अतिरिक्त >> भक्षक भक्षकसुरेन्द्र मोहन पाठक
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सस्ते, खुरदुरे कागज में...
चिराग कासनीवाल को रात के अंधेरे में अपने पड़ोस से मौत का फरिश्ता अपनी तरफ झांकता जान पड़ता था, जो अपनी बाहें पसारे उसे उनमें समा जाने के लिए उकसाता था, हर घड़ी उसे एहसास दिलाता था कि कोई अनहोनी होने वाली थी। क्या वो सच में हलकान पशेमान था या वो उसके दिमाग का खलल था ?
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