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ओशो साहित्य >> संभोग से समाधि की ओर

संभोग से समाधि की ओर

ओशो

प्रकाशक : डायमंड पब्लिकेशन्स प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :440
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 7286
आईएसबीएन :9788171822126

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संभोग से समाधि की ओर...


जिन लोगों ने यह मंदिर बनाया था, वे बड़े समझदार लोग थे। यह मंदिर एक 'मेडिटेशन मदिर' था। यह मंदिर एक ध्यान का केंद्र था। जो लोग आते थे, उनसे वे कहते थे, बाहर पहले मैथुन के ऊपर ध्यान करो, पहले सेक्स को समझो और जब सेक्स को पूरी तरह समझ जाओ और तुम पाओ कि मन उससे मुक्त हो गया
है, तब तुम भीतर आ जाना। फिर भीतर भगवान से मिलना हो सकता है।
लेकिन धर्म के नाम पर हमने सेक्स को समझने की स्थिति पैदा नहीं की, सेक्स की शत्रुता पैदा कर दी! सेक्स को समझो मत, आंख बंद कर लो, और घुस जाओ भगवान के मंदिर में आंख बंद करके। आंख बंद करके कभी कोई भगवान वे; मंदिर में जा सका है? और आख बंद करके अगर आप भगवान के मंदिर में पहुंच भी गए तो बंद आंख में आपको भगवान दिखाई नहीं पड़ेंगे। जिससे आप भागकर आए हैं वही दिखाई पड़ता रहेगा। आप उसी से बंधे रह जाएगे।
शायद कुछ लोग मेरी बात सुनकर समझते हैं कि मैं सेक्स का पक्षपाती हूं। मेरी बातें सुनकर शायद लोग समझते हैं कि मैं सेक्स का प्रचार करना चाहता हूं। अगर कोई ऐसा समझता हो तो उसने मुझे कभी सुना ही नहीं है, ऐसा उससे कह देना।
इस समय पृथ्वी पर मुझसे ज्यादा सेक्स का आदमी खोजना मुश्किल है। और उसका कारण यह है कि मैं जो बात कह रहा हूं, अगर वह समझी जा सकी, तो मनुष्य-जाति को सेक्स से ऊपर उठाया जा सकता है, अन्यथा नहीं। 
और जिन थोथे लोगों को हमने समझा है कि वे सेक्स के दुश्मन थे वे सेक्स के दुश्मन नहीं थे। उन्होंने सेक्स में आकर्षण पैदा कर दिया है, सैक्स से मुक्ति पैदा नहीं की। सेक्स में आकर्षण पैदा हो गया है, विरोध के कारण।
मुझसे एक आदमी ने कहा कि जिस चीज का विरोध न हो, उसके करने में कोई रस ही नहीं रह जाता। चोरी के फल खाने में जितने मधुर और मीठे होते हैं, उतने बाजार से खरीदे गए फल कभी नहीं होते। इसीलिए अपनी पत्नी उतनी मधुर कभी नहीं मालूम पड़ती, जितनी पड़ोसी की पत्नी मालूम पड़ती है। वे चोरी के फल है', वे वर्जित फल हैं। और सेक्स को हमने एक ऐसी स्थिति दे दी, एक ऐसा चोरी का जामा पहना दिया, एक ऐसे झूठ के लिबास में छिपा दिया, ऐसी दीवालों में खड़ा कर दिया, कि उसने हमे तीव्र रूप से आकर्षित कर लिया है।

बर्ट्रेड रसल ने लिखा हैं कि जब मैं छोटा बच्चा था; विक्टोरियन जमाना था, स्त्रियों के पैर भी दिखाई नहीं पड़ते थे। वे कपड़ा पहनती थी जो जमीन पर घिसटता था और पैर नहीं दिखाई पड़ते थे। अगर कभी किसी स्त्री का अंगूठा दिख जाता था, तो आदमी आतुर होकर अंगूठा देखने लगता था और काम वासना जग जाती थी। और रसल कहता है कि अब स्त्रियां करीब-करीब आधी नंगी घूम रही है और उनका पैर पूरा दिखाई पड़ता है, लेकिन कोई असर नहीं होता है! तो रसल ने लिखा है कि इससे, यह सिद्ध होता है कि हम जिन चीजों को जितना ज्यादा छिपाते हैं उन चीजों में उतना ही कुत्सित आकर्षण पैदा होता है।

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Bakesh  Namdev

mujhe sambhog se samadhi ki or pustak kharidna hai kya karna hoga