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संभोग से समाधि की ओर

ओशो

प्रकाशक : डायमंड पब्लिकेशन्स प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :440
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 7286
आईएसबीएन :9788171822126

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संभोग से समाधि की ओर...


लेकिन जिंदगी अकेला गणित नहीं है। जिंदगी बहुत बड़े अर्थों में प्रेम है जहां कोई हिसाब नहीं होता। जहां कोई गणित नहीं होता। जिंदगी बहुत बेबूझ है और इस जिंदगी को अगर हमने गणित की सीधी साफ रेखाओं पर निर्मित किया तो हम सीधी साफ रेखाएं बना लेंगे। लेकिन आदमी पुंछता चला जाएगा, मिटता चला जाएगा। और यही हो रहा है। रोज यह हो रहा है कि आदमी की जड़ें नीचे से कट रही हैं। क्योंकि हम जो इंतजाम कर रहे हैं, वह ऐसा इंतजाम है, जिसके ढाचे में जिदगी नहीं पल सकती।
जैसे कि अगर समझ लें, मुझे एक फूल बहुत प्यारा लगे तो मैं एक तिजोरी में उसे बंद कर लूं। गणित यही कहेगा कि तिजोरी में बंद कर लो। ताला लगा दो जोर से। मुझे सूरज की रोशनी बहुत अच्छी लगे, एक पेटी में बंद कर लूं। अपने घर रखूं बांधकर। लेकिन, जिंदगी पेटियों में बंद नहीं होती-न गणित की पेटियों में, न साइंस की पेटियों में। कहीं बंद नहीं होती। जिंदगी बाहर छूट जाती है, एकदम छूट जाती है। मुट्ठी बांधी... अगर यहां हवा है और मैं मुट्ठी जोर से बांधूं और सोचूं कि हवा को हाथ के भीतर बंद कर लूं...तो मुट्ठी जितने जोर से बंधेगी हवा, उतनी हाथ से बाहर हो जाएगी।

जिंदगी बंधना मानती नहीं। जिंदगी एक तरलता और एक बहाव है। लेकिन हमारी, पुरुष की चितना की सारी जो कैटेगरिज़ हैं, पुरुष के सोचने का जो ढंग है, वह सब चीजों को बांधता है। व्यवस्थित बांध लेता है, हिसाब में बांध लेता है। अगर उससे पूछो कि मां का क्या मतलब है? अगर ठीक पुरुष से पूछो कि मां का क्या मतलब? तो वह कहेगा बच्चे पैदा करने की एक मशीन है! और क्या हो सकता है?

मैं एक वैज्ञानिक की किताब पढ़ रहा था। उस वैज्ञानिक से किसी ने पूछा, मुर्गी क्या है? तो उस आदमी ने कहा, मुर्गी अंडे की तरकीब है, और अंडे पैदा करने के लिए। अंडे की तरकीब, और अंडे पैदा करने के लिए! मुर्गी क्या है? अंडे की तरकीब। और अंडे पैदा करने के लिए-और क्या हो सकता है? गणित ऐसा सोचेगा-सोचेगा ही। गणित इससे भिन्न सोच भी नहीं सकता। विज्ञान इससे भिन्न सोच भी नहीं सकता।,

विज्ञान आत्मा की गणना नहीं करता! जीवन की गणना नहीं करता! चीजों को काट लेता है। काटकर खोज कर लेता है। विश्लेषण कर लेता है। और
विश्लेषण में जो जीवन था वह एकदम खो जाता है।
पुरुष ने जो दुनिया बनायी है वह पुरुष अधूरा है, अधूरी दुनिया बन गयी है। पुरुष अधूरा है, यह ध्यान रहे। और स्त्री के साथ बिना उसकी संस्कृति अधूरी होगी।
तो एक-एक घर में पुरुष एक-एक स्त्री को लाया है। एक-एक घर में तो पुरुष अकेला रहने को राजी नहीं है। स्त्री भी अकेले रहने को राजी नहीं है। चाहे कितनी कलह हो स्त्री और पुरुष साथ रह रहे हैं!
लेकिन संस्कृति और सभ्यता की जहां दुनिया है, वहां स्त्री का बिल्कुल प्रवेश नहीं हुआ है। वहां पुरुष बिल्कुल अकेला है। पुरुषों के अकेले, अधूरेपन ने...पुरुष बिल्कुल अधूरा है, जैसे स्त्री अधूरी है। वे कांपलीमेटरी हैं दोनो को मिलाकर एक पूर्ण व्यक्तित्व बनता है।
लेकिन मनुष्य की संस्कृति अधूरी सिद्ध हो रही है। क्योंकि वह आधे पुरुष ने ही निर्मित की है। स्त्री से उसने कभी मांग नहीं की। स्त्री सब गड़बड़ कर देती है, अगर वह आए तो। अगर लेबोरेटरी में उसे ले जाओ तो बजाय इसके कि वह आपकी परखनली और आपके टैस्ट-ट्यूब में क्या हो रहा है यह देखे, हो सकता है टैस्ट-ट्यूब को रंग कर सुंदर बनाने की कोशिश करे। स्त्री को लेबोरेटरी में ले जाओ, गड़बड़ होनी शुरू हो जाएगी। या पुरुष को स्त्री की बगिया में ले जाओ तो भी गड़बड़ होनी शुरू हो जाएगी। इस गड़बड़ के डर से हमने कंपार्टमेंट बाँट लिए हैं।

पुरुष की एक दुनिया बना दी है। स्त्री की एक अलग दुनिया बना दी है। और दोनों के बीच एक बड़ी दीवाल खड़ी कर ली है। और दीवाल खड़ी करके पुरुष अकड़ गया है और कहता है, मुझसे तुम्हारा मुकाबला क्या? तुम कुछ कर ही नहीं सकती। इसलिए घर में बंद रहो। तुमसे कुछ हो नहीं सकता। हम पुरुष ही कुछ कर सकते हैं। हम पुरुष श्रेष्ठ हैं। स्त्रियों, तुम्हारा काम है कि तुम बर्तन मलो, खाना बनाओ, बस इतना! इससे ज्यादा तुम्हारा कोई काम नहीं है। बच्चो को बड़ा करो! यह सब पुरुष ने स्त्री को एक दीवाल बना करके वहां सौंप दिया है और वह बाहर अकेला मालिक होकर बैठ गया है! सब तरफ पुरुष इकट्ठे हो गए है।

कल्वर की जहां दुनिया है, संस्कृति की, वहां पुरुष इकट्ठे हो गए हैं! स्त्रियां वर्जित हैं! स्त्रियां अस्पृश्य की, अनटचेबल की भांति बाहर कर दी गयी हैं!
मेरी दृष्टि में इसीलिए मनुष्य की सभ्यता अब तक सुख की और आनंद की सभ्यता नहीं बन सकी। अब तक मनुष्य की सभ्यता पूर्ण इंटीग्रेटेड नहीं बन सकी है। उसका आधा अंग बिल्कुल ही काट दिया गया है। इस आधे अंग को वापिस समान हक न मिले, इसे वापिस पूरा जीवन, पूरा अवसर स्वतंत्रता न मिले तो मनुष्य का बहुत भविष्य नहीं माना जा सकता। मनुष्य का भविष्य एकदम अंधकारपूर्ण कहा जा सकता है।

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Bakesh  Namdev

mujhe sambhog se samadhi ki or pustak kharidna hai kya karna hoga