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श्रंगार-विलास >> वयस्क किस्से

वयस्क किस्से

मस्तराम मस्त

प्रकाशक : श्रंगार पब्लिशर्स प्रकाशित वर्ष : 1990
पृष्ठ :132
मुखपृष्ठ :
पुस्तक क्रमांक : 774
आईएसबीएन :

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मस्तराम के मस्त कर देने वाले किस्से


आण्टी एकदम नंगी होकर मेरी जाँघों पर अपनी चौड़ी कमर लेकर मजे से बैठी हैं। उनके मांसल तिकोन का लाल मुहाने पर मेरे नूनू को लगा रही हैं।
मैंने पूरी नंगी आण्टी को एक बार ठीक से देखा तो देखता ही रह गया। रात के अंधेरें में देखी गई भाभी की कली की जगह अब आण्टी की पूरी बगिया सामने थी। मैं पिछला सब कुछ भूल गया और आण्टी के मांसल शरीर का मजा लेने लगा।
एक बार अपने हाथों से आण्टी की फाँक को स्पर्श किया तो आण्टी की कली ऊपर से नीचे तक चिकनी हो गई।
आण्टी तुरन्त अपनी कली के ठीक सामने लाकर अपने हाथ से मेर नूनू को सटाकर इतनी जोर से चापती चली गई कि मैं पलंग पर लेटे हुए ही जन्नत की सैर करने लगा। आण्टी सिसिकारी करते हुए एवं अकड़ते हुई वह धीरे-धीरे मेरे फूलकर लम्बे और मोटे हो गये नूना पर बैठ गई तो वह आण्टी की गहराई में पूरा समा गया।
अब तक आण्टी की भी आंखों में दर्द की हल्की पहचान दिखी, पर तब तक उत्तेजना उन पर हावी हो गई।
वह अपनी गहराई में पूरा ले लेने के बाद आण्टी ने मेरे दोनों हथेलियों को अपने गदराये पपीतों पर रख कर मुझे उनको दबाने का इशारा किया। पंद्रह साल की उमर में यह पाकर मैं तो सातवें आसमान की शैर करने लगा। मैं भी ताकत के साथ अब आण्टी की कमर पकड़े ठाप मारने लगा तो ऐसा लगा कि मैं भइया से किसी प्रकार कम नहीं था।
मेरी मजबूत ठापों से आण्टी की मस्ती बढ़ने लगी और वह बेहद खुश नजर आने लगी और आण्टी ने लगता था कि अपना शिकार देख समझ कर चुना था और मेरे नूनू की दूर से अच्छी जाँच-पड़ताल की थी, ताकि वह भी जन्नत की सैर कर सके।
इस खेल का मजा यह था कि मुझे उत्तेजना तो थी, पर मैं जल्दी झड़ नहीं रहा था। आण्टी ने भरपूर चढ़ाई की। लेकिन फिर अपने मुझसे भारी शरीर के कारण वो थकने लगी तो पलट कर मैंने उसे पलंग पर लिटा दिया और फिर आण्टी को एक के बाद एक तीन बार ली। तीसरी बार तो मुझे आने में बहुत देर लगी। लेकिन आण्टी तो न जाने कितनी बार थरथराई।
मेरे काम से आण्टी इतनी खुश हो गई कि बोली—अब जब भी शौच करने आओ एक बार सीटी बजा दिया करो। अगर सोनम नहीं होगी तो मजा करेंगे।
(समाप्त)

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