ओशो साहित्य >> संभोग से समाधि की ओर संभोग से समाधि की ओरओशो
|
248 पाठक हैं |
संभोग से समाधि की ओर...
मैंने सोचा था जो लोग सिर हिलाते थे घर जल जाने पर, वे लोग मेरी बाते सुनकर
बड़े खुश होंगे। लेकिन मुझसे गलती हो गई, जब मैं मच से उतरा तो उस 'मच
पर जितने नेता थे, जितने संयोजक थे, वे सब भाग चुके थे। वे मुझे उतरते वक्त
मंच पर कोई भी नहीं मिले। वे शायद अपने घर चले गए होंगे कि कहीं घर में आग न
लग जाए। उसे बुझाने का इंतजाम करने भाग गए थे। मुझे धन्यवाद देने को भी
संयोजक वहां नहीं थे। जितनी भी सफेद टोपियां थी, जितने भी खादी वाले लोग थे,
वे मंच पर कोई भी नहीं थे। वे जा चुके थे। नेता बड़ा कमजोर होता है, वह
अनुयायियों के पहले भाग जाता है।
लेकिन कुछ हिम्मतवर लोग जरूर ऊपर आए। कुछ बच्चे आए कुछ बच्चियां आई; कुछ
बूढ़े, कुछ जवान। और उन्होंने मुझसे कहा कि आपने वह बात हमें कही है, जो हमें
किसी ने भी कभी नहीं कही। और हमारी आंखें खोल दी हैं। हमें बहुत ही प्रकाश
अनुभव हुआ है। तो फिर मैंने सोचा कि उचित होगा कि इस बात को और ठीक से पूरी
तरह कहा जाए, इसलिए यह विषय मैंने आज यहां चुना। इन चार दिनों में वह कहानी
जो वहां अधूरी रह गई थी, उसे पूरा करने का कारण यह था कि लोगों ने मुझे कहा।
और वह उन लोगों ने कहा जिनकी जीवन को समझने की हार्दिक चेष्टा है। और
उन्होंने चाहा कि मैं पूरी बात कहूं। एक तो कारण यह था।
और दूसरा कारण यह था कि वे जो लोग भाग गए थे, मंच से उन्होंने जगह-जगह जाकर
कहना शुरू कर दिया कि मैंने तो ऐसी बातें कही हैं कि धर्म का विनाश ही हो
जाएगा! मैंने तो ऐसी बातें कही हैं जिनसे कि लोग अधार्मिक हो जाएंगे।
तो मुझे लगा कि उनका भी कहना पूरा स्पष्ट हो सके, उनको भी पता चल सके कि लोग
सेक्स के संबंध में समझकर अधार्मिक होने वाले नहीं हैं। नहीं समझा है उन्होने
आज तक, इसलिए अधार्मिक हो गए हैं।
अज्ञान अधार्मिक बना सकता है। ज्ञान कभी भी अधार्मिक नहीं बना सकता। और अगर
शान अधार्मिक बनाता हो तो मैं कहता हूं कि ऐसा ज्ञान उचित है।
जो अधार्मिक बना दे, उस अज्ञान की बजाए जो कि धार्मिक बनाता हो। क्योंकि जो
अज्ञान धार्मिक बनाता हो तो वह धर्म भी दो कौड़ी का है, जो अज्ञान की बुनियाद
पर खड़ा होता हो। धर्म तो वही सत्य है, जो ज्ञान के आधार पर खड़ा होता है।
|