कहानी संग्रह >> खंडित संवाद खंडित संवादसे. रा. यात्री
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से. रा. यात्री की 25 कहानियों का संकलन...
से. रा. यात्री की ये कहानियाँ गहरी अनुभूति और सहज
अभिव्यक्ति का आकलन हैं। खंडित संवाद साधारण मनुष्य के उस संघर्ष और त्रास
का दस्तावेज़ है जिसे वह कोई भी दावा किये बग़ैर अनवरत झेलता चला जाता है।
से.रा. यात्री की कहानियों से पाठक सुपरिचित हैं। वह उन्हें अपने दायरे में हर प्रकार की चुनौतियाँ झेलते हुए देखता है। कहानियों के पात्र उसे अपने ही प्रतिरूप लगते हैं।
ये कहानियाँ वादों के विवादों से परे हैं और पाठक को उन सच्चाइयों से परिचित कराती हैं, वह जिन्हें समझता तो है, पर उनके मर्म से हमेशा स्वयं साक्षात्कार नहीं कर पाता।
से. रा. यात्री की कहानियों को पढ़ना अपने आप और अपने आस-पड़ोस से मिल लेने जैसा है। दुनिया बदली, परम्पराएँ बदलीं, जीने का तौर-तरीक़ा बदल गया लेकिन कहीं कुछ है हमारे भीतर, जो अब भी शाश्वत है। बिखराव रोकने को मुँडेर बनाये हुए मूल्य हैं, जो हर पल चेताते हैं और चकाचौंध से बचाकर हमें अपनी ज़मीन से जोड़े रखते हैं। यात्री जी की कहानियाँ इसी ज़मीन की कहानियाँ हैं।
यात्री हमें याद दिलाते हैं कि जीने का संघर्ष बीते युग की कहानी नहीं है। एक छोटे से वर्ग ने आसमानी रंगीनियों को हवा में उछालकर संघर्ष-समाप्ति की घोषणा भले ही कर दी हो, पर राख के नीचे अभी चिनगारियाँ हैं। पिसते आमजन की ज़ुबान अभी चाहे कुछ न कह पा रही हो लेकिन चुप हो जाने का अर्थ हार जाना नहीं है।
से.रा. यात्री की कहानियों से पाठक सुपरिचित हैं। वह उन्हें अपने दायरे में हर प्रकार की चुनौतियाँ झेलते हुए देखता है। कहानियों के पात्र उसे अपने ही प्रतिरूप लगते हैं।
ये कहानियाँ वादों के विवादों से परे हैं और पाठक को उन सच्चाइयों से परिचित कराती हैं, वह जिन्हें समझता तो है, पर उनके मर्म से हमेशा स्वयं साक्षात्कार नहीं कर पाता।
से. रा. यात्री की कहानियों को पढ़ना अपने आप और अपने आस-पड़ोस से मिल लेने जैसा है। दुनिया बदली, परम्पराएँ बदलीं, जीने का तौर-तरीक़ा बदल गया लेकिन कहीं कुछ है हमारे भीतर, जो अब भी शाश्वत है। बिखराव रोकने को मुँडेर बनाये हुए मूल्य हैं, जो हर पल चेताते हैं और चकाचौंध से बचाकर हमें अपनी ज़मीन से जोड़े रखते हैं। यात्री जी की कहानियाँ इसी ज़मीन की कहानियाँ हैं।
यात्री हमें याद दिलाते हैं कि जीने का संघर्ष बीते युग की कहानी नहीं है। एक छोटे से वर्ग ने आसमानी रंगीनियों को हवा में उछालकर संघर्ष-समाप्ति की घोषणा भले ही कर दी हो, पर राख के नीचे अभी चिनगारियाँ हैं। पिसते आमजन की ज़ुबान अभी चाहे कुछ न कह पा रही हो लेकिन चुप हो जाने का अर्थ हार जाना नहीं है।
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