगे चिकित्सक इस भयावह परिदृश्य में मूकदर्शक बनकर रह गए हैं। हृदय रोग के लिए उत्तरदायी कारणों पर गंभीरतापूर्वक कार्य किए बिना इन्होंने कुछ अस्थायी प्रणालियों का इजाद किया जो अवश्य ही आर्थिक रूप से मददगार हो सकता है। अस्पतालों में-सी सी यू (कॉरोनरी केयर यूनिट्स) की व्यवस्था की गई, एंजियोप्लास्टी एवं बाइपास सर्जरी की संख्या में वृद्धि हुई और इस तरह मरीजों को यह विचार दिया गया कि हृदय रोग से निजात पाने का एकमात्र तरीका भी यही है। परिणामस्वरूप मरीजों की संख्या बढ़ी। साथ ही इस रोग से जुड़े अस्पतालों की संख्या में भी धीरे-धीरे बढ़ोतरी हुई है और इस तरह एक अधम–चक्र अस्तित्व में आया।
एंजियोप्लास्टी के प्रक्रिया में, बैलून के माध्यम से हृदय में रक्त संचार करने वाली नलिकाओं के भीतर सतह पर एकत्रित वसायुक्त पदार्थों को हटाया जाता है। किन्तु ब्लॉकेज के कारण वसायुक्त पदार्थों का जमा होना जारी रहता है जो एंजियोप्लास्टी के कुछ महीनों या वर्षों बाद पुनः ब्लॉकेज का रूप ले लेता है। इस पद्धति से लाभ भले ही क्षणिक मिलता हो किन्तु विगत कुछ वर्षों में इस उपचार प्रणाली पर आने वाले खर्च में चार से पांच गुणा तक वृद्धि हुई है। जबकि बाइपास सर्जरी के माध्यम से अतिरिक्त नलिका को जोड़ दिया जाता है जो हृदय तक रक्त का संचार करती है। किन्तु खान-पान की आदतों में सुधार की कमी असंतुलित जीवन शैली इस अतिरिक्त नलिका को भी धीरे-धीरे बंद करना शुरू कर देती है। आमतौर पर, इस नई नलिका में पांच साल के अंदर पुनः वसायुक्त पदार्थों का जमाव हो जाता है और समस्याएं प्रारंभ हो जाती हैं। तीसरे विकल्प के रूप में दवाओं का लगातार सेवन भी मौजूद है जो मरीज को छाती में दर्द व अन्य लक्षणों से राहत दिलाता है। इसके होने के कारणों पर ध्यान नहीं दिया जाता है, फलतः ब्लॉकेज धीरे-धीरे बढ़ने लगता है और शीघ्र ही मरीज को दिल का दौरा (हॉर्ट अटैक) पड़ता है। ऐसे रोगियों को अस्पताल में एडमिट करने के लिए आई सी यू तैयार रखा जाता है।
विडंबना इस बात की है कि चिकित्सा विज्ञान अपने सही मकसद से अलग होता जा रहा है। इस तरह के प्रयास से वास्तविक हल कभी भी नहीं मिल पाएगा। हमें फिर से नए ढंग से प्रयास करना चाहिए। एक ऐसा प्रयास जो बुद्धिसंगत एवं सामान्य व्यवहार पर आधारित हो जिसमें हृदय रोग के कारणों का विश्लेषण तथा साथ ही मरीजों को उन उत्तरदायी कारकों के प्रति सचेत करना भी है। इससे, इस रोग की वृद्धि थम जाएगी। चिकित्सा विज्ञान भी अब इस बात पर राजी हो गया है कि हृदय रोग के कारणों का ध्यानपूर्वक एवं सही दिशा में अध्ययन किया जाए तो यह संभव है कि हृदय रोग एवं ब्लॉकेज से मुक्ति पायी जा सकती है और यह धारणा ‘डीन आर्निश एवं अन्य वैज्ञानिकों के तत्कालीन अध्ययन के कारण बन पायी है।
‘साओल हार्ट प्रोग्राम’ का लक्ष्य भी हृहय रोग को फैलने से रोकना है। इसलिए हमने इस हार्ट केयर प्रोग्राम को इस दिशा में विकसित किया है जहां हृदय रोगों का उपचार, कारणों को चिह्नित करके किया जाता है। प्रशिक्षण कार्यक्रमों के माध्यम से मरीजों को आहार, योगा, ध्यान, व्यायाम, स्ट्रेस मैनेजमेंट, कोलेस्ट्रॉल नियंत्रण, रक्तचाप, डायबिटीज, वजन आदि अन्य संभावित उपायों द्वारा सहायता की जाती है ताकि हृदय को आत्म उपचार के लायक बनाया जा सके। इस तरह के प्रशिक्षण कार्यक्रम संपूर्ण भारत में (दिल्ली, मुम्बई, कोलकात्ता, बंगलोर) लगातार चलाए जा रहे हैं।
|
अन्य पुस्तकें
लोगों की राय
No reviews for this book