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श्रंगार-विलास >> वयस्क किस्से

वयस्क किस्से

मस्तराम मस्त

प्रकाशक : श्रंगार पब्लिशर्स प्रकाशित वर्ष : 1990
पृष्ठ :132
मुखपृष्ठ :
पुस्तक क्रमांक : 774
आईएसबीएन :

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मस्तराम के मस्त कर देने वाले किस्से


इस पर वह जोर-जोर से हँसती बोली—क्या तुमने अपने भाई और भाभी को नंगे देखा है?
मैं लजाता बोला—हां आण्टी।
आण्टी बोली—तुमने क्या-क्या देखा? खुल कर बताओ तुम्हारे भाई ने तुम्हारी भाभी के साथ क्या किया?
मेरे भाई और भाभी दोनों थाने में रहते हैं। हमारे घर से उनका घर फिर भी अच्छा है। दरवाजा बंद हो तो बाहर से किसी को कुछ नहीं दिखता। मुझे नींद नहीं आ रही थी और मैं आँखे बंद किये लेटा था लेकिन नींद नहीं आ रही थी। हम सभी जमीन पर ही लेटे थे। मैं एक कोने में था और भाई एक कोने में लेकिन भाभी बिस्तर पर लेटी थी। कमरे में दरवाजे की झिरी से हल्की रोशनी आ रही थी। पहले तो मुझे अंधेरे में कुछ भी नहीं दिख रहा था। लेकिन थोड़ी देर बाद अंधेरे में मुझे काफी साफ दिखने लगना। मैंने देखा कि उस रात को जब हम सब सोये हुये थे तो भाभी चुपचाप उठकर जमीन पर लेटे हुए भाई के ऊपर आकर लेट गई। उसके बाद भाभी, भाई के बदन से कसकर लिपट गई और भाई के बदन को सहलाने लगी। भाई भी भाभी को पकड़ सहलाते हुये कपड़ों के ऊपर से ही उसके उभारों को मसलने लगे। मैं चुपचाप सोने का अभिनय करते हुए सब देख रहा था।
यह देखते ही मेरा हाथ अपनी लुंगी के अंदर अपने आप पहुँच गया। वहाँ हरकत शुरू हो चुकी थी और उसी समय एकदम से कड़ा होने लगा। थोड़ी देर में ही देखा की भाभी एक तरफ बैठकर भाई की लुंगी से उसके सामान को मस्ती से बाहर निकाल कर उसे अपनी हथेलियों के बीच सहलाने लगी। बात-की-बात में भाई का मुरझाया सामान छत की ओर लपकने की कोशिश करने लगा। भाई भी भाभी की साड़ी में एक हाथ घुसाकर कुछ सहलाने लगे, अब तो भाभी ने थोड़ा पीछे खिसकर कर जगह बनाई, ताकि भाई का हाथ आराम से अपना काम कर सके। भाभी की पकड़ भाई के सामान से ढीली हो गई क्योंकि अब उसे भाई के हाथ से ज्यादा मजा आने लगा। वह बहुत हल्की आवाज में सिसयाने लगी।

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