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श्रंगार-विलास >> वयस्क किस्से

वयस्क किस्से

मस्तराम मस्त

प्रकाशक : श्रंगार पब्लिशर्स प्रकाशित वर्ष : 1990
पृष्ठ :132
मुखपृष्ठ :
पुस्तक क्रमांक : 774
आईएसबीएन :

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मस्तराम के मस्त कर देने वाले किस्से

प्रकाश के घूमते ही अंधेरे में भी कामिनी की आँखे चमक उठीं। बिस्तर पर तो रोशनी नहीं थी, लेकिन बाहर वाले कमरे में लगे नीले नाइट बल्क के प्रकाश में वह प्रकाश के उन्नत कामांग को साफ-साफ देख सकती थी। रात के हल्के अंधेरे में उसकी और प्रकाश की आँखे मिली। कामनी ने मन-ही-मन लंबी सांस ली। उसकी दोनों हथेलियों  प्रकाश के कंधे का रास्ता भूल गईं और बरबस ही प्रकाश के उन्नत और थरथराते कामांग के दोनों ओर पहुंच गई। कामिनी ने दही मथने वाले डण्डे की तरह प्रकाश के कामांग को धीरे-धीरे पहले दोनों ओर से सहराना शुरु किया और फिर अपनी उंगलियों का दबाव बढ़ा दिया। प्रकाश की आंखें मुंद गईं थी। कामिनी भी अपनी आँखे बहुत कठिनाई से खोले रख पा रही थी।

उत्तेजना में कामिनी ने अपने कामांग का ऊपरी हिस्सा प्रकाश के कामांग की जड़ पर जमा दिया और कुछ क्षणों तक उससे रगड़ कर अपनी उत्तेजना शांत करने की कोशिश की, लेकिन हुआ इसका बिलकुल उल्टा। पिछले आधे घण्टे से संभाला हआ सब्र का बांध टूटने को हो गया। रही-बची कसर प्रकाश ने अपनी दोनों हथेलियों को उसके उरोजों पर जमा कर पूरी कर दी। कामिनी अब अपने पैर के अंगूठों और उंगलियों से लेकर सिर तक सनसनाहट का अनुभव कर रही थी। ऐसा लग रहा था कि वह अपने ही शरीर के रोम-रोम को अनुभव कर रही थी।

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