अतिरिक्त >> डार से बिछुड़ा डार से बिछुड़ासुरेन्द्र मोहन पाठक
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सस्ते, खुरदुरे कागज में...
बहादुरी, जांबाजी, सरफरोशी जिसकी कौम की ऐसी दास्तान है, जो कि खून से लबरेज खंजर से वक्त की दीवार पर लिखी गयी है। आर्गेनाइज्ड क्राइम को खत्म करने के लिए प्रतिज्ञाबद्ध। बखिया का कातिल, इकबालसिंह का दुश्मन, कम्पनी के हर ओहदेदार के खून का प्यासा, अब कम्पनी का निजाम खुद हथियाने पर आमादा।
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