उपन्यास >> कुसुम सन्तो कुसुम सन्तोमोहन थानवी
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प्रस्तुत है राजस्थानी उपन्यास कुसुम सन्तो...
कुसुम रो कोई पंद्रहएक साल रो छोरो सूरजो
संता महाराज नै आपणों तो समझतो पण इण अपणापै में सनबन्ध कीसो है, बीनै ठा कोनी हो। बियांरो लागपण कोई पंद्रहएक साल पैली सरू होयो। सूरजो बीं दिनां
में सालभर रो हो। कुसुम रो धणी पुरखाराम एक स्कूल में चपरासी हो। एकदिन
सहर सूं गांव आवंता बगत जीप सूं टक्कर होयगी अ’र कुसुम आपरै
सूरजे रे बापू नै आपरी आंख्या रै साम्है इसी नींद में देख्यो जिकी सूं
जागणो इण धरती रै मिनखा रै बस में कोनी। बीं दिनां में संता महाराज कोई
पैंतालीसएक अ’र कुसुम तीसेक साल री ही दिनां नै कोई आपणे री
जरूरत ही। दोनां रै वास्ते गांव मांय कोई रै मन में उल्टो-सीधो विचार भी
कोनी आवंतो। हां आ बात जरूरत ही कै धणी री मौत रै कोई डेढ़एक साल बाद
कुसुम माथै मुसीबतां रो डूंगर आयग्यो तो अनपढ़ संता महाराज अणजाणै में
उणरा आंख्या रा मोती आप री हथैळियां में सहेज लिया। कुसुम चार दरजा
पढ़योड़ी ही इण खातर संता महाराज उणनै नौकरी दिरावण सारूं कोसिस करी।
कुसुम नै आपरै धणी पुरखाराम री जगां माथै शिक्षा विभाग में नौकरी मिलगी
कुसुम संता रै हिरदै री पिरेम गंगा नै ओलख्यो। संता रै मन री जाणी पण
दुनियादारी अ’र लाजसरम सूं बा संता महाराज नै कीं कैय कोनी
सकती। संता महाराज निरक्षश्रर हा अ’र कुसुम नै आपरै हिवणै रो
पिरेम अ’र पीड़ कैंवता डरता है। बियांरे भाग्य माथै कोई दूजो
अफसोस करे ना करे बियानै खुद नै आपरै आखरग्यानी नीं होवण रो दुःख जरूर हो।
कुसुम संतो
आभौ काळोकट अ’र उण माथै कुछ चिमकता अ’र घणासीक टिमटिम
करता तारा। चंद्रदेव आज दरसन नीं दिराया, अमावस ही। पण लोगां रै मन में
रोसनी है। आपसी भाईचारे री भावना री रोसनी। अंधेरे मांय धरती माथै पग कठै
धरीजै, चाहे नीं दीसै। अंधेरो घनघोर। च्यारूं मेल रोसनी री एक किरण तकातक
नीं। पण मन री आंख्यां सूं अंधेरे नै चीरता सुराज हांव रा दो पिरेमी लोगां
नै पिरेम रौ महताव बता रैया है। पिरेम ज्योति रो दरसाव करवा रैया है। एक
कानी तो निरक्षरता रै कारण अज्ञानता सूं उपजियो सन्नाटो एक भय पैदा कर
रेयौ है। दूजी कानी साक्षरता री रोसनी मसाल बण गांव-गुवाड़ मांय ज्ञान रौ
चांनणौ फैला रैई है।
बात सरू होवै दो ईसै पिरेमियां सूं जिकै समाजा रा अंग तो है पण कमजोर। क्यूंकै निरक्षर है। उणा रौ धणी-धोरा कोनी क्यूंकै गरीब है। पण लोग उणारौ मान-सनमान भी करै क्यूंकै बियांरी चरितर ऊजलो है। उणारौ जीवन जुझारू है। जीवन जीवणै री जिजिविषा सूं लबरेज ए दोनूं पिरेमी लोगां रौ मान करे। लोगां सूं पिरेम करै। लोगां री सेवा करै। जणै ई तो बाकी लोग भी उणा रै जुझारूपन री तारीफ करै। पण, इण दोनूं पिरेमियां रै सामै जिकी दुनिया भर री परेसानियां आई है बियां री बात भी करनी चाइजै। आज आधुनिक युग मांय भी रूढ़ीवादिता इयां पिरेमियां रै मिलन में आडे आवै। परंपरावा रै नांव माथै रूढ़ीवाद समाज में पकड़ बणायोड़ो है, ओ ई दोनां बड़ी उमर रै पिरेमियां री कहाणी सूं साम्हैं आवै। साफ सुथरो व्यौहार अ’र मन में कोई पाप कोनी पण इण पिरेमियां रै पवितर रिस्ते माथै आंच आय रैई है। कारण एक ही है, समाज रै कुछ लोगां रै कैवणो है कै दोनूं पिरेम करणै री उमर सूं ज्यादा उमर रा है। पण अठै सवाल ओ सामै आवै कै पिरेम करणै रै वास्ते भी कोई उमर होवै ! दूजी बात है कुसुम विधवा है। पण समाज रा जागरूक अ’र पढ़या लिख्या लोग पूछै–विधवा विवाह कांई पुराने जमाने में नीं होवंता हा ! नूवें जमाने में तो कोई सै-डेढ़ सौ बरस पहले पैली समाज सुधारक महापुरुषां आंदोलन चलायो अ’र विधवा विवाह नै कानून ही नीं बल्कि समाज री स्वीकशति भी दिराई। पण आ स्वीकशति तो पैला सूंइही ! बस, एक’र फेर समाज नै याद दिरायो गयो कै विधवा नै भी समाज में मान सनमान सूं जीवण जीवणै रौ हक है। पूरी बात तो पैली जाण लेवां, फेर पिरेम करणवाला री उमर अ’र विधवा कुसुमरी बात आपणैआप इ दुनिया रै साम्हैं आ जावैली।
असल में आ पिरेम री बात सुराज गांव रै संतराम महाराज यानी संतो अ’र कुसुम री है। सुराज बीकाणै रौ एक गांव है। बीकाणौ राजस्थान रौ एक महताव राखण वालौ सहर है। इण सहर रौ गौरबजोग इतिहास है। अठै री संस्कृति, परम्परावां अ’र साम्प्रदायिक सौहार्द री मिसाल देसभर में दिरीजै।
अजब कारज अ’र गजबरी सगती पर दरसन करणवाला वीरां रौ सुरग आपांरौ राजस्थान री धरती रौ गौरबजोग सहर बीकाणौ। सुरंगो राजस्थान। अठै देव रमण नै आवै। मिनख पिरेम दरसावै। मोरिया री पुकार सुण बादल बरसण नै आवै। हिरन टाबरां जियां गांव-गुवाड़ में रमै। साची बात तो आ है कै राजस्थान रै हरेक सहर री आपरी अलग पिछाण है। जैपुर हो या उदयपुर। जोधपुर या जैसलमेर। कोटा-बूंदी, पाली मारवाड़। शेखावाटी, वागड़, मारवाड़ी, बीकानेरी, जोधपुरी, जैपुरी नांव सूं कितराई कलात्मकता रा नमूना वाली चीजां। लहंगा-चूनड़ी, जूती, उस्ता कला री अमोल धरोहर। लोकगीत अ’र लोकनृत्य। लोक कथावां। ए अब राजस्थान री पिछाण है। इण सुरंगी भूमि रौं इ एक सहर है बीकानेर। बीकाणो। मरुधरा। धर्मनगरी मानो तो छोटी काशी।
अलबेलो कोटगेट। पूजनीय करणीमाताजी रौ मिन्दर। गजनेर री झील। कपिल मुनि री तपस्थली श्रीकोलायत। तीरथ स्नान रौ फल देवणियो कपिल सरोवर। ऐ सगळा सूं न्यारौ सहर बणयो है ओ बीकाणौ।
पांच सौ साल सूं बेसी बीकाणै रौ दो सौ बरसां सूं भी घणौ पुराणौ पंचमंदिर। सवा सौ साल पुराणौ शिवबाड़ी रौ शिवजी रौ मिन्दर। बगेचियां। मठ। सागर री छतरियां। सागर तालाब। संसोलाव, हर सोलाव अ’र दूजा कितराई तालाब। ऐ सगव्ठा पश्चिमी राजस्थान रै सहर बीकानेर री पिछाण है। फकत ए इ नीं, अठै रा विद्वान भी बीकाणै रौ नावं आकास ताईं ऊंचो कर्यो है। लोक कलाकारां री खातिर मधुरा री लोक संस्कृति देस-विदेस ताईं पूगी है। अल्लाहजिलाई बाई रौ राग मांड रौ गीत आवो नीं पधारो म्हारा देस...तो राजस्थान रौ स्वागत गीत सारू मसहूर है। हिन्दी, राजस्थानी, सिन्धी, उर्दू अ’र दूजी भासावां रा साहित्यकार बीकाणै रौ बखान आपरी रचनावां में तो करै ई, सागै सागै अठैरा मिनख 21 वीं सदी रौ आधुनिक जीवन जीवंता भी पिरेम अ’र सौहार्द री आपरी गौरबजोग परम्परा, पुरातन संस्कृति री आन-बान-शान नै बणाई राखै। बीकाणै रा साम्प्रदायिक सौहार्द री मिसाल दुनिया भर में दिरीजै। पण इणीज सहर रौ एक गांव है सुराज जठै आधुनिकता माथै पुढ़ीवाद री छबि भी परसरयोड़ी है। अठै परम्परावां रौ निर्वहन समाज नै विकास मार्ग माथै बधाय रैयो है पण रूढ़ीवाद रौ ग्रहण भी सागै सागै आडे आय रेयौ है। कारण है, निरक्षरता। कुसुम संतो री पिरेम कथा में निरक्षरता रौ ग्रहण ही लाग्यो जिकै नै साक्षर अ’र जागरूक लोगां दूर तो कर्यो पण दो पिरेमियां री सहन सगति चुकता होयगी। एक मां आपरै गबरू जवान बेटे सूं दूर होयगी। पण कुसुम संतो री पिरेम कथा इण मरुभूमि रै संगीत सुणावती रेत में बुरीजी नीं, बल्कि एक मिसाल बण’र दुनिया रै साम्हैं आयगी।
अठैरी संगीत सुणावती रेत रे समन्दर सूं कितरी इ पिरेम कथावां रा गीत आज दुनियाभर में मिसाल बणियोड़ा है। पुराणै अ’र आधुनिक जुग में जीवतै इण सहर रै एक गांव सुराज री माटी मांय एक पिरेम कथा पग रैई है। पिरेम कथा इ नीं बल्कि आखर ज्योति भी जग रेई है। ज्ञान री ज्योति काली अमावस री रात रै अंधेरे नै दूर कर देवै।
विधि रौ विधान देखो, कुसुम विधवा है। उण रौ एक बेटो है। दोनां रौ समाज में मान है, सनमान है। कुसुम हिरदै में आपरै सुरगवासी धणी पुरखराम री मूरत नै पूजै बेटे खातिर परिस्थितियां सूं जूझै। उण रै मन में एक सुपनो है, बेटे नै पढ़ा-लिखा’र बड़ो आदमी बणावण रौ सुपनौ। खुद निरक्षर है पण कुसुम में समाज रै हरेक टाबर नै साक्षर देखणै री उमंग है। पग्योड़ी उमर है, आपरौ भलो-बुरौ आळखण री समझ है। चरितर बेदाग। पण हालात मन नै कद झकझोर देवै मिनख नै ठा पड़ सकै ! नीं, कुसुम नै आपरै मनमिन्दर में धीरैसीक आय’र बिराजियोड़ी एक छबि रौ दरसाव जद होयौ, बीं बगत ताईं पिरेम री इमारत री नींव मजबूत होय चुकी ही। बा छबि ही संतराम री। मतलब संता महाराज। कुसुम संतो री पिरेम कथा जद ताई गांव मांय नीं सुणीजी, सुरात सांत हो। कैयो जाय सकै कै सुराज री सांति कुसुम संतो रै पिरेम गीतां सूं असांत होयगी। पण, इण सूं पैली घणो कुछ होयो सुराज में। समाज में। कुसुम संतो री दुनिया में। संतो मतलब संतराम। संतराम महाराज।
बात सरू होवै दो ईसै पिरेमियां सूं जिकै समाजा रा अंग तो है पण कमजोर। क्यूंकै निरक्षर है। उणा रौ धणी-धोरा कोनी क्यूंकै गरीब है। पण लोग उणारौ मान-सनमान भी करै क्यूंकै बियांरी चरितर ऊजलो है। उणारौ जीवन जुझारू है। जीवन जीवणै री जिजिविषा सूं लबरेज ए दोनूं पिरेमी लोगां रौ मान करे। लोगां सूं पिरेम करै। लोगां री सेवा करै। जणै ई तो बाकी लोग भी उणा रै जुझारूपन री तारीफ करै। पण, इण दोनूं पिरेमियां रै सामै जिकी दुनिया भर री परेसानियां आई है बियां री बात भी करनी चाइजै। आज आधुनिक युग मांय भी रूढ़ीवादिता इयां पिरेमियां रै मिलन में आडे आवै। परंपरावा रै नांव माथै रूढ़ीवाद समाज में पकड़ बणायोड़ो है, ओ ई दोनां बड़ी उमर रै पिरेमियां री कहाणी सूं साम्हैं आवै। साफ सुथरो व्यौहार अ’र मन में कोई पाप कोनी पण इण पिरेमियां रै पवितर रिस्ते माथै आंच आय रैई है। कारण एक ही है, समाज रै कुछ लोगां रै कैवणो है कै दोनूं पिरेम करणै री उमर सूं ज्यादा उमर रा है। पण अठै सवाल ओ सामै आवै कै पिरेम करणै रै वास्ते भी कोई उमर होवै ! दूजी बात है कुसुम विधवा है। पण समाज रा जागरूक अ’र पढ़या लिख्या लोग पूछै–विधवा विवाह कांई पुराने जमाने में नीं होवंता हा ! नूवें जमाने में तो कोई सै-डेढ़ सौ बरस पहले पैली समाज सुधारक महापुरुषां आंदोलन चलायो अ’र विधवा विवाह नै कानून ही नीं बल्कि समाज री स्वीकशति भी दिराई। पण आ स्वीकशति तो पैला सूंइही ! बस, एक’र फेर समाज नै याद दिरायो गयो कै विधवा नै भी समाज में मान सनमान सूं जीवण जीवणै रौ हक है। पूरी बात तो पैली जाण लेवां, फेर पिरेम करणवाला री उमर अ’र विधवा कुसुमरी बात आपणैआप इ दुनिया रै साम्हैं आ जावैली।
असल में आ पिरेम री बात सुराज गांव रै संतराम महाराज यानी संतो अ’र कुसुम री है। सुराज बीकाणै रौ एक गांव है। बीकाणौ राजस्थान रौ एक महताव राखण वालौ सहर है। इण सहर रौ गौरबजोग इतिहास है। अठै री संस्कृति, परम्परावां अ’र साम्प्रदायिक सौहार्द री मिसाल देसभर में दिरीजै।
अजब कारज अ’र गजबरी सगती पर दरसन करणवाला वीरां रौ सुरग आपांरौ राजस्थान री धरती रौ गौरबजोग सहर बीकाणौ। सुरंगो राजस्थान। अठै देव रमण नै आवै। मिनख पिरेम दरसावै। मोरिया री पुकार सुण बादल बरसण नै आवै। हिरन टाबरां जियां गांव-गुवाड़ में रमै। साची बात तो आ है कै राजस्थान रै हरेक सहर री आपरी अलग पिछाण है। जैपुर हो या उदयपुर। जोधपुर या जैसलमेर। कोटा-बूंदी, पाली मारवाड़। शेखावाटी, वागड़, मारवाड़ी, बीकानेरी, जोधपुरी, जैपुरी नांव सूं कितराई कलात्मकता रा नमूना वाली चीजां। लहंगा-चूनड़ी, जूती, उस्ता कला री अमोल धरोहर। लोकगीत अ’र लोकनृत्य। लोक कथावां। ए अब राजस्थान री पिछाण है। इण सुरंगी भूमि रौं इ एक सहर है बीकानेर। बीकाणो। मरुधरा। धर्मनगरी मानो तो छोटी काशी।
अलबेलो कोटगेट। पूजनीय करणीमाताजी रौ मिन्दर। गजनेर री झील। कपिल मुनि री तपस्थली श्रीकोलायत। तीरथ स्नान रौ फल देवणियो कपिल सरोवर। ऐ सगळा सूं न्यारौ सहर बणयो है ओ बीकाणौ।
पांच सौ साल सूं बेसी बीकाणै रौ दो सौ बरसां सूं भी घणौ पुराणौ पंचमंदिर। सवा सौ साल पुराणौ शिवबाड़ी रौ शिवजी रौ मिन्दर। बगेचियां। मठ। सागर री छतरियां। सागर तालाब। संसोलाव, हर सोलाव अ’र दूजा कितराई तालाब। ऐ सगव्ठा पश्चिमी राजस्थान रै सहर बीकानेर री पिछाण है। फकत ए इ नीं, अठै रा विद्वान भी बीकाणै रौ नावं आकास ताईं ऊंचो कर्यो है। लोक कलाकारां री खातिर मधुरा री लोक संस्कृति देस-विदेस ताईं पूगी है। अल्लाहजिलाई बाई रौ राग मांड रौ गीत आवो नीं पधारो म्हारा देस...तो राजस्थान रौ स्वागत गीत सारू मसहूर है। हिन्दी, राजस्थानी, सिन्धी, उर्दू अ’र दूजी भासावां रा साहित्यकार बीकाणै रौ बखान आपरी रचनावां में तो करै ई, सागै सागै अठैरा मिनख 21 वीं सदी रौ आधुनिक जीवन जीवंता भी पिरेम अ’र सौहार्द री आपरी गौरबजोग परम्परा, पुरातन संस्कृति री आन-बान-शान नै बणाई राखै। बीकाणै रा साम्प्रदायिक सौहार्द री मिसाल दुनिया भर में दिरीजै। पण इणीज सहर रौ एक गांव है सुराज जठै आधुनिकता माथै पुढ़ीवाद री छबि भी परसरयोड़ी है। अठै परम्परावां रौ निर्वहन समाज नै विकास मार्ग माथै बधाय रैयो है पण रूढ़ीवाद रौ ग्रहण भी सागै सागै आडे आय रेयौ है। कारण है, निरक्षरता। कुसुम संतो री पिरेम कथा में निरक्षरता रौ ग्रहण ही लाग्यो जिकै नै साक्षर अ’र जागरूक लोगां दूर तो कर्यो पण दो पिरेमियां री सहन सगति चुकता होयगी। एक मां आपरै गबरू जवान बेटे सूं दूर होयगी। पण कुसुम संतो री पिरेम कथा इण मरुभूमि रै संगीत सुणावती रेत में बुरीजी नीं, बल्कि एक मिसाल बण’र दुनिया रै साम्हैं आयगी।
अठैरी संगीत सुणावती रेत रे समन्दर सूं कितरी इ पिरेम कथावां रा गीत आज दुनियाभर में मिसाल बणियोड़ा है। पुराणै अ’र आधुनिक जुग में जीवतै इण सहर रै एक गांव सुराज री माटी मांय एक पिरेम कथा पग रैई है। पिरेम कथा इ नीं बल्कि आखर ज्योति भी जग रेई है। ज्ञान री ज्योति काली अमावस री रात रै अंधेरे नै दूर कर देवै।
विधि रौ विधान देखो, कुसुम विधवा है। उण रौ एक बेटो है। दोनां रौ समाज में मान है, सनमान है। कुसुम हिरदै में आपरै सुरगवासी धणी पुरखराम री मूरत नै पूजै बेटे खातिर परिस्थितियां सूं जूझै। उण रै मन में एक सुपनो है, बेटे नै पढ़ा-लिखा’र बड़ो आदमी बणावण रौ सुपनौ। खुद निरक्षर है पण कुसुम में समाज रै हरेक टाबर नै साक्षर देखणै री उमंग है। पग्योड़ी उमर है, आपरौ भलो-बुरौ आळखण री समझ है। चरितर बेदाग। पण हालात मन नै कद झकझोर देवै मिनख नै ठा पड़ सकै ! नीं, कुसुम नै आपरै मनमिन्दर में धीरैसीक आय’र बिराजियोड़ी एक छबि रौ दरसाव जद होयौ, बीं बगत ताईं पिरेम री इमारत री नींव मजबूत होय चुकी ही। बा छबि ही संतराम री। मतलब संता महाराज। कुसुम संतो री पिरेम कथा जद ताई गांव मांय नीं सुणीजी, सुरात सांत हो। कैयो जाय सकै कै सुराज री सांति कुसुम संतो रै पिरेम गीतां सूं असांत होयगी। पण, इण सूं पैली घणो कुछ होयो सुराज में। समाज में। कुसुम संतो री दुनिया में। संतो मतलब संतराम। संतराम महाराज।
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