सिनेमा एवं मनोरंजन >> हिन्दी सिनेमा के सौ वर्ष हिन्दी सिनेमा के सौ वर्षदिलचस्प
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हिन्दी सिनेमा के सौ वर्ष
प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश
वरिष्ठ फिल्म विशेषज्ञ ‘दिलचस्प’ की यह अद्भुत विशेषता है कि वह कठिन से कठिन और लंबी कालावधि में फैले हुए विषय को भी पाठकों के लिए सुबोध बना देते हैं। हिन्दी सिनेमा में उनकी कलम दशकों से चलती रही है।
‘हिन्दी सिनेमा के 100 वर्ष’ में दिलचस्प जी ने जहाँ सन् 1896 से 2008 तक के सफर का सारांश प्रस्तुत किया है, वहीं फिल्मों का विषयगत अध्धयन भी किया है। उनकी दृष्टि मनोरंजक फिल्मों तक ही सीमित नहीं रही है, वह प्रेरक फिल्मों पर भी गंभीर विमर्श करते हैं।
प्रायः फिल्मों पर चर्चा करते समय गीतों को दरकिनार कर दिया जाता है, लेकिन इस पुस्तक के लेखक ने फिल्मी गानों पर अनेक अध्यायों में विचार किया है। उनके लिए फिल्मी दुनिया में गीतकार भी महत्त्वपूर्ण है और गायक भी। वह जहाँ फिल्म की अद्वितीय सुंदरियों पर बात करते नजर आते हैं, वहीं महिला निर्माता-निर्देशकों पर भी गंभीरता से चर्चा करते हैं। वह यह स्वीकार करते हैं कि फिल्मों का प्रभाव क्षेत्र बड़ा व्यापक है। यही कारण है कि उनकी नजर सिनेमा और फिल्मी सितारों पर जारी किए गए डाक टिकटों तक भी गई है।
यह पुस्तक आम पाठकों को एक सदी से भी अधिक के फिल्मी सफर की सरल जानकारी देती है। इसे पढ़ना एक परंपरा से परिचित होना है।
‘हिन्दी सिनेमा के 100 वर्ष’ में दिलचस्प जी ने जहाँ सन् 1896 से 2008 तक के सफर का सारांश प्रस्तुत किया है, वहीं फिल्मों का विषयगत अध्धयन भी किया है। उनकी दृष्टि मनोरंजक फिल्मों तक ही सीमित नहीं रही है, वह प्रेरक फिल्मों पर भी गंभीर विमर्श करते हैं।
प्रायः फिल्मों पर चर्चा करते समय गीतों को दरकिनार कर दिया जाता है, लेकिन इस पुस्तक के लेखक ने फिल्मी गानों पर अनेक अध्यायों में विचार किया है। उनके लिए फिल्मी दुनिया में गीतकार भी महत्त्वपूर्ण है और गायक भी। वह जहाँ फिल्म की अद्वितीय सुंदरियों पर बात करते नजर आते हैं, वहीं महिला निर्माता-निर्देशकों पर भी गंभीरता से चर्चा करते हैं। वह यह स्वीकार करते हैं कि फिल्मों का प्रभाव क्षेत्र बड़ा व्यापक है। यही कारण है कि उनकी नजर सिनेमा और फिल्मी सितारों पर जारी किए गए डाक टिकटों तक भी गई है।
यह पुस्तक आम पाठकों को एक सदी से भी अधिक के फिल्मी सफर की सरल जानकारी देती है। इसे पढ़ना एक परंपरा से परिचित होना है।
लेखक के बारे में
दिलचस्प (नारायण सिंह राजावत)
चूरू, राजस्थान में सन् 1945 को पिता चंद्रसिंह राजावत एवं माता मगन कंवर के बेटे के रूप में जन्मे ‘दिलचल्प’ जी ने शिक्षा भले ही मैट्रिक तक पाई, लेकिन जीवन के विद्यालय में वह खूब पढ़ते रहे। सन् 1965 में ‘दिलचल्प’ के नाम से लेखन।
देश की प्रायः सभी स्तरीय पत्रिकाओं में अब तक विविध विधाओं की दो हजार से अधिक रचनाएं प्रकाशित। भारतीय एवं विदेशी भाषाओं में अनुवाद।
प्रकाशित पुस्तकों में प्रमुख हैं ‘हरिवंश राय बच्चन : एक जीवनी’, ‘देह व्यापार : मस्ती या मजबूरी’, नव्यतम : ‘हिन्दी सिनेमा के 100 वर्ष’।
देश की प्रायः सभी स्तरीय पत्रिकाओं में अब तक विविध विधाओं की दो हजार से अधिक रचनाएं प्रकाशित। भारतीय एवं विदेशी भाषाओं में अनुवाद।
प्रकाशित पुस्तकों में प्रमुख हैं ‘हरिवंश राय बच्चन : एक जीवनी’, ‘देह व्यापार : मस्ती या मजबूरी’, नव्यतम : ‘हिन्दी सिनेमा के 100 वर्ष’।
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