कहानी संग्रह >> उपेन्द्रनाथ अश्क की श्रेष्ठ कहानियां उपेन्द्रनाथ अश्क की श्रेष्ठ कहानियांउपेन्द्र नाथ अश्क
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याद हैं वो दिन, जब सुबह के वक़्त इधर सूरज अपनी सुनहरी किरनों से सारे संसार को रोशन कर देता, उधर तू अपनी चांद-सी सूरत लिये, सिर पर घड़ा उठाए, नाजो-अदा से कुएं पर आती...
हिन्दी-उर्दू के प्रेमचंदोत्तर कथा साहित्य के विशिष्ट
कथाकार उपेन्द्रनाथ अश्क (1910-1996) की पहचान, बहुविधावादी रचनाकार होने
के बावजूद, कथाकार के रूप में ही है। राष्ट्रीय आंदोलन के बेहद उथलपुथल से
भरे दौर में उनका रचनात्मक विकास हुआ, जलियांवाला बाग जैसी नृशंस घटनाओं
का उनके बाल मस्तिष्क पर गहरा प्रभाव पड़ा था। उनका गंभीर और व्यवस्थित
लेखन प्रगतिशील आंदोलन के दौर में शुरू हुआ। उसकी आधारभूत मान्यताओं का
समर्थन करने के बावजूद उन्होंने अपने को उस आंदोलन से बांधकर नहीं रखा।
यद्यपि जीवन से उनके सघन जुड़ाव और परिवर्तनकामी मूल्य-चेतना के प्रति
झुकाव, उस आंदोलन की ही देन थी। साहित्य में व्यक्तिवादी-कलावादी रूझानों
से बचकर जीवन की समझ का शऊर और सलीका उन्होंने इसी आंदोलन से अर्जित किया था। भाषा एवं शैलीगत प्रयोग की विराट परिणति उनकी इसी सावधानी की परिणति थी। उनकी कहानियां मानवीय नियति के प्रश्नों, जीवनगत विडंबनाओं,
मध्यवर्गीय मनुष्य के दैनंदिन जीवन की गुत्थियों के चित्रण के कारण;
नागरिक जीवन के हर पहलू संबद्ध रहने के कारण सामान्य पाठकों को उनकी
कहानियाँ अपनापे से भरी लगती हैं, उनमें राजनीतिक प्रखरता और उग्रता के
अभाव से किसी रिक्तता बोध नहीं होता। विषय और कौशल की विविधता भरी तेइस
चुनिंदा कहानियों का यह संकलन उपेन्द्रनाथ अश्क की श्रेष्ठ कहानियां
प्रेमचंदोत्तर कथा साहित्य के मर्म को गंभीरतापूर्वक समझने के लिए एक
संग्रहणीय पुस्तक है।
याद हैं वो दिन, उर्फ अहदे-गुजिश्ता की याद
1
याद हैं वो दिन, जब सुबह के वक़्त इधर सूरज अपनी सुनहरी
किरनों से सारे संसार को रोशन कर देता, उधर तू अपनी चांद-सी सूरत लिये,
सिर पर घड़ा उठाए, नाजो-अदा से कुएं पर आती। मैं तुझे देखता। उल्फत से
देखता, हाँ, मुहब्बत से देखता।
सूरज की किरनें तेरे दमकते चेहरे पर प्रतिबिम्बित होकर देखने वालों की आंखों में चकाचौंध-सी पैदा कर देतीं और उनकी ऐसा मालूम होता जैसे कुएअं पर कोई दूसरा सूरज निकल आया हो। मैं चकित-सा देखता रह जाता।
इधर सूरज जरा ऊंचा उठ कर अपनी गरमी से जमीन पर कुछ बेलुफ्ती-सी पैदा कर देता, उधर तू घड़े को उठाए तेज-तेज चल देती। मैं भी तेरे पीछे-पीछे हो लेता। कभी-कभी तेरे सिर से दुपट्टा सरक जाता, बस बादलों में चांद प्रकट हो जाता। काली-काली जुल्फें नागिनों की तरह हवा में लहरातीं, बल खातीं। मेरे कलेजे पर सांप लोटने लगता।
सूरज की किरनें तेरे दमकते चेहरे पर प्रतिबिम्बित होकर देखने वालों की आंखों में चकाचौंध-सी पैदा कर देतीं और उनकी ऐसा मालूम होता जैसे कुएअं पर कोई दूसरा सूरज निकल आया हो। मैं चकित-सा देखता रह जाता।
इधर सूरज जरा ऊंचा उठ कर अपनी गरमी से जमीन पर कुछ बेलुफ्ती-सी पैदा कर देता, उधर तू घड़े को उठाए तेज-तेज चल देती। मैं भी तेरे पीछे-पीछे हो लेता। कभी-कभी तेरे सिर से दुपट्टा सरक जाता, बस बादलों में चांद प्रकट हो जाता। काली-काली जुल्फें नागिनों की तरह हवा में लहरातीं, बल खातीं। मेरे कलेजे पर सांप लोटने लगता।
2
नहीं भूले वो दिन, जब तेरे हुस्न की चर्चा
चारों तरफ फैली
हुई थी। तेरी खूबसूरती की तस्वीर हर शख्स के दिल में नक़्श थी और मेरी दिल
भी इससे बचा न था। तेरी रसीली आवाज का मोहनी मंत्र बड़े-से-बड़े पत्थर-दिल
को राम करने की ताकत रखता था।
जब तू तालाब के किनारे बैठ कर अपना प्रेम-भरा रात अलापती, तो लहरें तड़पने लगतीं। पेड़ों पर मस्ती छा जाती। गायें तुझे झुरमुट में ले लेतीं। मैं भी पीपल की छांव में बैठ कर तेरा दिलकश गाना सुनता, और अपने दिल की प्यास बुझाता।
याद हैं–कल की बात की तरह याद हैं–वो दिन जब शाम के वक़्त जंदल से गायों को चराती हुई आती। इधर मैं तेरे सामने से गुजरता, अपनी ख्वाहिश से नहीं, बल्कि किसी आसमानी कशिश से, जो मुझे उधर जाने को मजबूर करती। तू मुस्कुरा देती। मेरे दिल पर हजारों बिजलियां गिरतीं !
मैं हर रोज तेरे सामने से हो कर गुजरता। जिस दिन तू किसी वजह से न आती, उस दिन मेरा कलेजा धक-धक करने लग जाता। न जाने क्यों नहीं आई, तबीयत कैसी है, वग़ैरह-वग़ैरह। इस किस्म के खयालात मेरे दिल में पैदा होने शुरू हो जाते। जिस वक़्त तक मैं मुझे एक नजर देख न लेता–मुझे आराम न आता। मेरा दिल तड़पता रहता।
जब तू तालाब के किनारे बैठ कर अपना प्रेम-भरा रात अलापती, तो लहरें तड़पने लगतीं। पेड़ों पर मस्ती छा जाती। गायें तुझे झुरमुट में ले लेतीं। मैं भी पीपल की छांव में बैठ कर तेरा दिलकश गाना सुनता, और अपने दिल की प्यास बुझाता।
याद हैं–कल की बात की तरह याद हैं–वो दिन जब शाम के वक़्त जंदल से गायों को चराती हुई आती। इधर मैं तेरे सामने से गुजरता, अपनी ख्वाहिश से नहीं, बल्कि किसी आसमानी कशिश से, जो मुझे उधर जाने को मजबूर करती। तू मुस्कुरा देती। मेरे दिल पर हजारों बिजलियां गिरतीं !
मैं हर रोज तेरे सामने से हो कर गुजरता। जिस दिन तू किसी वजह से न आती, उस दिन मेरा कलेजा धक-धक करने लग जाता। न जाने क्यों नहीं आई, तबीयत कैसी है, वग़ैरह-वग़ैरह। इस किस्म के खयालात मेरे दिल में पैदा होने शुरू हो जाते। जिस वक़्त तक मैं मुझे एक नजर देख न लेता–मुझे आराम न आता। मेरा दिल तड़पता रहता।
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