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ओशो साहित्य >> संभोग से समाधि की ओर

संभोग से समाधि की ओर

ओशो

प्रकाशक : डायमंड पब्लिकेशन्स प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :440
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 7286
आईएसबीएन :9788171822126

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संभोग से समाधि की ओर...


पुरुष की एक तरफा अधूरी दुनिया अब तक चली है। और जो पूरा इतिहास है, वह पुरुष का ही इतिहास है, इसलिए युद्धों का, हिंसाओं का इतिहास है।
जिस दिन स्त्री भी स्वीकृत होगी और विराट मनुष्यता में उतना ही समान स्थान पा लेगी, जितना पुरुष का है, तो इतिहास भी ठीक दूसरी दिशा लेना शुरू करेगा।
मेरी दृष्टि में जिस दिन सी बिल्कुल समान हो जाती है, शायद युद्ध असभव हो जाएं। क्योंकि युद्ध में कोई भी मरे, वह किसी का बेटा होता है। किसी का भाई होता है। किसी का पति होता है।
लेकिन पुरुषों को मरने, मारने की ऐसी लंबी बीमारी है, क्योंकि बिना मरे-मारे,
वह अपने पुरुषत्व को ही सिद्ध नही कर पाते हैं। वे यह बता ही नहीं पाते हैं कि मैं भी कुछ हूँ। तो मरने-मारने का एक लंबा जाल और फिर जो मर जाए ऐसे जाल मे उसको आदर देना।
उन्होंने स्त्रियों को भी राजी कर लिया है कि जब तुम्हारे बेटे युद्ध पर जाए तो तुम टीका करना! रो रही है मां, आंसू टपक रहे हैं और वह टीका कर रही है! आशीर्वाद दे रही है! यह पुरुष ने जबर्दस्ती तैयार करवाया हुआ है। अगर दुनिया भर की स्त्रियां तय कर लें, तो युद्ध असंभव हो जाएं।
लेकिन सब व्यवस्था सब सोचना सारी संस्कृति, सारी सभ्यता पुरुष के गुणों पर खड़ी है। इसलिए पूरी मनुष्यता इतिहास की युद्धों का इतिहास है।
अगर हम तीन हजार वर्ष की कहानी उठाकर देखें तो मुश्किल पड़ती है, कि आदमी कभी ऐसा रहा हो, जब युद्ध न किया हो। युद्ध चल ही रहा है। आज इस कोने में आग लगी है जमीन के। कल दूसरे कोने में। परसों दूसरे कोने में। आग लगी ही है। आदमी जल ही रहा है। आदमी मारा ही जा रहा है। और अब? अब हम उस जगह पहुंच गए हैं जहां हमने बड़ा इंतजाम किया है। अब हम आगे आदमी को बचने नहीं देगे।

अगर पुरुष सफल हो जाता है अपने अंतिम उपाय में, तीसरे महायुद्ध में तो शायद मनुष्यता नहीं बचेगी।
इतना इंतजाम करवा लिया है कि हम पूरी पृथ्वी को नष्ट कर दें। पूरी तरह से नष्ट कर दें। यह पुरुष के इतिहास की आखिरी क्लाइमेक्स हो सकती थी चरम वहां हम पहुंच गए हैं। यह हम क्यों पहुंच गए हैं?
क्योंकि पुरुष गणित में सोचता है, प्रेम उसकी सोचने की भाषा नहीं है।

ध्यान रहे, विज्ञान विकसित हुआ है। धर्म विकसित नहीं हो सका।
और धर्म तब तक विकसित नहीं होगा जब तक स्त्री समान संस्कृति और जीवन में दान नहीं करती है। और उसे दान का मौका नहीं मिलता है।
गणित से जो चीज विकसित होगी, वह विज्ञान है। गणित परमात्मा तक ले जाने वाला नहीं है। चाहे दो और दो कितने ही बार जोड़ो तो भी बराबर परमात्मा होने वाला नहीं है। गणित कितना ही बढ़ता चला जाए वह पदार्थ से ऊपर जाने वाला नहीं है।
प्रेम परमात्मा तक पहुंच सकता है। लेकिन हमारी सारी खोज गणित की है। तर्क की है। वह विज्ञान लेकर खड़ा हो गया है। उसके आगे नहीं जाता।
प्रेम की हमारी कोई खोज नहीं है। शायद प्रेम की बात करना भी हम स्त्रियों के लिए छोड़ देते है। या कवियों के लिए जिनको हम करीब-करीब स्त्रियों जैसा गिनती करते हैं। उनकी गिनती हम कोई पुरुषों में नहीं करते।

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Bakesh  Namdev

mujhe sambhog se samadhi ki or pustak kharidna hai kya karna hoga