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श्रंगार-विलास >> वयस्क किस्से

वयस्क किस्से

मस्तराम मस्त

प्रकाशक : श्रंगार पब्लिशर्स प्रकाशित वर्ष : 1990
पृष्ठ :132
मुखपृष्ठ :
पुस्तक क्रमांक : 774
आईएसबीएन :

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मस्तराम के मस्त कर देने वाले किस्से

उसके नग्न और तप्त स्त्रीत्व की झाँकी का आई टॉनिक कुछ देर लेकर भी अतृप्त रहने के कारण अब उसने माधवी के सलवार के बंधन पर अपनी दृष्टि लगाई। इस समय यदि कहीं विमल की उंगलियाँ सलवार के अंदर छिपे उसके स्त्रीत्व के मुहाने पर पहुँच जाती तो उसे पता चल जाता कि वहाँ कितनी प्राकृतिक चिकनाई और नमी पलकें बिछाए तैयार थी। माधवी वक्ष की त्वचा के अंदर उसकी हृदय गति सुपर फास्ट ट्रेन की रफ्तार से दौड़ रही थी। माधवी की कमर और नाभि पर रेंगती विमल की उंगलियाँ जब तक सलवार के बंधन पर पहुँचीं, तब तक आनन्दातिरेक के कारण माधवी की आँखें मुंद चुकी थीं। कुछ क्षणों के बाद माधुरी ने आँखे खोलीं तो पाया कि विमल उसके सलवार के बंधन की गाँठ से उलझा हुआ था। माधवी ने उसे उलझे रहने दिया, जैसे ही सलवार का बंधन खुला विमल ने कुछ बेसब्री से सलवार को नीचे खिसका दिया। अब उसका सामना एक साफ सुथरी कॉटन की होजरी वाली चढ्ढी से हुआ। उसकी इलास्टिक को पकड़ नीचे करते हुए विमल ने एक बार झांका और फिर पूरी निर्दयता से कमर के दोनों ओर पकड़ते हुए माधवी को अपनी मनपसन्द अवस्था में कर दिया।

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