कहानी संग्रह >> शहतूत शहतूतमनोज कुमार पाण्डेय
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सशक्त रचनात्मक सम्पदा से सम्पन्न कहानियों का संग्रह...
पिछले कुछ वर्षों में कहानी की दुनिया में युवा पीढ़ी ने
सार्थक हलचल पैदा की है। इस पीढ़ी की सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण प्रतिभाओं में
एक है मनोज कुमार पाण्डेय। ‘शहतूत’ मनोज की कहानियों का पहला
संग्रह है, इसके बावजूद यह किताब अपने लिए किसी मुरौव्वत की माँग नहीं
करती; क्योंकि इसकी कहानियाँ सशक्त रचनात्मकता की सम्पदा से सम्पन्न हैं।
यहाँ एक तरफ़ नवांकुर का स्वाद है तो दूसरी तरफ़ विकासमान परिपक्वता की
उपस्थिति। ‘शहतूत’ की कहानियों के बारे में यह भी कहा जाना
चाहिए कि ये निजता और सामूहिकता–दोनों ही कसौटियों पर खरी हैं।
मनोज की विशेषता यह है कि वह अच्छी कहानी रचने के लिए ज़रूरी तत्त्वों का समुचित सहमेल तैयार करते हैं। उनकी कहानियों में विचार, कथ्य, भाषा–किसी भी एक चीज़ का विस्फोटक उभार नहीं होता है। कोई पलड़ा बहुत ज़्यादा झुका नहीं रहता है। इन सबको सटीक अनुपात में इस्तेमाल करते हुए वह अपनी कहानी की संरचना तैयार करते हैं। वह युवा पीढ़ी का ऐसा चेहरा हैं जिनकी कहानियों में वैचारिकी, भाषिक खिलन्दड़ापन, विडम्बना, हास्यबोध, करुणा, प्रयोग और परम्परा का सफल सम्मिश्रण मौजूद रहता है।
सबसे महत्त्वपूर्ण है कि मनोज के यहाँ सर्वोपरि है मनुष्य और उसका यथार्थ। भारतीय सामाजिक संरचना और संकटग्रस्त समाज की शिनाख़्त करने के कठिन रास्ते पर मनोज चलते हैं। वहाँ बिखरे बिछुड़े दुखों और दुखियारों को मनोज इकट्ठा करते हैं और सहारा देकर खड़ा करने का यत्न करते हैं। लेकिन बग़ैर शोरशराबे के। इसीलिए ‘शहतूत’ की कहानियाँ बिना जयघोष मचाये, बिना आहट दिये अपना मन्तव्य प्रकट करती हैं। साम्प्रदायिकता, स्त्री चेतना, दलित प्रतिरोध जैसे केन्द्रीय विषय भी इसी तरह उभरते हैं। मनोज को जीवन के मामूली प्रसंगों से समाज की बड़ी बातें रचने वाला कहानीकार कहा जा सकता है।
मनोज की विशेषता यह है कि वह अच्छी कहानी रचने के लिए ज़रूरी तत्त्वों का समुचित सहमेल तैयार करते हैं। उनकी कहानियों में विचार, कथ्य, भाषा–किसी भी एक चीज़ का विस्फोटक उभार नहीं होता है। कोई पलड़ा बहुत ज़्यादा झुका नहीं रहता है। इन सबको सटीक अनुपात में इस्तेमाल करते हुए वह अपनी कहानी की संरचना तैयार करते हैं। वह युवा पीढ़ी का ऐसा चेहरा हैं जिनकी कहानियों में वैचारिकी, भाषिक खिलन्दड़ापन, विडम्बना, हास्यबोध, करुणा, प्रयोग और परम्परा का सफल सम्मिश्रण मौजूद रहता है।
सबसे महत्त्वपूर्ण है कि मनोज के यहाँ सर्वोपरि है मनुष्य और उसका यथार्थ। भारतीय सामाजिक संरचना और संकटग्रस्त समाज की शिनाख़्त करने के कठिन रास्ते पर मनोज चलते हैं। वहाँ बिखरे बिछुड़े दुखों और दुखियारों को मनोज इकट्ठा करते हैं और सहारा देकर खड़ा करने का यत्न करते हैं। लेकिन बग़ैर शोरशराबे के। इसीलिए ‘शहतूत’ की कहानियाँ बिना जयघोष मचाये, बिना आहट दिये अपना मन्तव्य प्रकट करती हैं। साम्प्रदायिकता, स्त्री चेतना, दलित प्रतिरोध जैसे केन्द्रीय विषय भी इसी तरह उभरते हैं। मनोज को जीवन के मामूली प्रसंगों से समाज की बड़ी बातें रचने वाला कहानीकार कहा जा सकता है।
—अखिलेश
मनोज कुमार पाण्डेय
जन्म : 8 जनवरी, सिसवाँ, इलाहाबाद (उ.प्र.) में।
शिक्षा : एम.ए. (हिन्दी साहित्य), इलाहाबाद विश्वविद्यालय।
प्रकाशन : विभिन्न प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाओं में कहानियाँ प्रमुखता से प्रकाशित। आलोचना, रंगमंच और सिनेमा में गहरी रुचि। अनेक कहानियों का नाट्य रूपान्तरण किया, कुछ कविताएँ भी लिखी। कहानी ‘चन्दूभाई नाटक करते हैं’ की आधारशिला कला अकादमी, इलाहाबाद द्वारा नाट्य प्रस्तुति।
पुरस्कार : ‘प्रबोध मजुमदार स्मृति सम्मान - 2006’।
सम्पर्क : 18/201, इन्दिरा नगर, लखनऊ, (उ.प्र.)।
शिक्षा : एम.ए. (हिन्दी साहित्य), इलाहाबाद विश्वविद्यालय।
प्रकाशन : विभिन्न प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाओं में कहानियाँ प्रमुखता से प्रकाशित। आलोचना, रंगमंच और सिनेमा में गहरी रुचि। अनेक कहानियों का नाट्य रूपान्तरण किया, कुछ कविताएँ भी लिखी। कहानी ‘चन्दूभाई नाटक करते हैं’ की आधारशिला कला अकादमी, इलाहाबाद द्वारा नाट्य प्रस्तुति।
पुरस्कार : ‘प्रबोध मजुमदार स्मृति सम्मान - 2006’।
सम्पर्क : 18/201, इन्दिरा नगर, लखनऊ, (उ.प्र.)।
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