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सपने करो साकार

विक्रांत महाजन

प्रकाशक : प्रभात प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2010
पृष्ठ :190
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 7922
आईएसबीएन :9788173158704

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डिजरायली ने एक बार कहा था–‘‘जीवन बहुत छोटा है और हमें संतोषी नहीं होना चाहिए।’’...

Sapne Karo Sakar - A Hindi Book - by Vikrant Mahajan

‘मेरा यह दृढ़विश्वास है कि सबसे अधिक शक्तिशाली मन है। ‘सपने करो साकार’ आपके दिमाग को आपके सपनों के अनुरूप जीवन जीने की स्थिति में अनुकूलित करेगी।’

–एम.एफ. हुसैन

‘मैंने विक्रांत की सभी पुस्तकें पढ़ी और पसंद की हैं, इन सब में एक समानता है–उनके शब्दों में जादुई प्रभाव है!’

–मलाइका अरोड़ा खान

‘अत्यंत सहजता और ईमानदारी से उठाया गया एक कठिन विषय, जो ‘सपने करो साकार’ को पठनीय और प्रेरणादायी पुस्तक बनाता है।’

–रोहित बल

‘शानदार पुस्तक–‘सपने करो साकार’ निश्चय ही ऊँचे सपने देखकर उन्हें साकार करने को आतुर नई पीढ़ी के लिए गुरुमंत्र है!’

–रमोला बच्चन

एक बार आप खुद को विस्तार देते हुए सही दिशा में कदम उठाएँ तो आपका जीवन स्वतः दिन-ब-दिन अधिक बड़ा, बेहतर और ऊँचा मुकाम पाता जाएगा। जैसा कि रॉबर्ट एच. शुलर ने कहा था–‘‘एक बार शुरू होने के बाद सफलता कभी रुकती नहीं, क्योंकि सफलता अनंत है। यहाँ तक कि सूरज का डूबना बीते हुए दिन का अंत नहीं है, क्योंकि वह दिन अटल इतिहास का एक हिस्सा बनते हुए शाश्वत हो चुका है।’’

तो अपनी सफलता और अपने जीवन को वास्तव में आरंभ होने दीजिए; क्योंकि एक बार ऐसा होने पर वह कभी समाप्त नहीं होगा। जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में अपने आपको विकसित कीजिए। राह के हर रोड़े को अपनी सीढ़ी बना लीजिए।

अगर आप गहराई से मनन करेंगे तो जानेंगे कि और कोई नहीं, बल्कि आप ही खुद को आगे धकेलते हैं और आप ही खुद को पीछे खींचते हैं। आपके जीवन और आपकी सफलता का दायित्व पूरी तरह आप पर है। जैसा कि कहा जाता है–‘एक पहाड़ और बड़ा नहीं हो सकता, लेकिन आप हो सकते हैं!’ इसलिए अपना विस्तार करें। अपने आपको किसी भी पहाड़ से बड़ा बनाएँ और अपने सपनों को साकार करें। विश्वास कीजिए, आप यह बखूबी कर सकते हैं।

१. 

केवल बड़ा सोचें


डिजरायली ने एक बार कहा था–‘‘जीवन बहुत छोटा है और हमें संतोषी नहीं होना चाहिए।’’

अपने आपको भव्यतम रूप में देखने की दिशा में आपका अनवरत प्रयास होना चाहिए। आप अपने लिए जिस सबसे ऊँचे स्तर की कल्पना कर सकते हैं, उसके लिए मेहनत करनी चाहिए। अधिकतर लोग अपने आपको संकीर्णता की ओर ले जाते हैं और छोटी चीजों से संतुष्ट होने की मानसिकता रखते हैं। वे बहुत कम से खुश हो जाते हैं–‘‘अगर मुझे १॰ प्रतिशत की वेतन-वृद्धि मिल जाए तो मुझे खुशी होगी’’ या ‘‘अगर मुझे अगले शनिवार को छुट्टी मिल जाए तो मैं खुश हो जाऊँगा।’’ वे कभी १॰॰ प्रतिशत (या १,॰॰॰ प्रतिशत) के उछाल या एक महीने की छुट्टी की कल्पना या उम्मीद नहीं करते और यह स्पष्ट है कि उन्हें वह कभी नहीं मिलता; क्योंकि जैसा कि रॉल्फ वाल्डो इमर्सन ने कहा था–‘‘हर कार्य एक विचार से जन्म लेता है।’’

अधिकाश मनुष्य एक दायरे में कैद होते हैं और यह सोचते हैं कि उन्होंने अपनी सीमाएँ पा ली हैं। बहुत सारे लोग अपने जीवन में यथास्थिति को स्वीकार कर लेते हैं और घिसटते रहते हैं। वे कभी किसी बड़े लक्ष्य के लिए अपने विश्वास, क्षमता या विचारों को आगे नहीं ले जाते। लेकिन वास्तव में लगातार पहले से बड़ा, बेहतर और ऊँचा होते जाना मनुष्य की नियति है। क्या हम दो लाख वर्ष पहले के होमो सेपियंस से बहुत अधिक विकसित नहीं है? क्या सौ वर्ष पहले तक लोग किसी तापमान-नियंत्रित वातावरण में रह सकते थे? अपने गंतव्य तक उड़कर जा सकते थे? हजारों मील दूर होनेवाली किसी घटना को ‘लाइव’ देख सकते थे? कहीं से, किसी से भी बात कर सकते थे? विलासितापूर्ण कारों में घूम सकते थे और ४ सेकंड में ॰ से १॰॰ किलोमीटर प्रतिघंटा की गति में पहुँच सकते थे? एक बटन क्लिक करके कोई भी जानकारी प्राप्त कर सकते थे? हाथ-पैरों या हृदय का प्रत्यारोपण करा सकते थे? किसी फोटोग्राफिक फिल्म की सहायता के बिना एक छोटे से स्टांप के आकार के मेमोरी कार्ड पर हजारों तसवीरें खींचकर सुरक्षित रख सकते थे? २४ घंटे वाले स्टोरों में शॉपिंग कर सकते थे? एक फोन पर फिल्म देख सकते थे? प्लास्टिक को पैसे का विकल्प बना सकते थे? चाँद पर मनुष्य को उतार सकते थे या मंगल ग्रह और ब्रह्मांड की सुदूर कक्षाओं में उपग्रह भेज सकते थे? जानवरों का क्लोन तैयार कर सकते थे और एक मनुष्य का क्लोन तैयार करने के मुहाने पर हो सकते थे?

यह सब इसलिए हो पाया, क्योंकि कुछ लोग मानव मस्तिष्क की भविष्य को आकार देने की शक्ति में भरोसा करते थे। उनके पास एक दृष्टि थी और उन्होंने उस दिशा में अथक प्रयास किया। उन्होंने कल्पना, संभावना की सीमाओं को ताना और एक स्पष्ट हकीकत को जन्म दिया। इसी तरह, हम सब मानवता के एक खूबसूरत भविष्य और उतने ही अद्भुत वर्तमान को जन्म दे सकते हैं, अगर हम जो हैं, उससे परे जो हो सकता है, उसके बारे में सोचना शुरू कर दें। उस वादे को पूरा करने के लिए हमें बस अपने छोटे से संदूक से निकलना है और कुछ बड़ा सोचना है।

नेपोलियन हिल ने एक बहुत अच्छी बात कही थी–‘‘मस्तिष्क की कोई सीमा नहीं है, सिर्फ वही हैं, जिन्हें हम मानते हैं। यदि आप सोचते हैं कि आप कुछ कर सकते हैं, या आप सोचते हैं कि आप नहीं कर सकते तो अवरोध पूरी तरह आपके दिमाग में होता है।’’

आधी दुनिया की उड़ान भरनेवाले पहले नेत्रहीन व्यक्ति और ‘पृथ्वी के सबसे कठिन फुट रेस’, १५॰ मील लंबे मैराथन डेस सेबल्स में दौड़नेवाले माइल्स हिल्टन बारबर ने एक बार कहा था—‘‘आपकी कामयाबी आपके दोनों कानों के बीच लगभग पाँच इंच की दूरी के भीतर निहित होती है।’’

कटसुसुके यानगिसावा ने जैविक आयु के हर ज्ञात घेरे को विस्तृत करते हुए इकहत्तर वर्ष की आयु में माउंट एवरेस्ट को फतह किया। जब बाद में उनसे पूछा गया कि उन्होंने यह कैसे किया, तो उन्होंने कहा, ‘‘लोग मुझे हमेशा यह कहते रहे कि वह क्यों असंभव है। मैं बस यह सोचता रहा कि वह क्यों संभव है।’’ बड़ी सोच का चमत्कार इतना ही सरल और शक्तिशाली है। उससे सामना होने पर सबसे ताकतवर पहाड़ भी छोटा पड़ जाता है।

डोनाल्ड ट्रंप ने कभी कहा था–‘‘सफल होने के लिए आपको शेष दुनिया के ९८ प्रतिशत लोगों से खुद को अलग करना होगा। निश्चित रूप से आप सबसे ऊँचे स्थित उस विशिष्ट दो प्रतिशत में शामिल हो सकते हैं और इसके लिए सिर्फ चतुर होना, मेहनत करना और बुद्धिमत्ता से निवेश करना पर्याप्त नहीं है। कामयाबी का एक फॉर्मूला, एक रेसिपी है, जिसे दो प्रतिशत लोग अपनाते हैं और आप भी कामयाब होने के लिए उसे अपना सकते हैं। वह है–बड़ा सोचो और जुट जाओ।’’

दुनिया के अब तक के सबसे कामयाब निवेशक वारेन बफेट को हार्वर्ड बिजनेस स्कूल द्वारा प्रवेश देने से मना कर दिया गया था। उनके पहले नियोक्ता ने उन्हें ठुकरा दिया था, जब उन्होंने अपनी निःशुल्क सेवाओं का प्रस्ताव रखा और अपने पहले व्यावसायिक निवेश में बुरी तरह विफल रहे। लेकिन एक चमत्कारी तावीज ने उनकी किस्मत बदल दी और वह दुनिया के सबसे अमीर आदमी बन गए। उनका तावीज था–‘‘बड़ा सोचो और विफलता के बाद सफलता पाओ।’’

धीरूभाई अंबानी, जो सप्ताहांतों में गिरनार पहाड़ पर तीर्थयात्रियों को पकौड़े बेचते थे और यमन में एक गैस स्टेशन पर अटेंडेंट के रूप में काम करते थे, ने एशिया का एक विशाल कॉरपोर्ट साम्राज्य खड़ा किया। उनका भी जीवन में एक ही मंत्र था, जिसका वह अनुसरण करते थे–‘‘बड़ा सोचो, तेज सोचो, आगे की सोचो।’’
ऐसा नहीं है कि जो लोग बड़ा नहीं सोचते, वे सोचते ही नहीं। इस दुनिया में एक भी व्यक्ति ऐसा नहीं है जो सोचता न हो। मेरा कहना है कि अगर आप सोच ही रहे हैं तो क्यों न बड़ा सोचें। नेपोलियन हिल ने एक बार महसूस किया–‘‘दुःख और गरीबी स्वीकार करने के लिए जितना प्रयास अपेक्षित है, जीवन में ऊँचा लक्ष्य रखने के लिए उससे अधिक प्रयास की जरूरत नहीं है।’’ आपको बस एक पहल करनी है, एक संकल्प लेना है कि आपको भव्य विचार रखने हैं। यह एक बर्गर और एक फल के बीच चयन करने जितना आसान है। आप दोनों ही चीजों को खा सकते हैं। आपको बस यह फैसला करना है कि आपको क्या चाहिए।

हमारा मस्तिष्क विचारों का एक अद्भुत संग्रह है। यह हमारे ऊपर है कि हम अपनी प्लेट उठाएँ और जो-जो हमें चाहिए, उससे भर लें। इसके लिए बस चुनने की जरूरत है–अपने जीवन को यथासंभव भव्यतम रूप में जीने के लिए एक व्यक्तिगत शर्त। इसके लिए कभी देर नहीं होती। जैसा कि टेनीसन ने कहा था–‘‘मेरे मित्रों! आओ, एक नई दुनिया बसाने के लिए कभी देर नहीं होती।’’ इसलिए चलिए, कुछ बड़ा सोचें और एक ऐसी दुनिया बसाएँ, जिसके बारे में हमसे पहले किसी ने सपना भी न देखा हो।

२.

विचारों के सर्जक बनें


रॉबर्ट एच. शुलर ने कभी कहा था–‘‘किसी को पैसे की समस्या नहीं है। लोगों को बस विचारों की समस्या होती है। इसलिए जब तक आपके पास सही विचार हैं, पैसे की कभी समस्या नहीं होगी।’’ और यह कितना सच है! माइक्रोसॉफ्ट एक विचार के साथ शुरू हुआ, रिलायंस एक विचार के साथ शुरू हुआ और यही बात पेप्सी, मैकडोनॉल्ड्स, जीई, वॉल्मार्ट, विप्रो एवं असंख्य दूसरे समूहों के बारे में कही जा सकती है। इसी तरह द फाउंटेनहेड, माई फेयर लेडी, कैच-२२, गाइड, उलिसेस, गॉन विद द विंड और संपूर्ण साहित्य एक विचार से उत्पन्न हुआ। यही टाइनेटिक, लाइफ इज ब्यूटीफुल, सिटिजन केन, ग्लेडिएटर, दिलवाले दुल्हनिया ले जाएँगे और बाकी फिल्मों के लिए भी सच है। हर संस्थान एक विचार से जनमा। इसी तरह हर दर्शन का जन्म भी एक विचार से ही हुआ। परिवहन का हर साधन–हवाई जहाज, बस, कार, रेलगाड़ी, साइकिल, नाव, स्केट–एक विचार से बना। चारों ओर देखें और किसी भी फर्नीचर, कर्टलरी, सजावट–कभी भी बनाई गई या उपयोग में लाई गई कोई भी वस्तु–का खाँचा एक विचार से उभरा। खेलों और मनोरंजन के साधनों का आविष्कार भी विचार से ही हुआ। तो इसका सार क्या है? अगर आप कुछ भी महत्त्वपूर्ण करना चाहते हैं तो विचारों का लाभ उठाना शुरू करें।

ऐसे असंख्य विचार मौजूद हैं, जो अपना लाभ उठाए जाने का इंतजार कर रहे हैं। मैंने एक बार कहीं यह स्मरणीय उद्धरण पढ़ा था–‘‘चैंपियन कोई काल्पनिक स्वप्नद्रष्टा या महान् बुद्धिजीवी नहीं होते, बल्कि उनके पास विचार होते हैं।’’

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