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भारतीय सांस्कृतिक विरासत

सुदर्शन कुमार कपूर

प्रकाशक : नेशनल बुक ट्रस्ट, इंडिया प्रकाशित वर्ष : 2009
पृष्ठ :107
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 7455
आईएसबीएन :978-81-237-5626

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प्रस्तुत पुस्तक संस्कृति, कला, शिक्षा, गायन, वाद्य संगीत, शास्त्रीय संगीत की महान परंपरा, नृत्य लोकनृत्य, संतगायक, भारतीय स्मारक को समझने के लिए एक आवश्यक ग्रंथ है...

Bhartiya Sanskritik Virasat - A Hindi Book - by Sudarshan Kumar Kapoor

प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश

प्रस्तुत पुस्तक संस्कृति, कला, शिक्षा, गायन, वाद्य संगीत, शास्त्रीय संगीत की महान परंपरा, नृत्य लोकनृत्य, संतगायक, भारतीय स्मारक को समझने के लिए एक आवश्यक ग्रंथ है जिसे आत्मीय शैली में विद्वान लेखक श्री सुदर्शन कुमार कपूर ने सामान्य पर्यटक की भांति समूचे देश में भ्रमण किया; बारीकी से अपनी परंपरा, ऐतिहासिकता को महसूस किया और सुपरिचित शैली में पाठकों के लिए गहन अध्ययन के बाद तैयार किया है।

1
संस्कृति, कला और शिक्षा


1.1 संस्कृति


शिक्षा का मुख्य उद्देश्य सदा से ही सामाजिक विरासत, संस्कृति तथा मान्य मूल्यों व परंपराओं को संचारित तथा संप्रेषित करना रहा है। संस्कृति के प्रभाव से व्यक्ति-विशेष या समाज उन कार्यों को करने की प्रेरणा प्राप्त करता है जिनके द्वारा सामाजिक, साहित्यिक, कलात्मक, राजनैतिक तथा वैज्ञानिक क्षेत्रों में उन्नति होती है। संक्षेप में संस्कृति किसी भी राष्ट्र या देश की वे उपलब्धियां हैं जो उसने सदियों में अर्जित की होती हैं और जिनसे उसके इतिहास, सामाजिक, राजनैतिक, आर्थिक एवं प्राकृतिक परिवेश, आचार-विचार, ज्ञान-विज्ञान, दार्शनिक विचारधाराओं, धर्म, लोक कलाओं और जीवन आदि के बारे में पता चलता है। वे उपलब्धियां राष्ट्र या देश की प्रज्ञा एवं कल्पना के सामूहिक प्रयासों का परिणाम हैं तथा उनके निर्माण तथा विकास में महान दार्शनिकों, तत्त्ववेत्ताओं, वैज्ञानिकों, कवियों, संगीतज्ञों, चित्रकारों तथा मूर्तिकारों का महत्त्वपूर्ण योगदान रहा है। अतः संस्कृति का संबंध जहां मानव के शारीरिक, मानसिक तथा बौद्धिक शक्तियों के विकास के साथ है, वहीं धर्म, कला, दर्शन व साहित्य भी इसके अभिन्न अंग हैं।

संस्कृति मानव के शारीरिक तथा मानसिक संस्कारों का सूचक है अर्थात् संस्कृति से अभिप्राय मानव समाज के संस्कारों का परिष्कार और परिमार्जन है जो कि एक सतत सर्जन प्रक्रिया है। दूसरे शब्दों में मनुष्य के लिए जो वर्णीय या वांछनीय अर्थात मंगलमय है–वह संस्कृति का अंग है। संस्कृति का एक अर्थ अंतःकरण की शुद्धि और सहृदयता भी है, अतः संस्कृति वह सर्जन व प्रेरक शक्ति है जो मानव को शुद्ध चित्त और सकारात्मक मानसिकता वाला बनाए और सामाजिक संस्थानों को सामाजिक सेवा में सतत क्रियाशील बनाए रखे। संस्कार एक प्रकार से आंतरिक गुणों के आधारबीज हैं और संस्कृति संस्कारों की अभिव्यक्ति है जो मनुष्य के सामाजिक आचरण और व्यवहार में लक्षित होती है। एक सुसंस्कृत व्यक्ति वह है जो सामाजिक व्यवहार में सदाचारी, शिष्ट और सच्चरित्र, शालीन, समाज के प्रति उत्तरदायी तथा प्राणिमात्र के प्रति हितैषी हो। अतः संस्कृति मानवीय सद्गुणों की सुंदर तथा समरस अभिव्यक्ति और व्याख्या है।

संस्कृति के प्रमुख तत्व ऊर्जात्मकता, सृजनात्मता, कल्पनाशीलता, सौंदर्यमूलकता, सातत्य है जो इसकी पौराणिकता, साहित्य, दर्शन, नैतिक चेतना, सौंदर्य चेतना, ललित कलाओं और भाषा-संस्कृति में परिभाषित होती है।

संस्कृति मूलतः एक मूल्य दृष्टि और उससे निर्दिष्ट होने वाले प्रभावों व संस्कारों का नाम है। ये संस्कार समाज को, व्यक्ति को, परिवार को, प्राणिमात्र से ही नहीं बल्कि वस्तु मात्र से जो़ड़ते हैं और उनसे हमारे संबंधों को निरूपित व निर्धारित करते हैं। संस्कृति भौतिक जगत और जीव जन्तुओं के साथ मानव जाति के संबंधों पर आधारित है और ये संबंध ज्ञान के विकास और संवेदन के विस्तार के साथ बदलते रहते हैं।

अतः संस्कृति या हमारे संस्कार समाज में एक नियमन करने वाली सत्ता का प्रभाव रखते हैं। संस्कृति अथवा संस्कार देश की आत्मा व प्रेरणा-स्रोत होते हैं जिनके सहारे देश अपने लक्ष्यों और आदर्शों का निर्माण करता है।


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