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श्रंगार-विलास >> वयस्क किस्से

वयस्क किस्से

मस्तराम मस्त

प्रकाशक : श्रंगार पब्लिशर्स प्रकाशित वर्ष : 1990
पृष्ठ :132
मुखपृष्ठ :
पुस्तक क्रमांक : 774
आईएसबीएन :

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मस्तराम के मस्त कर देने वाले किस्से

नयी नवेली


अत्यंत सावधानी के साथ गाड़ी को मेट्रोपार्क स्टेशन के सामने ले जाकर माधवी ने सड़क के किनारे लोगों को उतारने की जगह रोक दिया। विमल दरवाजा खोलकर गाड़ी से बाहर निकलने को हुआ ही था कि वह धीरे से बोली ऐऽऽऽ। लगभग बाहर निकलते हुए विमल ने प्रश्नसूचक नेत्रों से उसकी ओर देखा। माधवी चुम्बन की मुद्रा में प्रस्तुत थी। विमल बोला, "ओह!" उसने पलट कर माधवी के होठों से अपने होठ सटा दिये। लेकिन एक सेकण्ड से कम के समय में भी उसके पेंट में उत्तेजना प्रवाहित हो गई। माधवी ने अपने रसभरे होठों से अत्यंत उत्तेजना और बल से उसे चूम लिया था। विमल इसके लिए तैयार नहीं था, लेकिन ऐसे अवसर चूकने वाला आदमी तो वह था नहीं, इसलिए उसने चुम्बन का उत्तर दिया। उनके कार्यक्रम से क्रोधित पीछे वाली कार ने हार्न तो नहीं बजाया लेकिन अपनी कार को अपेक्षाकृत अधिक तेजी से बायीं ओर काटा और तिरछी दृष्टि से उन्हें देखता हुआ निकल गया।

इस सबसे पूर्णतः अनभिज्ञ माधवी विमले के कान में धीरे-से फुसफुसाई, "शाम को जल्दी आना!" कार से बाहर निकलते हुए विमल के मन बरबस ही घर वापस लौट चलने को हुआ, पर उसे आफिस का काम याद आया और वह माधवी से शाम को जल्दी आने के लिए कहता हूँ, रेलवे प्लेटफार्म की ओर चल पड़ा।

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