ओशो साहित्य >> सम्बोधि के क्षण सम्बोधि के क्षणओशो
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जब स्वयं का स्वयं से साक्षात्कार होता है।
जिन्दगी सदा नये सवाल उठाती है और तुम्हारे जवाब हमेशा पुराने होते हैं। इसलिए जिन्दगी और तुम्हारा तालमेल नहीं हो पाता, संगीत नहीं बन पाता। जिन्दगी कुछ पूँछती है, तुम कुछ जवाब देते हो। जिन्दगी पूरब की पूँछती है तुम पश्चिम का जवाब देते हो। जिन्दगी कभी वही दोबारा नहीं पूँछती। और तुम्हारे जवाब वही हैं। जो तुम्हारे बाप दादों ने दिये थे, उनके बाप दादों ने दिये थे। मजा यह है कि जितना पुराना जवाब हो, लोग समझते हैं उतना ही ज्यादा ठीक होगा। जितना पुराना हो उतना ही ज्यादा गलत होगा! जवाब नया चाहिए नित नूतन चाहिए! जवाब तुम्हारी स्फुरणा से पैदा होना चाहिए। जवाब तुम्हारे बोध से आना चाहिए।
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