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श्रंगार-विलास >> वयस्क किस्से

वयस्क किस्से

मस्तराम मस्त

प्रकाशक : श्रंगार पब्लिशर्स प्रकाशित वर्ष : 1990
पृष्ठ :132
मुखपृष्ठ :
पुस्तक क्रमांक : 774
आईएसबीएन :

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मस्तराम के मस्त कर देने वाले किस्से

प्रकाश जब बिस्तर पर लेटने लगा तो कामिनी ने आगे झुककर प्रकाश के कुर्तो को दोनों हाथों से कमर के पास पकड़ा और उल्टा करके उतारने लगी। इस प्रक्रिया में उसके झुके होने के कारण उसके नंगे वक्ष ठीक प्रकाश की आँखों के सामने आ गये। अब प्रकाश को पता लग चुका था कि कुर्ते के नीचे से कामिनी ने ब्रा हटा दिया है। कामिनी के सुडौल वक्ष और उन पर लगा चंदन का पाउडर अपना काम कर गया था। प्रकाश दीवार की ओर बने सिरहाने की तरफ सिर रखते हुए पेट के बल लेट गया। कामिनी बिस्तर के अपनी ओर वाले भाग में सिरहाने की तरफ बैठ कर प्रकाश के दायें कंधे की उँगलियों से मालिश करने लगी। कुछ मिनटों के बाद कामिनी बोली, "या तो तुम बिस्तर में पैरों की तरफ सिर रखकर लेटो या फिर मैं तुम्हारी पीठ पर बैठ कर मालिश करती हूँ, क्योंकि इस तरह तिरछे होकर बैठने से सही तरह से ताकत नहीं लग पाती।" प्रकाश बोला, "इधर ही ठीक है, बाद में आलस आयेगा, उठने में। इधर से ही मालिश कर दो। मुझे नहीं मालूम था कि तुम इतनी अच्छी मालिश कर सकती हो, नहीं तो पहले भी बोलता।"

कामिनी को तो यही चाहिए था। यदि प्रकाश घूम जाता तो वह बिस्तर से उतर कर कुर्सी पर बैठकर मालिश करती। अब सही रहेगा। वह प्रकाश की कमर पर अपने घुटनों को मोड़कर प्रकाश की कमर वाले हिस्से पर कुछ ऐसे बैठी कि उसका शरीर तो प्रकाश से स्पर्श करता रहा, लेकिन उसने अपने शरीर का भार प्रकाश पर नहीं पड़ने दिया। इस तरह कंधे की मालिश करने में एक फायदा और भी था। इस तरह उसका दायीं हथेली प्रकाश के दायें कंधे पर सहज भाव में मालिश कर सकती थी। कामिनी ने प्रकाश के दोनों कंधों पर धीरे-धीरे मालिश शुरु की। आटा गूँथने मे वह बहुत माहिर थी। इसलिए अपने उसी अभ्यास का लाभ उठाते हुए प्रकास माँस-पेशियों को धीरे-धीरे रगड़ रही थी। थोड़ी देर बाद उसने प्रकाश से पूछा, "इस तरह बैठने से तुम्हे गरमी लग रही होगी।" प्रकाश को अपनी सेवा करवाने में इस समय बहुत आनन्द आ रहा था। वह बोला, "हाँ, गरमी तो लग रही है, लेकिन मालिश से अच्छा लग रहा है। तुम थक रही हो क्या?"

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