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श्रंगार-विलास >> वयस्क किस्से

वयस्क किस्से

मस्तराम मस्त

प्रकाशक : श्रंगार पब्लिशर्स प्रकाशित वर्ष : 1990
पृष्ठ :132
मुखपृष्ठ :
पुस्तक क्रमांक : 774
आईएसबीएन :

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मस्तराम के मस्त कर देने वाले किस्से


हां अब तुमको रात को हमारे यहां रहना हैं अपनी किताब कॉपी लेते चलो वहीं आराम से पढ़ना और सो जाना। क्यों बहन जी?
हां....हां....मैं पहले ही कह चुकी हूँ। अकेले घर में अच्छा नहीं लगता।।
वो तो है जाओ चाची के साथ मेरी मां ने पुनः मुझे कहा तो मैं खुशी-खुशी कॉपी किताब लेकर चाची के साथ उनके घर पहुँच गया।
रास्ते में चाची के मांसल नितम्बों को देखने से पता नहीं कैसी सरसराहट मन में होने लगी। आज चाची के पिछवाड़े को देखते ही मेरे अगवाड़ा अपने आप में अजीब सा महसूस करने लगा था। गुदगुदाते मन से चाची के घर गया।
चाची हमारा और अपना भोजन तैयार कर ठीक आठ बजे साथ खायी। इसी बीच मैं चाची के दोनों पपीते को देख-देख अपने कुंवारेपन को मदहोश का घुट पिलाता रहा।
मुझमें अब थोड़ी-थोड़ी चुलबुली सी समा गई थी। सेक्स की। भूख जाग रही थी और मैं एक नई दुनिया की सैर करने को चाची के बदन का ताक-झांक करने लगा था।
अनायास में किसी के प्रति मेरे मन में आकर्षण पैदा हो चला था। मन में उस अंग को देखने की हसरतें जवान हो उठी थी।
खाने के बाद चाची ने गौर से मेरी ओर देखते पूछा पढ़ोगे या सोओगे। सोयेंगे चाची। अलग कि हमारे पास। मेरे झुरझुराते गाल पर हाथ फेरती जो पूछी तो आनन्द से सिहरता बोला....आप के पास।
तुम बिस्तर ठीक करो मैं उसको बुला कर लाती हूं।
किसको चाची?
बगल वाली चंदा को जानते हो ना।
हां....वह भी आयेगी क्या सोने?
हां आज उसको तुम्हारे लिए ला रही हूँ। तुम्हारी आज उससे शादी कराऊंगी, करोगे? कहते हुए चाची ने बेताबी के साथ हमें बांहों में भर अपने गुदाज सीने से जो भींचा तो मैं आनन्द से भर चिपक सा गया। जिसके लिए मैं तरस रहा था चाची ने अपने आप आसान बना दिया था। उसके गुदाज़ वक्षों का स्पर्श हमें बड़ा ही सुखद सा प्रतीत हो रहा था। चाची एक हाथ को धीरे से टपका मेरे पैजामे के पकड़ की ओर से खिसकाती पूछी बोलो चन्दा से शादी करोगे आज रात!
अब चाची के समीप से हमें बेहद मजा प्राप्त हो रहा था जो. हथेली रानों पर थी उसमें और अच्छा लग रहा था। मैं थोड़ा शरमाया कि चाची पैजामे के पकड़ से पूरे बदन में बिजली का झटका देती बोली।

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