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ओशो साहित्य >> संभोग से समाधि की ओर

संभोग से समाधि की ओर

ओशो

प्रकाशक : डायमंड पब्लिकेशन्स प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :440
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 7286
आईएसबीएन :9788171822126

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संभोग से समाधि की ओर...


लेकिन अगर हम इस घटना के विरोध में खड़े हो जाएं सिर्फ, तो क्या होगा? तो क्या हम उस अनुभव को पा लेंगे जो सेक्स से एक झलक की तरह दिखाई पड़ता था? नहीं, अगर हम सेक्स के विरोध में खड़े हो जाते हैं तो सेक्स ही हमारी चेतना का केंद्र बन जाता है, हम सेक्स से मुक्त नहीं होते, उससे बंध जाते हैं। वह 'लॉ ऑफ रिवर्स इफेक्ट' काम शुरू कर देता है। फिर हम उससे बंध गए। फिर हम भागने की कोशिश करते हैं। और जितनी हम कोशिश करते है, उतने ही बंधते चले जाते हैं।

एक आदमी बीमार था और बीमारी कुछ उसे ऐसी थी कि दिन-रात उसे भूख लगती थी। सच तो ये है कि उसे बीमारी कुछ भी न थी। भोजन के संबंध मे उसने कुछ विरोध की किताबे पढ़ ली थी। उसने पढ़ लिया था कि भोजन पाप है, उपवास पुण्य है। कुछ भी खाना हिंसा करना है। जितना वह यह सोचने लगा कि भोजन करना पाप है, उतना ही भूख को दबाने लगा, जितना भूख को दबाने लगा उतनी भूख असर्ट करने लगी, जोर से प्रगट होने लगी। तो वह दो-चार दिन उपवास करता था और एक दिन पागल की तरह कुछ भी खा जाता था। जब कुछ भी खा लेता था तो बहुत दुःखी होता था, क्योंकि फिर खाने की तकलीफ झेलनी पड़ती थी। फिर पश्चाताप में दो-चार दिन उपवास करता था और फिर कुछ भी खा लेता था। आखिर उसने तय किया कि यह घर रहते हुए न हो सकेगा ठीक, मुझे जंगल चले जाना चाहिए।

वह पहाड़ पर गया। एक हिल स्टेशन पर जाकर एक कमरे में रहा। घर के लोग भी परेशान हो गए। उसकी पत्नी ने यह सोचकर कि शायद वह पहाड़ पर अब जाकर भोजन की बीमारियों से मुक्त हो जाएगा उसने खुशी में बहुत-से फूल उसे पहाड़ पर भिजवाए कि मैं बहुत खुश हूं कि तुम शायद पहाड़ से स्वस्थ होकर वापस लौटोगे। मैं शुभकामना के रूप में ये फूल तुम्हें भेज रही हूं।

उस आदमी का वापस तार आया। उसने तार में लिखा-'मेनी थैंक्स फॉर दी फ्लावर्स, दे आर सो डैलीसियस', उसने तार किया कि बहुत धन्यवाद फूलों के लिए, बड़े स्वादिष्ट हैं। वह फूलों को खा गया वहां पहाड़ पर जो फूल उसका भेजे गए थे! अब कोई आदमी फूलों को खाएगा, इसका हम ख्याल नहीं कर सकते। लेकिन जो आदमी भोजन से लड़ाई शुरू कर देगा, वह फूलों को खा सकता है।

आदमी सेक्स से लड़ाई शुरू किया और उसने क्या-क्या सेक्स के नाम पर खाया, इसका आपने कभी हिसाब लगाया? आदमी को छोड़कर, सभ्य आदमी को छोड़कर, होमोसेक्सुअलिटी, कहां है? जंगल में आदिवासी रहते है, उन्होंने कभी कल्पना भी नहीं की है कि होमोसेक्सुअलिटी जैसी कोई चीज हो सकती है-कि पुरुष और पुरुष के साथ संभोग कर सकते हैं यह भी हो सकता है? यह कल्पना के बाहर है। मैं आदिवासियों के पास रहा हूं और उनसे मैंने कहा कि सभ्य लोग इस तरह भी करते हैं। वे कहने लगे, हमारे विश्वास के बाहर है। यह कैसे हो सकता है?

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Bakesh  Namdev

mujhe sambhog se samadhi ki or pustak kharidna hai kya karna hoga