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ओशो साहित्य >> संभोग से समाधि की ओर

संभोग से समाधि की ओर

ओशो

प्रकाशक : डायमंड पब्लिकेशन्स प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :440
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 7286
आईएसबीएन :9788171822126

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संभोग से समाधि की ओर...


हद्द कमजोर साधुता है, जो स्त्री के छूने से अपवित्र हो जाती है! लेकिन इन्ही सारे लोगों की लंबी परंपरा ने स्त्री को दीन-हीन और नीचा बनाया है। और मजा यह हैं-मजा यह है, कि यह जो दीन-हीनता की लंबी परंपरा है, इस परंपरा को तो स्त्रियां ही पूरी तरह बल देने में अग्रणी हैं! कभी के मंदिर मिट जाएं और कभी के गिरजे समाप्त हो जाए-स्त्रियां ही पालन-पोषण कर रही है मंदिरों, गिरजों, साधु सतों-महतों का। चार स्त्रियां दिखायी पड़ेगी एक साधु के पास, तब कहीं एक पुरुष दिखायी पड़ेगा। वह पुरुष भी अपनी पत्नी के पीछे बेचारा चला आया हुआ होगा।
तीसरी बात मैं आपसे यह कहना चाहता हूं कि जब तक हम स्त्री-पुरुष के बीच के ये अपमानजनक फासले, ये अपमानजनक दूरियां-कि छूने से कोई अपवित्र हो जाएगा-नहीं तोड़ देते हैं, तब तक शायद हम स्त्री को समान हक भी नहीं दे सकते।

को-एजुकेशन शुरू हुई है। सैकड़ों विश्वविद्यालय, महाविद्यालय को-एजुकेशन दे रहे हैं। लड़कियां और लड़के साथ पढ़ रहे हैं। लेकिन बड़ी अजीब-सी हालत दिखायी पड़ती है। लड़के एक तरफ बैठे हुए हैं! लड़कियां दूसरी तरफ बैठी हुई हैं! बीच में पुलिस की तरह प्रोफेसर खड़ा हुआ है! यह कोई मतलब है? यह कितना अशोभन है, अनकल्वर्ड है। को-एजुकेशन का अब एक ही मतलब हो सकता है कि कालेज या विश्वविद्यालय स्त्री-पुरुष में कोई फर्क नहीं करता। को-एजुकेशन का एक ही मतलब हो सकता है-कालेज की दृष्टि में सेक्स-डिफरेंसेस का कोई सवाल नहीं है।
आखिरी बात और अपनी चर्चा मैं पूरी कर दूंगा। एक बात आखिरी।
और वह यह कि अगर एक बेहतर दुनिया बनानी हो तो स्त्री-पुरुष के समस्त फासले गिरा देने हैं। भिन्नता बचेगी, लेकिन समान तल पर दोनों को खड़ा कर देना है और ऐसा इंतजाम करना है कि स्त्री को स्त्री होने की कांशसनेस और पुरुष को पुरुष होने की कांशसनेस चौबीस घंटे न घेरे रहे। यह पता भी नहीं चलना चाहिए। यह चौबीस घंटे खयाल भी नहीं होना चाहिए। अभी तो हम इतने लोग यहां बैठे हैं एक जी आए तो सारे लोगों को खयाल हो जाता है कि स्त्री आ गयी। स्त्री को भी पूरा खयाल है कि पुरुष यहां बैठे हुए हैं। यह अशिष्टता है, अनकल्वर्डनेस है, असंस्कृति है, असभ्यता है। यह बोध नहीं होना चाहिए। ये बोध गिरने चाहिए। अगर ये गिर सकें तो हम एक अच्छे समाज का निर्माण कर सकते हैं।

मेरी बातों को इतने प्रेम और शांति से सुना उससे बहुत अनुगृहीत हूं और अंत में सबके भीतर बैठे परमात्मा को प्रणाम करता हूं, मेरे प्रणाम स्वीकार करें।

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Bakesh  Namdev

mujhe sambhog se samadhi ki or pustak kharidna hai kya karna hoga