जीवनी/आत्मकथा >> घर और अदालत घर और अदालतलीला सेठ
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इस आत्मकथा में लीला ने अपने जीवन के खुशनुमा पलों के साथ-साथ मुश्किलों का भी जिक्र किया है
‘कई क्षेत्रों में अग्रणी एक महिला की जीवटता पन्ना दर पन्ना और
भी स्पष्ट रूप में सामने आती है।’
–फ़ेमिना
दिल्ली हाई कोर्ट की पहली महिला जज और भारतीय हाई कोर्ट के इतिहास में पहली महिला चीफ़ जस्टिस, लंदन में बार की परीक्षा में अव्वल आने वाली पहली महिला लीला सेठ ने ज़िंदगी को भरपूर जिया है। इस आत्मकथा में लीला ने अपने जीवन के ख़ुशनुमा पलों के साथ-साथ मुश्किलों का भी ज़िक्र किया है। बचपन में अपने बेघर हो जाने और उससे जुड़े संघर्षों, अपने पति प्रेमो के साथ इंग्लैंड में प्रवास के समय क़ानून की दुनिया तक अनायास ही पहुंच जाने और बाद में पटना, कलकत्ता और दिल्ली में प्रैक्टिस करने तथा पचास सालों से भी ज़्यादा लंबी सदाबहार शादीशुदा ज़िंदगी के बारे में उन्होंने अपने इस वृत्तांत में प्रमुखता से बात की है; जिसमें अपने तीन विलक्षण बच्चों–लेखक विक्रम, ज़ेन-बौद्ध धर्माचार्य शांतम और फ़िल्म निर्माता आराधना–को पालने-पोसने से जुड़े अनुभवों को भी शामिल किया है।
घर और अदालत में लीला बड़ी भावुकता और सरलता से अपने जीवन के इन दो पहुलओं को उजागर करती हैं। कहीं अंतरंग, कहीं पेचीदा और कहीं हंसा देने वाली यह किताब एक असाधारण महिला, उनके परिवार और उस समय की दिलचस्प और जीवन से भरपूर तस्वीर पेश करती है।
‘यह किताब हाथ से लगातार फिसलते समय के बारे में एक समाजशास्त्रीय अध्ययन है कि व्यस्त कामकाजी जीवन और उससे भी ज़्यादा अहमियत रखने वाली घरेलू ज़िंदगी के बीच किस तरह संतुलन बैठाया जाए। एक अद्भुत जीवन का असाधारण ब्योरा।’
–इंडिया टु़डे
‘उन्होंने अपने जीवन का ब्योरा जिस हल्के-फुल्के हास्य और समझदारी के साथ पेश किया है, वह उनके सामने आई राजनीतिक और न्यायिक परिस्थितियों के प्रति उनकी गहरी समझ को दर्शाता है।’
–हिन्दुस्तान टाइम्स
On balance, Leila Seth
आवरण चित्र: दिनेश खन्ना/फ़र्स्ट सिटी
अनुवाद: प्रदीप तिवारी
–फ़ेमिना
दिल्ली हाई कोर्ट की पहली महिला जज और भारतीय हाई कोर्ट के इतिहास में पहली महिला चीफ़ जस्टिस, लंदन में बार की परीक्षा में अव्वल आने वाली पहली महिला लीला सेठ ने ज़िंदगी को भरपूर जिया है। इस आत्मकथा में लीला ने अपने जीवन के ख़ुशनुमा पलों के साथ-साथ मुश्किलों का भी ज़िक्र किया है। बचपन में अपने बेघर हो जाने और उससे जुड़े संघर्षों, अपने पति प्रेमो के साथ इंग्लैंड में प्रवास के समय क़ानून की दुनिया तक अनायास ही पहुंच जाने और बाद में पटना, कलकत्ता और दिल्ली में प्रैक्टिस करने तथा पचास सालों से भी ज़्यादा लंबी सदाबहार शादीशुदा ज़िंदगी के बारे में उन्होंने अपने इस वृत्तांत में प्रमुखता से बात की है; जिसमें अपने तीन विलक्षण बच्चों–लेखक विक्रम, ज़ेन-बौद्ध धर्माचार्य शांतम और फ़िल्म निर्माता आराधना–को पालने-पोसने से जुड़े अनुभवों को भी शामिल किया है।
घर और अदालत में लीला बड़ी भावुकता और सरलता से अपने जीवन के इन दो पहुलओं को उजागर करती हैं। कहीं अंतरंग, कहीं पेचीदा और कहीं हंसा देने वाली यह किताब एक असाधारण महिला, उनके परिवार और उस समय की दिलचस्प और जीवन से भरपूर तस्वीर पेश करती है।
‘यह किताब हाथ से लगातार फिसलते समय के बारे में एक समाजशास्त्रीय अध्ययन है कि व्यस्त कामकाजी जीवन और उससे भी ज़्यादा अहमियत रखने वाली घरेलू ज़िंदगी के बीच किस तरह संतुलन बैठाया जाए। एक अद्भुत जीवन का असाधारण ब्योरा।’
–इंडिया टु़डे
‘उन्होंने अपने जीवन का ब्योरा जिस हल्के-फुल्के हास्य और समझदारी के साथ पेश किया है, वह उनके सामने आई राजनीतिक और न्यायिक परिस्थितियों के प्रति उनकी गहरी समझ को दर्शाता है।’
–हिन्दुस्तान टाइम्स
On balance, Leila Seth
आवरण चित्र: दिनेश खन्ना/फ़र्स्ट सिटी
अनुवाद: प्रदीप तिवारी
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